लंदन । एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन से यह नतीजा निकला है कि अगर दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन ऐसे ही बढ़ता रहा तो इस सदी के अंत तक महासागरों का वैश्विक जल स्तर 40 सेमी तक बढ़ जाएगा। इसकी सबसे बड़ी वजह अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड का बर्फ की चादरों का लगातार पिघलना है। अध्ययन में कहा गया है कि इन विशाल बर्फ की चादरों में इतना जमा हुआ पानी है कि वे महासागरों का जलस्तर 65 मीटर तक उठा सकते हैं। शोधकर्ताओं ने इनके पिघलने की दर बढ़ने पर चिंता जताई है। दुनिया भर के तीन दर्जन से ज्यादा शोध संस्थानों के विशेषज्ञों ने तापमान और समुद्री क्षारीयता के आंकड़ों का उपयोग बहुत से कम्प्यूटर मॉडल्स में किया और ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका के ग्लेशियर्स में संभावित नुकसान का सिम्यूलेशन से पता लगाया। उन्होंने दो हालातों का के मुतबिक अध्ययन किया। पहला, जहां इंसान वर्तमान स्तर का प्रदूषण जारी रखेगा और दूसरा जहां 2100 तक कार्बन बहुत ज्यादा मात्रा में कम हो जाएगा। शोधकर्ताओं ने पाया कि उच्च उत्सर्जन स्थिति अंटार्कटिका में बर्फ के नुकसान से इस सदी के अंत तक जलस्तर 30 सेमी बढ़ जाएगा।
जबकि ग्रीनलैंड का योगदान 9 सेमी होगा। इसका पूरी दुनिया पर बहुत नुकसानदायक असर होगा जिससे तूफानों की विनाश शक्तियां बढ़ जाएंगी और किनारे पर रहने वाले लोगों के घर बार बार डूबने लगेंगे। कम उत्सर्जन की स्थिति में भी ग्रीनलैंड की चादर साल 2100 तक महासागरों का जलस्तर तीन सेमी बढ़ा देगी। जबकि औद्योगिक युग में अभी तक यह स्तर केवल एक ही सेमी बढ़ा है। पोस्टडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च में क्लाइमेट और आइसशीट्स के विशेषज्ञ एंडर्स लीवरमैन का कहना है कि यह कोई हैरान करने वाली बात नहीं हैं कि यदि हम अपने ग्रह को और गर्म करेंगे तो ज्यादा बर्फ पिघलेगी। लेकिन यह हमारे हाथ में है कि हम समुद्र का जलस्तर कितनी जल्दी और कितना बढ़ने देते हैं। 21वीं सदी की शुरुआत तक पश्चिम अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड की बर्फ की चादरों में जितना भार पिघलता था उतना ही बर्फबारी से जमा भी हो जाता था। लेकिन पिछले दो दशकों से यह संतुलन गड़बड़ा गया है। पिछले साल ग्रीनलैंड में ही रिकॉर्ड 532 अरब टन बर्फ का नुकसान हुआ जिससे 2019 में ही महासागरों का जलस्तर 40 प्रतिशत बढ़ गया था।
संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ने पृथ्वी की जमी हुई जगहों पर खास रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया है कि साल 2100 तक ग्रीनलैंड की बर्फ पिघल कर समुद्री जल स्तर 8 से 27 सेमी बढ़ा देगी। वहीं इस रिपोर्ट में अनुमान है कि अंटर्कटिका का इसमें योगदान 3 से 28 सेमी तक होगा। अध्ययन ने कहा था कि 2007 से 2017 तक जितना नुकसान हुआ है वह आईपीसीसी के बहुत ही अति स्थिति के पूर्वानुमानों से मेल खाता है। इसमें भी पूर्वानुमान लगाया गया था कि 2100 तक महासागरों का जलस्तर 40 सेमी तक बढ़ जाएगा। इसके लेखकों का कहना है कि अध्ययन दुनिया के महासागरों पर उत्सर्जन की बढ़ती भूमिका पर जोर देता है। इसकी प्रमुख शोधकर्ता सोफी नोविकी का कहना है कि सबसे बड़ी अनिश्चितता यही है कि बर्फ की चादरें वास्तव में समुद्री स्तर के बढ़ने के लिए कितना योगदान देंगीं। काफी कुछ जलवायु पर निर्भर करता है। इस मामले में लीवरमैन का कहना है कि हम जानते हैं कि कुछ होगा बस यह नहीं जानते कि कितना खराब होगा।