2007 की बात है। पाकिस्तान के आम चुनाव में महज 2 महीने बाकी थे। 27 दिसंबर को पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की नेता बेनाजीर भुट्टो रावलपिंडी में एक रैली कर अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ रही थीं। तभी एक 15 साल के लड़के बिलाल ने उन पर गोली चला दी और फिर धमाका कर खुद को उड़ा दिया।
बेनजीर की हत्या को 3 दिन ही हुए थे कि 30 दिसंबर को 19 साल के लड़के को पार्टी में उनके पद पर बैठा दिया गया। इतनी कम उम्र में पार्टी में चेयरमैन का पद उसे सियासी हुनर की वजह से नहीं मिला था।
दरअसल, चेयरमैन बनने वाला लड़का कोई और नहीं बल्कि पाकिस्तान की इकलौती महिला प्रधानमंत्री रहीं बेनाजीर भुट्टो और आसिफ अली जरदारी का बेटा बिलावल भुट्टो था। अब बेनाजीर की मौत को 16 साल गुजर चुके हैं।
पाकिस्तान फिर एक सियासी भूचाल से गुजर रहा है, फरवरी 2024 में चुनाव हैं। नवाज शरीफ 4 साल के देश निकाले के बाद सियासत के लिए मुल्क लौट चुके हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान जेल में कैद हैं। इस बीच पाकिस्तान पीपल्स पार्टी ने एक बार फिर बिलावल पर दांव खेला है। उन्हें पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित किया है।
सितंबर 1988 में बिलावल भुट्टो जिस परिवार में पैदा हुए, उससे ये तय हो गया था कि वो पाकिस्तान की सियासत से अनछुए नहीं रह सकेंगे। बिलावल पाकिस्तान के आम चुनावों से लगभग दो महीने पहले 21 सितंबर 1988 को पैदा हुए थे, इस चुनाव में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को जीत हासिल हुई थी।
जब उनकी मां बेनजीर ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तब बिलावल लगभग 3 महीने के थे। बेनजीर न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि पूरे मुस्लिम जगत की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं। उनके नाना जुल्फिकार अली भुट्टो पहले पाकिस्तान के राष्ट्रपति और फिर प्रधानमंत्री रह चुके थे।
उनके पिता आसिफ अली जरदारी भी पाकिस्तानी राजनीति के जाने-माने चेहरे थे। हालांकि, बिलावल की मां और नाना की तुलना में आसिफ अली जरदारी की छवि ज्यादा मजबूत नहीं थी। बिलावल जब 2 साल के थे तो जरदारी को जेल जाना पड़ा था। उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। जरदारी पाकिस्तान में मिस्टर 10 परसेंट के नाम से कुख्यात थे।
उन पर आरोप थे कि उन्होंने अपनी पत्नी के प्रधानमंत्री बनने का फायदा उठाकर हर प्रोजेक्ट में 10 परसेंट का कमीशन लिया। 1988 से 2007 तक जरदारी ने 14 साल पाकिस्तान की जेल में बिताए हैं। यानी बिलावल के बचपन के ज्यादातर वक्त उनके पिता जेल में थे।
बिलावल ने अपना ज्यादातर बचपन लंदन और दुबई में बिताया था। मां की मौत और अचानक पार्टी में इतने अहम पद पर बिठाए जाने के बावजूद बिलावल शुरुआत में राजनीति में एक्टिव नहीं रहे। वो हिस्ट्री में डिग्री हासिल करने के लिए ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी लौट गए।
2010 में वो वापस पाकिस्तान लौटे तो उनके पिता आसिफ और मुल्क के प्रधानमंत्री युसफ रजा गिलानी भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे हुए थे। गिलानी को 2 साल में ही कुर्सी छोड़नी पड़ी थी।
2 साल तक बिलावल भुट्टो पाकिस्तान में रहे, हालांकि इस वक्त भी वो पार्टी के कार्यक्रमों तक सीमित थे। उनकी ऑफिशियल एंट्री बेनजीर की 5वीं बरसी के दिन 27 दिसंबर 2012 को हुई। पाकिस्तान में आम चुनाव का मौका था। बिलावल को उनके पिता की अगुआई में एक रैली में पाकिस्तान की आवाम के सामने संबोधित करने के लिए लाया गया।
बिलावल का पहला भाषण
24 साल के बिलावल अपना पहला भाषण मुंहजुबानी याद कर आए थे। पहली बार था जब वो बिना किसी पर्चे के स्टेज पर थे। आसिफ अली जरदारी ने उनके हाथ को हवा में उठाकर जनता के सामने पेश किया। जियो टीवी के पत्रकार हामिद मीर के मुताबिक भुट्टो की उर्दू अच्छी नहीं होने के बावजूद उन्होंने बिना हिचक अपना भाषण पढ़ा।
पहले भाषण में भुट्टो ने अंग्रेजी लहजे वाली उर्दू में कहा था - मैं जुल्फिकार अली भुट्टो का वारिस, मैं शहीद बेनजीर भुट्टो का बेटा आपसे पूछता हूं। मेरी मां के कातिल जो गिरफ्तार हैं, उन्हें सजा क्यों नहीं मिल रही है। अगर आप एक भुट्टो मारोगे तो हर घर से भुट्टो निकलेगा।
उन्होंने अपनी मां की तरह आवाम की रोटी कपड़ा और मकान की जरूरत पूरी करने का वादा किया। कुछ लोग उनमें बेनाजीर की झलक देख पा रहे थे, हालांकि, कुछ लोगों को वो अपने पिता की कठपुतली लग रहे थे, जो भुट्टो के नाम का इस्तेमाल कर सियासत में बने रहना चाहते थे।
इस वक्त बिलावल अकेले नहीं थे, जो पाकिस्तान की सियासत में पहली बार कदम रख रहे थे। उनके साथ पाकिस्तान क्रिकेट के पोस्टर बॉय इमरान खान पहली बार चुनाव लड़ रहे थे। क्रिकेट से राजनीति में एंट्री करने वाले इमरान बिलावल को किसी नौसिखिया से ज्यादा अहमियत नहीं देते थे। वो बार-बार बिलावल की कमजोर उर्दू पर उनका मजाक बनाते।
बिलावल के ठीक उलट इमरान ने पाकिस्तान की राजनीति में जगह बनाने के लिए इस्लाम का सहारा लिया। वो तालिबान का समर्थन करने लगे। उस वक्त इमरान ने भारत को दौरा सिर्फ इसलिए रद्द कर दिया क्योंकि वहां लेखक सलमान रुश्दी के आने की संभावना थी। वही सलमान रुश्दी जिन पर इस्लाम की तौहीन करने के आरोप लगते हैं।
धार्मिक छवि अपनाने का इमरान को ये फायदा मिला की उनकी पार्टी को 2013 के आम चुनाव में 35 सीटों पर जीत मिली। जबकि पाकिस्तान पीपल्स पार्टी को 76 सीटों का घाटा हुआ और वो 118 से 42 सीटों पर आकर सिमट गई। इस चुनाव में नवाज शरीफ की पार्टी विजेता बनकर उभरी।
पिता ने मतभेद हुए तो मां की बरसी तक में नहीं आए बिलावल
पिता के साय में सियासत की शुरुआत करने वाले बिलावल को 2014 में बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। बिलावल के उनके पिता आसिफ अली जरदारी से मतभेद बढ़ने लगे। दोनों के मनमुटाव से पार्टी दो हिस्सों में बंटने लगी। बिलावल के समर्थकों को भुट्टो कॉमरेड्स और उनके पिता के समर्थकों को जरदारी के वफादार कहा जाने लगा।
दोनों ही अपनी जिद्द से पीछे हटने को तैयार नहीं थे। हालात ये हो गए कि बिलावल अपनी मां की सातवीं बरसी के कार्यक्रम तक में नहीं पहुंचे थे। बताया गया कि दोनों के बीच टिकट बंटवारे और पार्टी को चलाने के तरीकों को लेकर मतभेद थे। एक वक्त पर तो जरदारी ने बिलावल को साइडलाइन करने तक का फैसला कर लिया था।
बिलावल अपने भाषणों में सीधे विपक्षी पार्टियों पर तंज कसते थे, ये बात जोड़-तोड़ की राजनीति करने वाले उनके पिता को नहीं जंचती थी। वो चाहते थे कि बिलावल अपने भाषणों में नरमी बरतें। बाद में परिवार के दखल के बाद आसिफ अली जरदारी ने बिलावल से सुलह की थी।
बिलावल का पहला चुनाव
पत्रकार इम्तिआज अहमद के मुताबिक पाकिस्तान पीपल्स पार्टी ने 2018 का चुनाव बिलावल भुट्टो के चेहरे के साथ लड़ा। हालांकि, ये पहले ही तय था कि उनका प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचना नामुमकिन है। बिलावल ने चुनाव से पहले पूरे पाकिस्तान का दौरा किया। एक तरफ जहां सभी पार्टियां सियासी फायदे के लिए गाली-गलौच और नीजी हमलों पर उतर आई थीं, वहीं बिलावल ने ऐसा नहीं किया। एक बार खैबर पख्तूनख्वा में उनकी रैली पर पत्थरबाजी हुई। इस वक्त भी वो मुस्कुराते रहे। उन्होंने अपने समर्थकों और पार्टी के वर्करों में जोश भरा। इस वक्त पार्टी अपने सबसे बुरे दौर में थी। इसकी वजह उनके पिता को बताया जाता है। उन्होंने नवाज शरीफ की सरकार गिराए जाने का विरोध नहीं किया, जबकि दोनों पार्टियों के बीच इस बात को लेकर समझौता था कि वो सेना को एक दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने देंगे। चुप रहने के बदले सेना ने जरदारी पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप हटा दिए थे।
2018 के चुनाव में बिलावल ने बिना कोई रिस्क लिए तीन सीटों से चुनाव लड़ा। रणनीति ये थी कि उन्हें किसी भी कीमत पर जीतकर पाकिस्तानी की नेशनल असेंबली तक पहुंचना था। बिलावल तीन में से सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल कर पाए। वो भी सिंध की सीट से, जहां उनके परिवार की मजबूत पकड़ मानी जाती है। 2018 के चुनाव में भी बिलावल PPP के लिए कुछ चमत्कारी प्रदर्शन नहीं कर पाए। उनकी पार्टी को महज 54 सीटें जीत पाई और तीसरी नंबर पर रही। सेना के चहेते इमरान प्रधानमंत्री बन गए।
पहली बार नेशनल असेंबली में अपने भाषण से बिलावल ने जनता से खूब तारीफें बटोरीं। इतनी की उनके भाषण के खत्म होने पर नए-नए प्रधानमंत्री बने इमरान खान तक ने उनकी तारीफ में टेबल थपथपाया।
PM मोदी को अपशब्द कहकर भारत से रिश्ते बिगाड़े
बिलावल उन चुनिंदा पाकिस्तानी नेताओं में शामिल हैं जो भारत से अच्छे रिश्तों और पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा करने के हिमायती हैं। एक बार उन्होंने मंदिर में पूजा भी की थी, यह बात अक्टूबर 2016 की है। दिवाली की पूर्व संध्या पार्टी के नेताओं के साथ बिलावल ने कराची के क्लिफ्टन रोड पर शिव मंदिर में पूजा की। बिलावल ने शिवजी को जल चढ़ाकर अभिषेक किया।
वहीं, 2018 में एक भारतीय न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में बिलावल ने कहा था- भारत-पाकिस्तान में विवाद होने के बावजूद दोनों देशों को शांति के लिए रास्ता तलाशना चाहिए। वो 2 बार भारत आए हैं।
पहली बार 2012 में पाकिस्तान की सियासत में कूदने से पहले और फिर 2023 में गोवा में हुई SCO की बैठक के दौरान। भारत के पहले दौरे पर बिलावल ने राहुल गांधी से मुलाकात कर उन्हें पाकिस्तान आने का न्यौता दिया था। वो अजमेर शरीफ भी गए थे।
भले ही बिलावल भारत-पाकिस्तान के बीच शांति के हिमायती होने के दावे करते हैं फिर भी उनके बयानों ने दोनों देशों के बीच काफी कड़वाहट पैदा की।
इमरान खान के तख्तापलट के बाद बिलावल को अप्रैल 2022 में मंत्रिमंडल में शामिल किया गया और वो पाकिस्तान के सबसे कम उम्र के विदेश मंत्री बने। इसके बाद उन्होंने लगातार बचकाने बयान देने शुरू कर दिए। बिलावल भुट्टो ने दिसंबर 2022 में PM मोदी पर टिप्पणी की थी।
क्या प्रधानमंत्री बनेंगे बिलावल भुट्टो जरदारी?
3 वजहों से लगाए जा रहे कयास...
1. सेना की मदद से विदेश मंत्री बनना: विल्सन सेंटर वॉशिंगटन में साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर माइकल कुगेलमैन के मुताबिक पहली बार बिलावल चुनाव जीतकर पाकिस्तान की संसद में पहुंचे। इससे पहले उन्हें सरकार में किसी बड़े मंत्रालय को चलाने का अनुभव नहीं था।
सेना के समर्थन के बिना ये संभव नहीं है कि सरकार में उन्हें विदेश मंत्री जैसा बड़ा पद मिले। इस्लामाबाद के पॉलिटिकल एक्सपर्ट मुर्तजा सोलांगी भी कहते हैं कि इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भुट्टो जरदारी अगले चुनाव के बाद एक कमजोर गठबंधन वाली सरकार का नेतृत्व कर सकते हैं।
2. शहबाज शरीफ से ज्यादा सेना का भरोसेमंद बनना: पिछले दिनों सेना की खुफिया एजेंसियों ने कई बड़े नेताओं के कॉल रिकॉर्ड किए। इनमें सिर्फ विपक्षी नेता नहीं बल्कि सत्ताधारी पार्टी के नेता भी शामिल थे। हालांकि, इस कॉल रिकॉर्ड में बिलावल की पार्टी के एक भी नेता शामिल नहीं थे। ये दिखाता है कि सेना को शहबाज से ज्यादा बिलावल और उनकी पार्टी पर भरोसा है।
कुगेलमैन के मुताबिक बिलावल भुट्टो जरदारी भले ही युवा और अनुभवहीन नेता हैं, लेकिन सत्ताधारी दलों के गठबंधन में उनकी एक खास जगह है। सेना के बड़े अधिकारी उनका समर्थन करते हैं। यही वजह है कि पाकिस्तान में भले ही अब तक कोई युवा PM नहीं, बना हो लेकिन सेना चाहे तो इस बार बिलावल जरूर बन सकते हैं।
3. पंजाब में अच्छे प्रदर्शन की संभावना: बिलावल की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) में इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) पार्टी छोड़ने वाले कई बड़े नेता शामिल हो सकते हैं। यही वजह है कि इस बार के चुनाव में पाकिस्तान के सिंध प्रांत के अलावा पंजाब में भी बिलावल की पार्टी ज्यादा सीटों पर जीत हासिल कर सकती है।
पाकिस्तान के नेशनल असेंबली की 266 सीटों में से आधी यानी 141 सीटें पंजाब क्षेत्र से है। इसलिए सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी को यहां अच्छा प्रदर्शन करना जरूरी है।