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भोपाल गैस त्रासदी- तत्कालीन कांग्रेस सरकार की त्रुटियाँ

Updated on 03-12-2023 09:11 AM
आज से 39 वर्ष पूर्व दो-तीन दिसंबर 1984 की वह काली रात विश्व इतिहास की सबसे औद्योगिक त्रासदी लेकर आई। युनियन कार्बाइड के प्लांट से वैज्ञानिक गैस मिथाइल आइसोसायनाइड का अध्ययन हुआ। जिसके कारण लगभग 5295 सार्वजनिक विद्यालय, महिलाएं, महिलाएं ,युवाओं की जान चली गई।जिन्को सरकार ने इस स्केलेबल गैस से मृत स्वीकारोक्ति कर मोर्टार दिया।जबकि शासन के ही रिकॉर्ड में 15 हजार दर्ज हैं।हजारों मूक उद्योग गाय,भैंस,बकारियां,घोड़े आदि की जान चली गई। ,धन,पशु बर्बाद हो गया है। यह नमूना मिथाइल आइसोसायनाइड गैस द्वितीय विश्व युद्ध के समय हिटलर ने गैस चैंबरों में उपयोग की थी। दुश्मन देश के सैनिकों को मौत की सजा देकर बंद कर दिया गया था। हिटलर ने 1984 में भोपाल की आकस्मिक सरकारी मान्यता की स्थापना की थी। दुनिया की सबसे भयानक औद्योगिक त्रासदी का स्मरण 39 साल बाद भी हो जाता है। इस कार्यक्रम में हुई मूर्तियां और केंद्र और राज्य सरकार की भूमिका पर कई अहम सवाल उठाए गए। थे।आज भी गैस इलेक्ट्रोलाइट के यह यक्ष प्रश्न हैं।

अन्य प्रश्न 1
अमेरिका की कंपनी यूनियन कार्बाइड भारत में प्लास्टिक के व्यापार के लिए सन 1969 में यूनियन कार्बाइड ऑफ इंडिया का नाम कंपनी का गठन करके भोपाल में औद्योगिक स्थापना की गई है। इसमें मिथाइल आइसोसायनाइड गैस अमेरिका से आयात की जाती थी। इसका प्रयोग करके सुपरमार्केट बनाये जाते थे। वर्ष 1970 में इस कंपनी ने मिथाइल आइसोसायनाइड गैस को भोपाल में ही अपने प्लांट में बनाने के लिए लाइसेंस के लिए आवेदन किया था। दी जाती है. प्रश्न यह है कि पांच साल बाद नामांकित लोगों को कंपनी में भर्ती करने का मौका दिया गया। प्रशासन को पता था कि यह स्केलेटन गैस है। 

अन्य प्रश्न 2
पूर्व की घटनाओं के बाद प्लांट के अंदरूनी उपकरणों और औद्योगिक सुरक्षा पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया? भोपाल गैस कांड अचानक नहीं हुआ था। दुर्घटना के पहले कई छोटी-छोटी दुर्घटनाएँ पिछले 3 वर्षों से हो रही थीं। जिस पर निर्माता कंपनी और प्रशासन ने औद्योगिक सुरक्षा, संयंत्र अभियंता का एवं अन्य संधारण के संबंध में दिशा निर्देश का उल्लघंन किया। 16 जून 1984 को एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र में वरिष्ठ पत्रकार प्रिंस केसवानी का आलेख प्रकाशित हुआ था। लेख का शीर्षक भोपाल स्कॉलर के मुहाने पर दिया गया था। लेख में पिछले कई वर्षों से होने वाली समाजवादी पार्टी के बारे में उल्लेख किया गया था। 5 अक्टूबर 1982 के दिन यूनियन भी कार्बाइड प्लांट में दुर्घटना हुई थी। भगदड़ के कारण कई लोग शारीरिक रूप से घायल हो गए। तो दौरे से भी नहीं मिला। वर्ष 1983 में भी इस प्लांट में दो बार दुर्घटना हुई लेकिन कंपनी ने प्लांट के रखरखाव के लिए स्थायी रूप से पैसा बरकरार रखा। सुरक्षा मंजूरी की मंजूरी नहीं दी गई। नहीं किया. लोगों के जीवन की देखभाल। गैस प्लांट का डिज़ाइन त्रुटिपूर्ण था। निर्माता मिथाइल आइसोसायनाइड गैस को भूमिगत टैंकों में रखते थे। टैंक के आयतन से आधा भरा जाता था। छोटे-छोटे लोहे के टैंकों में संधारण करना था। तापमान भी शून्य से 15 डिग्री सेल्सियस के बीच बनाए रखने के लिए कूलिंग सिस्टम भी ठीक से काम नहीं कर रहा था। टैंक का निर्माण कार्टून स्टील टाइप 304 एवं 316 से नहीं हुआ। भंडारन के निर्देशों का पालन भी स्वीकृत रूप से नहीं किया गया।

अन्य प्रश्न 3
जब लोगों ने कई गैस पीड़ित संगठनों को अपने अधिकार के लिए छोड़ दिया, तो कानून की लड़ाई शुरू हो गई। जबलपुर, भोपाल, दिल्ली में केस चले गए। तब भारत सरकार को यह अनुभव हुआ कि सभी केसों और एपिसोडों को पालक के रूप में एक साथ निभाना चाहिए। सरकार ने भोपाल गैस लिमिटेड कंपनी यूनियन कार्बाइड से लड़ने के लिए 3900 करोड रुपए के कारोबार का दावा किया। 15 फरवरी 1989 को केंद्र की राजीव गांधी सरकार के समय यह समझौता हुआ। कम राशि पर समझौता कर लिया गया, जबकि गैस के लगभग 10 लाख से अधिक सिद्धांत थे। जिनमें से केवल 5 लाख को ही स्वीकार किया गया था। बाकी सभी दावों को रद्द कर दिया गया। यदि एग्रीमेंट राशि और अधिक होती तो सभी स्टेकलिस्ट के एम्बास्ट पर और अधिक सामग्रियां मिल सकती थीं? 

अन्य प्रश्न 4 
हमारे पर्यावरण को जो नुकसान पहुंचा उसकी भरपाई भी हो सकती है। केमिकल क्यों नहीं बनाया?

अन्य प्रश्न 5
हजारों लोगों के हत्यारे, अंग्रेजी कानून के अनुसार कारपोरेट मेन सलाहकार के मुख्य सैमुअल वारेन एंडरसन को कांग्रेस की राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने अमेरिका को क्यों भेजा?
भारत के कानून के अनुसार कार्यवाही क्यों नहीं की गई?

-सत्येन्द्र जैन, संपादक, लेखक

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