चित्रगुप्त पूजा कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि की जाती है.
पंचांग के अनुसार चित्रगुप्त जी की पूजा 6 नवंबर 2021, आज ,शनिवार के दिन
की जाएगी I चित्र गुप्त पूजा के दिन मंत्र- मसिभाजनसंयुक्तं ध्यायेत्तं च महाबलम्। लेखिनीपट्टिकाहस्तं चित्रगुप्तं नमाम्यहम्।। ये है पूजा की शुभ तिथि - द्वितीया
तिथि का प्रारंभ 5 नवंबर शुक्रवार को रात्रि 11 बजकर 15 मिनट से 6 नवंबर
शनिवार शाम को 7 बजकर 44 मिनट तक रहेगा. चित्रगुप्त जी की पूजा का शुभ
मुहूर्त : 6 नवंबर शनिवार को दोपहर 1:15 मिनट से शाम को 3:25 मिनट तक पूजा
का शुभ मुहूर्त रहेगा I चित्रगुप्त पूजा करने की विधि - चित्रगुप्त
महाराज की पूजा विधि के अंतर्गत ऐसी मान्यता है कि चित्रगुप्त पूजा के दिन
सफेद कागज पर श्री गणेशाय नम: और 11 बार ऊं चित्रगुप्ताय नमः लिखकर पूजन
स्थल के पास रखना चाहिए I इसके अलावा ऊं नम: शिवाय और लक्ष्मी माता जी
सदा सहाय भी लिख सकते हैं I फिर इस पर स्वास्तिक बनाकर बुद्धि, विद्या और
लेखन का अशीर्वाद मांगें I चित्रगुप्त की पूजा करने से साहस, शौर्य, बल और
ज्ञान की प्राप्ति होती है I
देवताओं के लेखपाल हैं चित्रगुप्त महाराज -
चित्रगुप्त देवताओं के लेखपाल हैं और मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा
रखते हैं I उनकी पूजा के दिन नई कलम दवात या लेखनी की पूजा उनके प्रतिरूप
के तौर पर की जाती है I लेखनी की पूजा से वाणी और विद्या का वरदान मिलता है
I कायस्थ या व्यापारी वर्ग के लिए चित्रगुप्त पूजा दिन से ही नववर्ष का
आगाज माना जाता है I इस दिन व्यापारी नए बही खातों की पूजा करते है I नए
बहीखातों पर 'श्री' लिखकर कार्य प्रारंभ किया जाता है I
कौन हैं चित्रगुप्त महाराज - पौराणिक
मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने चित्रगुप्त महाराज
को उत्पन्न किया था I ब्रह्मा जी की काया से उनका उद्भव होने के कारण उनको
कायस्थ भी कहते हैं I चित्रगुप्त जी का विवाह सूर्य की पुत्री यमी से हुआ
था, इसलिए वह यमराज के बहनोई हैं I यमराज और यमी सूर्य की जुड़वा संतान हैं
I यमी बाद में यमुना हो गईं और धरती पर चली गईं I चित्रगुप्त भगवान की पूजा का महत्व -
व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए चित्रगुप्त की पूजा का बहुत महत्व होता है I
इस दिन नए बहीखातों पर ‘श्री’ लिखकर कार्य का आरंभ किया जाता है. इसके
पीछे मान्यता है कि कारोबारी अपने कारोबार से जुड़े आय-व्यय का ब्योरा
भगवान चित्रगुप्त जी के सामने रखते हैं और उनसे व्यापार में आर्थिक उन्नति
का आशीर्वाद मांगते हैं. भगवान चित्रगुप्त की पूजा में लेखनी-दवात का बहुत
महत्व है I
श्री चित्रगुप्त जी की आरती -
श्री विरंचि कुलभूषण,
यमपुर के धामी।
पुण्य पाप के लेखक, चित्रगुप्त स्वामी॥
सीस मुकुट, कानों
में कुण्डल अति सोहे।
श्यामवर्ण शशि सा मुख, सबके मन मोहे॥
भाल तिलक से
भूषित, लोचन सुविशाला।
शंख सरीखी गरदन, गले में मणिमाला॥
अर्ध शरीर जनेऊ,
लंबी भुजा छाजै।
कमल दवात हाथ में, पादुक परा भ्राजे॥
नृप सौदास अनर्थी, था
अति बलवाला।
आपकी कृपा द्वारा, सुरपुर पग धारा॥
भक्ति भाव से यह आरती जो कोई
गावे।
मनवांछित फल पाकर सद्गति पावे॥
चित्रगुप्त व्रत कथा -
सौदास नाम का एक राजा था I वह एक अन्यायी और अत्याचारी राजा था और उसके नाम
पर कोई अच्छा काम नहीं था I एक दिन जब वह अपने राज्य में भटक रहा था तो
उसका सामना एक ऐसे ब्राह्मण से हुआ जो पूजा कर रहा था I उनकी जिज्ञासा जगी
और उन्होंने पूछा कि वह किसकी पूजा कर रहे हैं I ब्राह्मण ने उत्तर दिया कि
आज कार्तिक शुक्ल पक्ष का दूसरा दिन है और इसलिए मैं यमराज (मृत्यु और
धर्म के देवता) और चित्रगुप्त (उनके मुनीम) की पूजा कर रहा हूं, उनकी पूजा
नरक से मुक्ति प्रदान करने वाली है और आपके बुरे पापों को कम करती है I यह
सुनकर सौदास ने भी अनुष्ठानों का पालन किया और पूजा की I बाद में जब उनकी
मृत्यु हुई तो उन्हें यमराज के पास ले जाया गया और उनके कर्मों की
चित्रगुप्त ने जांच की I उन्होंने यमराज को सूचित किया कि यद्यपि राजा पापी
है लेकिन उसने पूरी श्रद्धा और अनुष्ठान के साथ यम का पूजन किया है और
इसलिए उसे नरक नहीं भेजा जा सकता I इस प्रकार राजा केवल एक दिन के लिए यह
पूजा करने से, वह अपने सभी पापों से मुक्त हो गया I