पांच देशों की सदस्यता वाले ब्रिक्स समूह में अब 6 और देशों अर्जेंटीना, यूएई, ईरान, सऊदी अरेबिया, इथोपिया व मिस्र को भी शामिल करने का निर्णय लिया गया है। ‘ब्रिक’ गोल्डमैन सैक्स के अर्थशास्त्री जिम ओश्नील द्वारा 2001 में गढ़ा गया एक शब्द है, ब्रिक औपचारिक रूप से 2009 में अस्तित्व में आया, जब इसका पहला शिखर सम्मेलन हुआ। ऐसे समूह के गठन की चर्चा 2006 में शुरू हो गयी थी। 2011 में दक्षिण अफ्रीका औपचारिक रूप से ब्रिक में शामिल हो गया और तब से इस समूह को ब्रिक्स के नाम से जाना जाता है। वैसे तो मुल्कों के समूह बनाकर आपसी सहयोग को आगे बढ़ाना अंतरराष्ट्रीय जगत में एक आम बात है, लेकिन ब्रिक्स, देशों का एक समूह मात्र नहीं है। वास्तव में अभी तक अमरीका और पश्चिम के देशों का वैश्विक व्यवस्था में एक दबदबा बना हुआ था, जो देश उनकी आर्थिक ताकत को चुनौती दे रहे थे, यह उन देशों का समूह है। वर्तमान में जो पांच देश ब्रिक्स में शामिल हैं, इन देशों में तेजी से जीडीपी में वृद्धि हो रही है।
वैश्विक जीडीपी में इन पांच ब्रिक्स देशों की हिस्सेदारी, जो वर्ष 2011 में केवल 20.51 प्रतिशत थी, वर्ष 2023 तक बढक़र 26.62 प्रतिशत हो गई है। ब्रिक्स बनने से पहले विकासशील देशों की आवाज उठाने के लिए कोई प्रभावी वैश्विक मंच नहीं था। ब्रिक्स बनने के बाद विकासशील देशों के मुद्दों को थोड़ी बहुत आवाज उठना शुरू हुई। अब और कई विकासशील देश ब्रिक्स की सदस्यता लेने हेतु इच्छुक हैं। इस सम्मेलन में जहां 6 और देशों को ब्रिक्स में शामिल करने का निर्णय किया गया है, यह समझने की जरूरत है कि ब्रिक्स के इस विस्तार के क्या अर्थ हैं? ब्रिक्स में 6 देशों को शामिल करने के बाद, विस्तृत ब्रिक्स समूह वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 29.6 प्रतिशत और वैश्विक जनसंख्या का 46 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करेगा। ब्रिक्स जैसे समूह विकासशील देशों के हितों की रक्षा करने का प्रयास करते हैं। गौरतलब है कि वर्तमान समय में अमेरिका और यूरोप जैसे देश विकासशील देशों पर अपनी शर्तें थोपने की कोशिश करते हैं।
दुनिया के अधिकांश विकासशील देश अब अमरीका और यूरोप से आशंकित हैं। विकसित देशों की इस प्रकार की मनमानी के चलते विकासशील देश नये रास्ते खोजने की कोशिश में हैं। पहले ब्रिक्स और अब उसका विस्तृत रूप विकासशील देशों की उन अपेक्षाओं को कैसे पूर्ण करेगा, एक प्रश्न है?चीन और रूस को छोड़ शेष सभी देश व्यापार घाटे की समस्या से जूझ रहे हैं। अभी तक समस्त अंतरराष्ट्रीय व्यापार का निपटान अधिकांशत: अमरीकी डॉलरों में ही होता रहा है, और इन सभी देशों की मुद्राओं का लगातार अवमूल्यन भी होता रहा है। यही नहीं व्यापार घाटे और भुगतान घाटे से जूझते हुए ये देश कई बार भुगतानों की समस्याओं का भी सामना करते रहे हैं। इस भुगतान शेष की समस्या का कुछ हद तक समाधान देशीय मुद्रा में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के भुगतान से हो सकता है।
भारत ने रुपए में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के भुगतान की तरफ कदम बढ़ाया है और 19 देशों के साथ इस संबंध में उल्लेखनीय प्रगति भी हुई है। विकासशील देश मोटे तौर पर देशीय मुदाओं में अंतरराष्ट्रीय भुगतानों के संबंध में कोई विशेष सफलता हासिल नहीं कर पाये। पिछले कुछ समय से ब्रिक्स में देशीय मुद्रा में अंतरराष्ट्रीय भुगतान के बारे में वार्ताएं चल रही हैं। यही नहीं ब्रिक्स देशों के बीच ब्रिक्स कैरेंसी के नाम पर एक नई रिजर्व कैरेंसी शुरू करने की कवायद भी चल रही है।
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