भावार्थ:-मैं श्री रघुनाथजी के नाम 'राम' की वंदना करता हूँ, जो कृशानु (अग्नि), भानु (सूर्य) और हिमकर (चन्द्रमा) का हेतु अर्थात् 'र' 'आ' और 'म' रूप से बीज है। वह 'राम' नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप है। वह वेदों का प्राण है, निर्गुण, उपमारहित और गुणों का भंडार है॥
राम शब्द ‘रा’ रकार ‘म’ मकार से मिलकर बना है। ‘रा’ अग्नि स्वरूप है यह हमारे दुष्कर्मों का दाह करता है। ‘म’ जल तत्व का द्योतक है। जल आत्मा की जीवात्मा पर विजय का कारक है। इस प्रकार पूरे तारक मंत्र "श्रीराम जय राम जय जय राम" का सार है शक्ति से परमात्मा पर विजय।
अब रामनाम उच्चारण की वैज्ञानिकता समझते हैं:
योग शास्त्र में ‘रा’ वर्ण को सौर ऊर्जा का कारक माना गया है। यह हमारी रीढ़ रज्जु के दायीं ओर स्थित पिंगला नाड़ी में स्थित है। यहां से यह शरीर में पौरुष ऊर्जा का संचार होता है।
‘म’ वर्ण को चंद्र ऊर्जा का कारक अर्थात् स्त्रीलिंग माना गया है। यह ऊर्जा रीढ़ रज्जु के बायीं ओर स्थित इड़ा नाड़ी में प्रवाहित होती है। इसीलिए कहा गया है कि श्वास और निःश्वास तथा निरंतर रकार ‘रा’ और मकार ‘म’ का उच्चारण करते रहने के कारण दोनों नाड़ियों में प्रवाहित ऊर्जा में सामंजस्य बना रहता है।
अध्यात्मवाद में माना गया है कि जब व्यक्ति ‘रा’ शब्द का उच्चारण करता है तो इसके साथ-साथ उसके आंतरिक पाप बाहर आ जाते हैं। इस समय अंतःकरण निष्पाप हो
जाता है।
अभ्यास में भी ‘रा’ को इस प्रकार उच्चारित करना है कि पूरे का पूरा श्वास बाहर निकल जाए। इस समय ‘तान्देन’ से रिक्तता अनुभव होने लगती है। इस स्थिति में पेट बिल्कुल पिचक जाता है।
किंतु ‘रा’ का केवल उच्चारण मात्र ही नहीं करना है। इसे लंबा खींचना है रा...ऽ...ऽ...ऽ। अब ‘म’ का उच्चारण करें। ‘म’ शब्द बोलते ही दोनों होठ स्वतः एक ताले के समान बंद हो जाते हैं और इस प्रकार वाह्य विकार के पुनः अंतःकरण में प्रवेश पर बंद होठ रोक लगा देते हैं।
भावार्थ:-जो महामंत्र है, जिसे महेश्वर श्री शिवजी जपते हैं और उनके द्वारा जिसका उपदेश काशी में मुक्ति का कारण है तथा जिसकी महिमा को गणेशजी जानते हैं, जो इस 'राम' नाम के प्रभाव से ही सबसे पहले पूजे जाते हैं॥
राम नाम अथवा मंत्र जपते रहने से मन और मस्तिष्क पवित्र होते हैं और व्यक्ति अपने पवित्र मन में परब्रह्म परमेश्वर के अस्तित्व को अनुभव करने लगता है।