ज्योतिष शास्त्र .... कुंडली में (विवाह योग) विवाह (बाधक योग)
Updated on
02-04-2021 03:25 PM
विवाह यानि गृहस्थ जीवन की शुरुआत। विवाहोपरांत व्यक्ति सिर्फ व्यक्ति न रहकर परिवार हो जाता है एवं सामाजिक रुप से जिम्मेदार भी। समाज में उसकी प्रतिष्ठा भी बढ़ जाती है। कुंडली में मौजूद ग्रहों की दशा से व्यक्ति के दाम्पत्य जीवन को लेकर पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। पूर्वानुमान ही नहीं बल्कि यह भी कि व्यक्ति का दाम्पत्य जीवन सफल रहेगा या नहीं।
कुंडली में विवाह योग के कारक
कुंडली में विवाह योग के कारक ग्रहों के बारे में बृहस्पति पंचम पर दृष्टि डालता है तो यह जातक की कुंडली में विवाह का एक प्रबल योग बनाता है। बृहस्पति का भाग्य स्थान या फिर लग्न में बैठना और महादशा में बृहस्पति का होना भी विवाह का कारक है। यदि वर्ष कुंडली में बृहस्पति पंचमेश होकर एकादश स्थान में बैठता है तब उस साल जातक का विवाह होने की बहुत ज्यादा संभावनाएं बनती हैं। विवाह के कारक ग्रहों में बृहस्पति के साथ शुक्र, चंद्रमा एवं बुध भी योगकारी माने जाते हैं। जब इन ग्रहों की दृष्टि भी पंचम पर पड़ रही हो तो वह समय भी विवाह की परिस्थितियां बनाता है। इतना ही नहीं यदि पंचमेश या सप्तमेश का एक साथ दशाओं में चलना भी विवाह के लिये सहायक होता है।
कुंडली में विवाह योग के बाधक
बृहस्पति की दृष्टि पंचम पर पड़ने से उस समय विवाह के योग बन जाते हैं लेकिन यदि उसी समय एकादश स्थान में राहू बैठा हो वह नकारात्मक योग भी बनाता है जिससे बने बनाए रिश्ते भी बिगड़ जाते हैं और बनता हुआ काम रूक जाता है। कभी-कभी सुनने में आता है कि सब कुछ ठीक था परन्तु कुछ कारण बस सब काम बनते बनते रूक गये। इसका कारण है आपके विवाह के योगकारी ग्रहों पर पाप ग्रहों की दृष्टि। पंचम स्थान पर यदि अशुभ ग्रहों यानि कि शनि, राहू और केतू की दृष्टि पड़ती है तो यह विवाह में बाधक योग बना देती ।