भोपाल। भारत प्राचीनकाल से विभिन्न परम्पराओं, रीति रिवाजों, पर्व-त्योहारों के माध्यम से प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण का प्रयास करता रहा है जिसमे प्रकृति के पंचभूतों की आराधना विभिन्न तिथियों पर आयोजित पर्व-त्योहारों के माध्यम से किये जाने का प्रचलन है जिसके पीछे विशुद्ध वैज्ञानिकता एवं सामाजिकता का समावेश है जिसे जीवन पद्धति एवं दर्शन में धार्मिक अवसर के रूप में परिभाषित किया गया है। इसी अनुक्रम में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्य उपासना का महापर्व छठ पूजा का आयोजन पूर्णतया पवित्रता, मनोयोग एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है। समिति के संयोजक सतेन्द्र कुमार ने बताया कि यह महापर्व मुख्यतः पूर्वी भारत विशेषकर बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तरप्रदेश में भोजपुरी, मगही एवं मैथली लोगो द्वारा बड़े धूम-धाम से छठी माई एवं सूर्य देवता की पूजा समाज के सभी लोगों द्वारा की जाती है। यह महापर्व सूर्य, उषा, प्रकृति, जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन के देवताओं की कृपा सतत बनाये रखने के लिए धन्यवाद और कुछ शुभकामनाएं देने का निवेदन किया जाए। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से प्रारम्भ यह चार दिवसीय अनुष्ठान है जिसमे किसी मूर्ति की पूजा नहीं की जाती है बल्कि सृष्टि को प्रकाश एवं जीवन प्रदाय करने वाले सूर्य भगवान एवं छठी मैया की पूजा प्रकृति के विभिन्न पदार्थों के द्वारा पूजा की जाती है। त्यौहार के अनुष्ठान पूर्णतया पवित्रता एवं कठोर अनुशासन के अनुरूप मनाया जाता है। महापर्व छठ का आज प्रथम दिवस कार्तिक शुक्ल पक्ष के चतुर्थी को नहाय-खाय से प्रारम्भ हुआ है जिसमे पुरे घर की साफ़ सफाई की जाती है एवं पवित्रता के साथ अरवा चावल (कच्चा चावल), चना दाल, ओल (शुरण) एवं लौकी की सब्जी बनाया जाता है। इस भोजन को सर्वप्रथम छठव्रती द्वारा ग्रहण किया जाता है फिर घर एवं रिश्तेदार इस भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। महापर्व छठ का दूसरा दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी को लोहंडा अथवा खरना के रूप मनाया जाता है जिसमे चावल और दूध की खीर शक्कर के स्थान पर खीर गुड का उपयोग किया जाता है। इस दिन शाम को हवन के साथ प्रसाद के अर्पण के पश्चात छठव्रती द्वारा प्रसाद ग्रहण किया जाता है तत्पश्चात घर एवं रिश्तेदार इस भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। महापर्व छठ का तीसरा दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी को ठेकुआ, अनगिनत फल, नारियल, गन्ना, लडुआ आदि प्रकृति प्रदत वस्तुओं को बांस से बने सूप में सजाकर शाम के समय नहा-धोकर जल के श्रोत में अथवा उसके सामने खड़े होकर डूबते सूर्य को दूध एवं जल से अर्घ्य देते है। महापर्व छठ का समापन दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी को पूर्व दिन की भांति ही प्रातः काल में नहा-धोकर जल के स्रोत में अथवा उसके सामने खड़े होकर उगते सूर्य को दूध एवं जल से अर्घ्य देते है। इसके पश्चात सूर्य देव को प्रसाद एवं हवन अर्पित किया जाता है। इसके साथ ही चार दिवसीय महापर्व छठ पूजा का समापन हो जाता है। बिहार सांस्कृतिक परिषद के संयोजक सतेन्द्र कुमार ने बताया कि विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी परिषद् द्वारा सरस्वती देवी मंदिर प्रांगण, ई. सेक्टर, बरखेड़ा मे निर्मित सूर्यकुंड मे छठ महापर्व के भव्य आयोजन में अनुशासित रूप में कोरोना के शासकीय निर्देशों के अनुपालन में श्रद्धालु छठव्रती महिलाये/ पुरुष एवं भक्तगण भाग लेंगें। चार दिनों तक चलने वाला यह महापर्व इस वर्ष 8 नवम्बर, 2021 को नहाय–खाय से प्रारम्भ हुआ । कल 9 नवम्बर, 2021 को लोहण्डा/संझत तथा 10 नवम्बर को अस्तकाल सूर्य भगवान का प्रथम अर्ध्य (सायं) एवं 11 नवम्बर को उगते हुए सूर्य का द्धितीय अर्ध्य (प्रात:) देने के पश्चात सम्पन्न होगा। उक्त कार्यक्रम के आयोजन के लिए जिला प्रशासन, भोपाल से शासकीय अनुमति प्राप्त कर ली गयी है। उक्त आयोजन में कोरोना संबंधी शासकीय निर्देशों का पालन किया जावेगा। छठव्रती श्रद्धालुओं के स्नान करने हेतु पवित्र कुआं से लाइव सवार लगाया गया है। स्नान करने के उपरांत कुंड में प्रवेश करना है। इनके लिए उत्तम व्यवस्था किया गया है। परिषद के कार्यकर्ताओं द्वारा विगत 20 दिनों से लगातार स्वच्छता अभियान चलाकर पवित्रता का विशेष ध्यान रखा गया है। नगर निगम द्वारा समुचित प्रकाश की व्यवस्था, चेंजिंग रूम, कलाकारों हेतु मंच, टेंट एवं उत्तम बैठक व्यवस्था का आयोजन किया जाएगा। इस पावन अवसर पर उपवास-10 नवम्बर को सायं से पारण-11 नवम्बर तक छठ मईया के मधुरिम गीत/देवी जागरण एवं भजन गायन की प्रस्तुति बिहार के प्रसिद्ध लोक गायक अनुज अनमोल एवं लोक कलाकारों द्वारा किया जावेगा। परिषद के कार्यकर्ताओं द्वारा निःशुल्क नये धान का चावल, फल, गर्म पानी, चाय इत्यादि की व्यवस्था किया जा रहा है।