तुर्की के ड्रोन का खतरा, भारत की शरण में आर्मीनिया
रिपोर्ट के मुताबिक जेन का एंटी ड्रोन सिस्टम एक परखी हुई तकनीक है और इसे भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया है। अब भारतीय सेना भी इसे खरीद रही है। आर्मीनिया को अहसास हो गया है कि भारतीय वायुसेना ने इसे तभी खरीदा है जब उसे लगा है कि यह तकनीक कारगर है। जेन का यह एंटी ड्रोन सिस्टम ड्रोन की पहचान करने, वर्गीकरण और निगरानी करने में कारगर है। यह दुश्मन के ड्रोन के संचार को जाम कर देता है। इससे वह या तो भटक जाता है या गिर जाता है।
यह एंटी ड्रोन सिस्टम कई चरणों वाले सेंसर से लैस होता है और ड्रोन हमलों के खिलाफ व्यापक सुरक्षा मुहैया कराता है। आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच नगर्नो कराबाख के युद्ध में पहली बार दुनिया में ड्रोन युद्ध की शुरुआत हुई थी। तुर्की के बायरकतार टीबी-2 ड्रोन ने आर्मीनिया की तोपों और टैंकों के परखच्चे उड़ा दिए थे। इससे आर्मीनिया को हार स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। बायरकतार टीबी2 ड्रोन को तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान के दामाद की कंपनी ने बनाया है। यह ड्रोन 4 लेजर गाइडेड मिसाइलें दागने में सक्षम है। यह करीब 12 घंटे तक हवा में रह सकता है और 900 किमी तक हमला करने में सक्षम है।