रेड सी यानी लाल सागर में अमेरिकी नेवी को यमन के हूती विद्रोहियों के खिलाफ बड़ी कामयाबी मिली है। CNN की एक रिपोर्ट के मुताबिक- अमेरिकी वॉरशिप ने इस क्षेत्र में हूती विद्रोहियों के 12 से ज्यादा ड्रोन मार गिराए हैं। इस ऑपरेशन को शनिवार रात अंजाम दिया गया।
दूसरी तरफ, कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि अमेरिकी वॉरशिप ने जिन मिसाइलों का इस्तेमाल किया, उनकी जानकारी नहीं दी गई है। माना जा रहा है कि यह अमेरिका की नई और स्पेशल मिसाइल यूनिट है।
अब खतरा कम होगा
CNN की स्पेशल रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हूती विद्रोहियों के 12 से ज्यादा ड्रोन मार गिराए जाने का मतलब यह है कि लाल सागर में अमेरिकी वॉरशिप फुल एक्शन में आ गया है। सोमवार को अमेरिकी डिफेंस मिनिस्टर लॉयड ऑस्टिन इजराइल में थे। यहां उन्होंने साफ कहा था कि लाल सागर में सिर्फ इजराइल या अमेरिका को ही नहीं, बल्कि हर देश को हूती विद्रोहियों से खतरा है और इसे मुश्किल को जल्द काबू करना होगा।
अमेरिका ने यहां अपने सहयोगी देशों के साथ एक अलायंस भी बनाया है। इसका मकसद भी हूतियों के खतरे से निपटना है। कुछ दिन पहले हूती विद्रोहियों ने कहा था कि इजराइल का हमास के खिलाफ जंग में साथ देने वाले देशों के जहाजों को निशाना बनाया जाएगा।
इसके बाद दुनिया के कई देशों ने लाल सागर और अदन की खाड़ी में अपने जहाजों का रूट बदलने पर विचार किया है। हालांकि, दिक्कत ये है कि इससे ट्रांसपोर्टेशन का खर्च काफी हद तक बढ़ जाएगा।
अमेरिकी नेवी ने अब तक यह नहीं बताया कि लाल सागर में तैनात उसके वॉरशिप पर किस तरह के हथियार या मिसाइल मौजूद हैं। कुछ खबरों में कहा गया है कि इस जहाज पर नई हाईरेंज गन भी मौजूद है और इस गन से कम ऊंचाई पर उड़ने वाले हेलिकॉप्टर्स को भी मार गिराया जा सकता है।
यमन में कैसे पनपे हूती विद्रोही
2014 में यमन में गृह युद्ध शुरू हुआ। इसकी जड़ शिया-सुन्नी विवाद है। कार्नेजी मिडल ईस्ट सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों समुदायों में हमेशा से विवाद था जो 2011 में अरब क्रांति की शुरूआत से गृह युद्ध में बदल गया। 2014 में शिया विद्रोहियों ने सुन्नी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
इस सरकार का नेतृत्व राष्ट्रपति अब्दरब्बू मंसूर हादी कर रहे थे। हादी ने अरब क्रांति के बाद लंबे समय से सत्ता पर काबिज पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह से फरवरी 2012 में सत्ता छीनी थी। हादी देश में बदलाव के बीच स्थिरता लाने के लिए जूझ रहे थे। उसी समय सेना दो फाड़ हो गई और अलगाववादी हूती दक्षिण में लामबंद हो गए।
अरब देशों में दबदबा बनाने की होड़ में ईरान और सउदी भी इस गृह युद्ध में कूद पड़े। एक तरफ हूती विद्रोहियों को शिया बहुल देश ईरान का समर्थन मिला। तो सरकार को सुन्नी बहुल देश सउदी अरब का और ये मामला इस तरह बढ़ता गया।
देखते ही देखते हूती के नाम से मशहूर विद्रोहियों ने देश के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। 2015 में हालात ये हो गए थे कि विद्रोहियों ने पूरी सरकार को निर्वासन में जाने पर मजबूर कर दिया था।
चीन के करीब आए हूती
यमन में 10 साल से चल रही जंग को जारी रखने में सऊदी अरब और ईरान दो महत्वपूर्ण ताकतें हैं। यमन की सरकार को जहां सऊदी का समर्थन है वहीं हूती विद्रोहियों को ईरान का। ऐसे में अगर ईरान और सऊदी के बीच बातचीत होती है और उनके रिश्ते सुधरते हैं तो यकीनन इसका असर यमन की जंग पर पड़ना तय माना जा रहा था।
11 मार्च 2023 को चीन की राजधानी बीजिंग में ईरान और सऊदी अरब के बीच अहम समझौता हुआ। ये चीन ने करवाया। 2016 के बाद दोनों ने एक-दूसरे के मुल्क में अपनी-अपनी एम्बेसी फिर खोलने के लिए राजी हो गए थे। इससे दोनों देशों के बीच सात साल से जारी टकराव कम हुआ। दरअसल, सात साल पहले सऊदी अरब ने ईरान के लिए जासूसी के आरोप में 32 शिया मुसलमानों के खिलाफ मुकदमा शुरू किया था। इसमें 30 सऊदी अरब के ही नागरिक थे। ईरान ने बदला लेने की धमकी दी थी। ये सभी जेल में हैं।
इसके बाद, सऊदी अरब ने ड्रग स्मगलिंग के आरोप में ईरान के तीन नागरिकों को सजा-ए-मौत दे दी। दोनों देश जंग की कगार पर पहुंच गए। इस दौरान अमेरिका सऊदी की मदद के लिए आया।
इंटरसेप्ट की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में सत्ता में आने के बाद राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दो साल में यमन के गृह युद्द को बंद करवाने का वादा किया था। जिसे चीन ने पूरा किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हथियार सप्लाई करने की पॉलिसी पर चलने के कारण अमेरिका की मिडल ईस्ट में ऐसी छवि नहीं रह गई थी कि उसे शांति स्थापित करवाने के लायक समझा जा सके। जिसका चीन ने फायदा उठाया है। सऊदी और ईरान के बीच समझौता करवा कर चीन ने यमन में जंग खत्म करने के लिए रास्ता खोल दिया।