तुर्किये में 18 लोगों का एक परिवार है। इसके पांच सदस्य ऐसे हैं, जो दोनों हाथों और दोनों पैरों के सहारे ही चल पाते हैं। यानी ये हमारी तरह सिर्फ दो पैरों पर नहीं चल सकते। फैमिली के बाकी मेंबर्स बिल्कुल दूसरे इंसानों की तरह हैं।
ये मामला पहली बार 2006 में चर्चा में आया था। दुनिया के तमाम साइंटिस्ट्स ने रिसर्च किया, लेकिन जानवरों की तरह ‘चार पांव’ पर चलने वाली इस गुत्थी को सुलझा नहीं सके। अब मामला इसलिए सुर्खियों में है, क्योंकि कुछ साइंसटिस्ट्स इसे ‘रिवर्स इवोल्यूशन’ बता रहे हैं। बहुत आसान भाषा में आप इसे वो दौर मान सकते हैं, जब इंसान इस पृथ्वी पर आया और धीरे-धीरे उसका शारीरिक विकास होता चला गया।
40 लाख साल पुरानी कहानी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक- ऐसा नहीं है कि इन लोगों में कोई जेनेटिक प्रॉब्लम है। बल्कि, सवाल सिर्फ सिर्फ इतना ही कि ये लोग मानव सभ्यता के विकास के करीब 40 लाख साल के इतिहास को दोहरा रहे हैं। और ऐसा क्यों हो रहा है, और इस फैमिली में ही क्यों हो रहा है? ये सबसे बड़ा सवालिया निशान है, इसका पुख्ता जवाब किसी साइंसदान के पास अब तक तो नहीं है।
यह अजीब वाकया तुर्किये के उलास परिवार में ही होता है। रेसित और उनकी पत्नी हेतिस उलास के 19 बच्चे हुए। इनमें से पांच ‘चार पांव’ पर चलते हैं। एक और बच्चा भी चार पांव पर ही चलता था, लेकिन पांच साल उम्र में उसकी मौत हो गई थी।
बहरहाल, हाथ-पैरों के सहारे चलने की वजह से गांव के लोग उन्हें बहुत परेशान करते हैं। कई बार तो राक्षस समझकर उन्हें पत्थर भी मारते हैं। इनमें चार महिलाएं हैं और कभी घर से ज्यादा दूर नहीं जातीं, क्योंकि लोग परेशान करते हैं।
खतरनाक इलाके में गांव
चार महिलाएं आपस में सगी बहनें हैं। इनके नाम है- सफिए, हेसर, सेेनेम और एमिनी। एक भाई है। इसका नाम हुसैन है। इनका गांव साउथ तुर्किये के सीरिया बॉर्डर के करीब है। सीरिया के सिविल वॉर की वजह से अकसर यहां भी जंग के हालात रहते हैं। लिहाजा, खतरा हर पल रहता है।
हुसैन चार पांव के सहारे कई किलोमीटर तक पैदल चलता है। उसके हाथ और पैरों में कांटे भी चुभते हैं और इसलिए वो अकसर जख्मी हो जाता है। वो आम लोगों की तरह ही बातचीत करता है, लेकिन इस सवाल का उसके पास भी कोई जवाब नहीं कि वो सिर्फ दो पैरों पर क्यों नहीं चल पाता।
इसे बदकिस्मती कहें या समाज का डर, लेकिन इन चार बहनों और एक भाई में से कोई भी स्कूल के दरवाजे तक नहीं पहुंच सका। हालांकि, घर में रहकर उन्होंने स्थानीय कुर्दिश भाषा सीख ली।
अब साइंसदानों की सुनिए
करीब 18 साल पहले यह मामला तब चर्चा में आया जब तुर्किये के एक छोटे से और लोकल अखबार में इन लोगों का जिक्र हुआ। बात लंदन तक पहुंची। इनके वीडियो और फोटो जुटाए गए। स्टडी शुरू हुई और अब तक जारी है। कुदरत के इस हैरतअंगेज वाकये पर वैज्ञानिक भी किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सके।
कुछ साइंसटिस्ट मानते हैं कि ये जेनेटिक और सर्कमस्टेंशियल (हालात के चलते) प्रॉब्लम है। तुर्किये की सरकार भी इस मामले को ज्यादा तूल नहीं देती। हालांकि, इसकी वजह भी कभी नहीं बताई गई। मीडिया से भी इन लोगों को दूर ही रखा जाता है।
वैज्ञानिकों का एक वर्ग ऐसा भी है, जो इस घटना को रिवर्स इवोल्यूशन मानता है। उनके मुताबिक- यह ‘अंडर टान सिंड्रोम’ है। इस थ्योरी का ईजाद इवोल्यूशनरी बायोलॉजिस्ट उनेर टान ने किया था। इसके मुताबिक- इस सिंड्रोम से पीड़ित लोग शरीर के साथ दिमागी तौर पर कुछ अलग होते हैं और उन्हें पैदाइश से ही ऐसा लगता है कि वो दो पैरों पर चलेंगे तो गिर जाएंगे। लिहाजा, चलने के लिए वो दोनों पैरों और दोनों हाथों का इस्तेमाल करते हैं।
इस थ्योरी को ब्रिटिश सायकोलॉजिस्ट निकोलस हम्फ्रे ने शर्मनाक बताया। कहा- वो मेंटली और फिजिकली फिट हैं। मैं उनसे मिल चुका हूं। उनके सहयोगी और न्यूरो साइंटिस्ट रोजर केन्स भी टान थ्योरी को खारिज करते हैं। वो कहते हैं- ये दिमागी बीमारी है और इसे साइंस में ‘सेरेबेलर एटाक्सिया’ कहते हैं।\
क्या कभी सुलझ पाएगी गुत्थी
वैज्ञानिक इस मामले पर एकराय नहीं हैं। इसलिए सवाल वहीं का वहीं है। क्या ये गुत्थी कभी सुलझ पाएगी? रोजर कहते हैं- इस परिवार में पांच साल में सात बच्चों ने जन्म लिया। चार ऐसे हैं जो हाथ-पैर के सहारे चलते हैं। ऐसा बाकी बच्चों के साथ क्यों नहीं हुआ? और उम्र बढ़ने के साथ ये लोग सामान्य क्यों नहीं हो पाए।
हम्फ्रे कहते हैं- इस तरह की चीजें किसी एक वजह से नहीं होतीं। इसके पीछे कई कारण होते हैं। मसलन- जेनेटिक, साइकोलॉजिकल और सोशल। पैथालॉजिकल और एंथ्रोपोलोजिकल टेस्ट भी कुछ साफ नहीं कर सके। इनके लिए सायकोथेरेपिस्ट अपॉइंट किया गया है। प्रोफेसर हम्फ्रे कहते हैं- आखिरी नतीजे तक पहुंचने के लिए कुछ और वक्त लगेगा। हालांकि, उनमें कुछ सुधार देखा जा रहा है।