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चन्द्र विजय : अब दक्षिण को अशुभ न कहे कोई...!

Updated on 25-08-2023 10:48 AM
सौंदर्य और शीतलता, टैब और दाग के प्रतीक चंद्रमा पर 23 अगस्त के (धरती पर) सूर्य के समय भारतीय विज्ञान का सूर्योदय इतिहास में स्वर्णिम अभिलेख में दर्ज हो गया है। इस बार कहे गए भारत के दिल में विश्वास तो था, लेकिन मन में ऊंचाई सी धुकधुकी भी थी कि कहीं 2018 वाला अनचाहा प्रसंग न अनिश्चितता जाए। लेकिन हमारे वैज्ञानिकों की प्रतिभा और संकल्प ने वह अशुभ विचार दिया कि इस बार पृथ्वी तो क्या चांद के गुरुत्वाकर्षण से भी बाहर रखी गई है। सब कुछ तयशुदा तरीके से, वैज्ञानिक शास्त्र के हिसाब से हुआ। रविवार शाम 6 बजे 4 मिनट पर चंद्रयान 3 के 4 के अवशेष ने चांद की धरती को ले लिया। इस अद्भुत स्वप्न की कौंध को भारत के 140 करोड़ लोगों ने महसूस किया। अंतरिक्ष की इस महाविजय ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि भारत सैन्य विजयों में नहीं, संकल्प विजयों में विश्वसनीय है। एक महाकठिन सा मिशन अब कार्यकर्ता के रूप में हमारे सामने है। घमंड से कहो, हमने चाँद को जीत लिया है। 
चंद्रयान 3 का मिशन कई मायनों में अहम है। पहला तो यह कि साइंटिस्ट मिशन मज़हबी टोटकेबाजी से पूरी नहीं होती। याद करें 2018 में आखिरी घड़ी में असफल रहा चंद्रयान 2 का मिशन। दूसरी असफलता के बाद इसरो के गरीब बच्चों की तरह फफक कर रो पड़े थे और कुल पिता की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ढाढस बंधाया था। इसमें यह भाव निहित था कि असफलता ही सफलता का राजमार्ग तैयार करती है। नाकामियों के रोने की जगह उसे नई चुनौती के रूप में स्वीकार करें। उदाहरण से सबक लेना और अगली बार उसे न दोहराना ही मनुष्य की पञ्जीविषा और अथाह मेधा की पहचान है। इसरो के वैज्ञानिको ने यह कर दिखाया। इस बार 'जीरो मिस्टेक' मिशन पर काम हुआ और नतीजे सामने आए। हो सकता है कि चांद का असली चेहरा, उसकी शान भरी सतह की तस्वीरें, उसकी बेहवा फ़िज़ियन शायरों का नाम कुछ कम हो, लेकिन एक अक्षम राष्ट्र के रूप में भारत का झंडा वहां गढ़ चुका है। 
हमारे उत्पादों ने एक और धारणा को नष्ट कर दिया है। चंद्र मिशन के लिए चांद के उस दक्षिणी ध्रुव को चुना गया, जहां अभी तक कोई पहुंच नहीं पाई है। चंद्रमा के अंधेरे में डूबे दक्षिणी भागों में रहस्यों के मित्र हैं। मिशन चंद्रयान उनके कुछ हिस्सों को लॉन्च करेगा। दूसरे शब्दों में कहा गया है तो हमने चांद पर दक्षिण द्वार से प्रवेश कर विजय पताका फहराई है, उस दक्षिण दिशा को, जिसे भारतीय परंपरा में 'अशुभ' से जोड़ा गया है। इसलिए लोग दक्षिण मुखी घर, दक्षिण दिशा में जाने आदि को तलाते हैं। क्योंकि दक्षिण दिशा में मृत्यु के देवता यम का वास है। मनो दक्षिण दिशा मृत्यु का तोरण द्वार हो। पारंपरिक सिद्धांतों का अपना आधार और आग्रह हो सकता है लेकिन विज्ञान के लिए दक्षिण दिशा एक है, जिसके जरिए ब्रह्मांड के रहस्यों को जाना जा सकता है। इन रहस्यों को जानें और मानव कल्याण के लिए इनका उपयोग करना ही विज्ञान का सच्चा धर्म है। इस बार कहे देश ने मिशन चंद्रयान की सफलता की कामना की। गनीमत रही कि किसी ने चंद्रयान के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने को लेकर खतरे का झटका की हिमाकत नहीं की। आशय वैज्ञानिक पूरे मनोयोग से अपना लक्ष्य प्राप्त कर सके। चंद्रयान 3 की कहानी में राजनीतिक अनिश्चितता भी महसूस की गई। इस आशय में सही है कि आज देश का नेतृत्व हाथों में है, उनका संकल्प और योगदान तो है। लेकिन सफलता का पहला श्रेय तो हमारे उन कलाकारों को है, जो जी जान से इस मिशन में लगे रहे और उनमें से ज्यादातर ये देश के टुकड़े भी नहीं जानते हैं सोशल मीडिया पर बेहुदा डांस या कमेंट करने वालों को जानते हैं। ये इस देश की नाकामी है. जो जी जान से इस मिशन में लगे रहे और उनमें से ज्यादातर ये देश के अवशेष भी नहीं जानते हैं सोशल मीडिया पर बेहूदा डांस या कमेंट करने वालों को जानते हैं। ये इस देश की नाकामी है. जो जी जान से इस मिशन में लगे रहे और उनमें से ज्यादातर ये देश के अवशेष भी नहीं जानते हैं सोशल मीडिया पर बेहूदा डांस या कमेंट करने वालों को जानते हैं। ये इस देश की नाकामी है. जो जी जान से इस मिशन में लगे रहे और उनमें से ज्यादातर ये देश के अवशेष भी नहीं जानते हैं सोशल मीडिया पर बेहूदा डांस या कमेंट करने वालों को जानते हैं। ये इस देश की नाकामी है. जो जी जान से इस मिशन में लगे रहे और उनमें से ज्यादातर ये देश के अवशेष भी नहीं जानते हैं सोशल मीडिया पर बेहूदा डांस या कमेंट करने वालों को जानते हैं। ये इस देश की नाकामी है. जो जी जान से इस मिशन में लगे रहे और उनमें से ज्यादातर ये देश के अवशेष भी नहीं जानते हैं सोशल मीडिया पर बेहूदा डांस या कमेंट करने वालों को जानते हैं। ये इस देश की नाकामी है. जो जी जान से इस मिशन में लगे रहे और उनमें से ज्यादातर ये देश के अवशेष भी नहीं जानते हैं सोशल मीडिया पर बेहूदा डांस या कमेंट करने वालों को जानते हैं। ये इस देश की नाकामी है.
चंद्रयान के लिए अगले 14 दिन काफी महत्वपूर्ण हैं। चाँद की धरती को मूर्तियाँ ही काफी नहीं है, उसके अग्रभाग विक्रम और प्रज्ञान को काफी काम करना है। यकीनन हम चांद को देखकर खुशियां मनाते हैं, पर चांद इन यांत्रिक विज्ञानों को देखकर कौतुहल के साथ चमकते रहेंगे। 
अजय बोकिल, संपादक, लेखक 

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