बांग्लादेश में चुनाव को एक दिन बचा है। पिछली कड़ी में आपने पढ़ा कि कैसे पूरा चुनाव प्रधानमंत्री शेख हसीना का ‘वन वुमन शो’ बनकर रह गया है। आज पढ़िए... कैसे विपक्ष के 14 दलों की चुनाव से दूरी हिंसा की वजह बन रही है। यही शेख हसीना के लिए नई मुसीबत भी है। विपक्ष की अपील पर लोग चुनाव से दूर रहे तो दुनिया में गलत संदेश जाएगा।
विपक्ष का कहना है कि चुनाव में पारदर्शिता नहीं है। ऐसे में चुनाव को चुनाव जैसा दिखाने के लिए हसीना सरकार का पूरा जोर अब वोटिंग बढ़ाने पर है। इसलिए पूरा सरकारी अमला लोगों को पोलिंग बूथ तक लाने में जुटा है।
पिछले चुनाव में 80% वोटिंग हुई
पिछली बार 80% वोट पड़े थे। चुनावी विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार 50% वोटिंग भी मुश्किल लग रही है। सत्ताधारी अवामी लीग के नेता और पूर्व मंत्री रमेशचंद्र सेन ने चेतावनी दी है कि जो लोग वोट नहीं डालेंगे, उनकी सरकारी मदद छीन ली जाएगी।
हालांकि, उनके इस बयान से पार्टी के अन्य नेता खुद को अलग कर रहे हैं, लेकिन चुनावी विशेषज्ञों का मानना है कि लोगों में संदेश चला गया है। सेन बयान पर कायम हैं और सरकार मौन। दरअसल, बांग्लादेश के 1.28 करोड़ परिवारों को सरकारी आर्थिक मदद मिलती है। इनमें ज्यादातर महिलाएं हैं।
पुलिस भी कैंपेन में उतरी- घर जाकर वोट डालने को कह रही
बांग्लादेश में पहली बार जब पार्टी वर्कर्स की तरह पुलिस भी गली-मोहल्लों में जाकर लोगों को वोट देने के लिए कह रही है। ढाका मेट्रोपोलिटिन पुलिस के कमिश्नर मो. हबीबुर रहमान खुद पार्षदों की बैठकें ले रहे हैं। वोटिंग बढ़ाने को कह रहे हैं।
इस पर भास्कर ने पुलिस हेडक्वार्टर में एआईजी इनामुल हक सागर से बात की। उन्होंने कहा- ‘पुलिस लोगों के घर-मोहल्लों में जाकर विश्वास दिला रही है कि वोटिंग के लिए बेखौफ होकर आएं। इसमें गलत क्या है?’
दूसरी ओर, पूर्व पीएम खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी के वर्कर्स लोगों को चुनाव से दूर रहने के लिए कर रहे हैं। ढाका में ऐसे ही एक कैंपेन को लीड कर रहे बीएनपी नेता जाहिर इस्लाम ने कहा- ‘किसी भी सूरत में वोटिंग नहीं होने देंगे।’ ऐसे में टकराव की आशंका बढ़ गई है।
ऐसे माहौल में हिंसा व फर्जी वोटिंग की आशंका: पूर्व चुनाव आयुक्त
विपक्ष के उग्र तेवर देखते हुए पूरे देश में सेना तैनात कर दी है। दो तटीय जिले नौसेना के हवाले कर दिए गए हैं। बांग्लादेश में चुनाव को पारदर्शी रखने के लिए ‘लोकल ऑर्ब्जवर’ बनाने की व्यवस्था है। इस बार 84 संस्थाओं से 20,773 ऑर्ब्जवर चुने गए हैं।
2008 में 1.6 लाख ऑब्जर्वर थे, तब 8.1 करोड़ वोटर थे। इस बार वोटर 11.97 करोड़ हैं और ऑब्जर्वर 8 गुणा घटा दिए गए हैं। इस बारे में पूर्व चुनाव आयुक्त ब्रिगेडियर एम. सेखावत हुसैन कहते हैं- ‘मुझे चुनाव की पारदर्शिता पर शक है।
सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी समेत 14 पार्टियां चुनाव नहीं लड़ रहीं। फिर भी उम्मीदवार पिछले चुनाव से दोगुने हैं। ये तभी संभव है, जब डमी कैंडिडेट उतारे गए हों। मुझे फर्जी वोटिंग की आशंका है। इससे हिंसा भड़क सकती है।’