*⛅नक्षत्र - कृत्तिका रात्रि 10:15 तक तत्पश्चात रोहिणी*
*⛅योग - शुक्ल सुबह 10:49 तक तत्पश्चात ब्रह्म*
*⛅राहु काल - सुबह 08:44 से 10:07 तक*
*⛅सूर्योदय - 07:20*
*⛅सूर्यास्त - 06:26*
*⛅दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:37 से 06:29 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:27 से 01:19 तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण - महात्मा गांधी पुण्यतिथि*
*⛅विशेष - नवमी को लौकी और दशमी को कलम्बी शाक खाना त्याज्य है ।*
*(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🌹 कार्यों में सफलता-प्राप्ति हेतु 🌹*
*🌹 जो व्यक्ति बार-बार प्रयत्नों के बावजूद सफलता प्राप्त न कर पा रहा हो अथवा सफलता-प्राप्ति के प्रति पूर्णतया निराश हो चुका हो, उसे प्रत्येक सोमवार को पीपल वृक्ष के नीचे सायंकाल के समय एक दीपक जला के उस वृक्ष की ५ परिक्रमा करनी चाहिए । इस प्रयोग को कुछ ही दिनों तक सम्पन्न करनेवाले को उसके कार्यों में धीरे-धीरे सफलता प्राप्त होने लगती है ।*
*🔹जठराग्निवर्धक गोतक्र ( मट्ठा )🔹*
*🔹जिस प्रकार स्वर्ग में देवों को सुख देनेवाला अमृत है, उसी प्रकार पृथ्वी पर मनुष्यों को सुख देनेवाला तक्र हैं ।’ ( भावप्रकाश )*
*🔹दही में चौथाई भाग पानी मिलाकर मथने से तक्र तैयार होता है । इसे मट्ठा भी कहते हैं । ताजा मट्ठा सात्त्विक आहार की दृष्टि से श्रेष्ठ द्रव्य है ।*
*🔹यह जठराग्नि प्रदीप्त कर पाचन – तंत्र कार्यक्षम बनाता है । अत: भोजन के साथ तथा पश्चात मट्ठा पीने से आहार का ठीक से पाचन हो जाता है ।*
*🔹जिन्हें भूख न लगती हो, ठीक से पाचन न होता हो, खट्टी डकारें आती हों और पेट फूलते – अफरा चढ़ने से छाती में घबराहट होती हो, उनके लिए मट्ठा अमृत के समान है ।*
*🔸मट्ठे के सेवन से ह्रदय को बल मिलता है, रक्त शुद्ध होता है और विशेषत: ग्रहणी की क्रिया अधिक व्यवस्थित होती है ।*
*🔸कई लोगों को दूध रुचता या पचता नहीं है । उनके लिए मट्ठा अत्यंत गुणकारी है ।*
*🔸मक्खन निकाला हुआ तक्र पथ्य अर्थात रोगियों के लिए हितकर तथा पचने में हलका होता है ।*
*🔸मक्खन नहीं निकला हुआ तक्र भारी, पुष्टिकारक एवं कफजनक होता है ।*
*🔹वातदोष की अधिकता में सोंठ व सेंधा नमक मिला के, कफ की अधिकता में सोंठ, काली मिर्च व पीपर मिलाकर तथा पित्तजन्य विकारों में मिश्री मिला के तक्र का सेवन करना लाभदायी है ।*
*🔹शीतकाल में तथा भूख की कमी, वातरोग, अरुचि एवं नाड़ियों के अवरोध में तक्र अमृत के समान गुणकारी होता है ।*
*🔹यह संग्रहणी, बवासीर, चिकने दस्त, अतिसार (दस्त), उलटी, रक्ताल्पता, मोटापा, मूत्र का अवरोध, भगंदर, प्रमेह, प्लीहावृद्धि, कृमिरोग तथा प्यास को नष्ट करनेवाला होता है ।*
*🔹दही को मथकर मक्खन निकाल लिया जाय और अधिक मात्रा में पानी मिला के उसे पुन: मथा जाय तो छाछ बनती है । यह शीतल , हलकी, पित्तनाशक, प्यास, वात को नष्ट करनेवाली और कफ बढ़ानेवाली होती है ।*
*🔹मट्ठे के औषधीय प्रयोग 🔹*
*🔸१] मट्ठे में जीरा, सौंफ का चुनर व सेंधा नमक मिलाकर पीने से खट्टी डकारें बंद होती हैं ।*
*🔸२] गाय का ताजा, फीका मट्ठा पीने से रक्त शुद्ध होता है और रस, बल तथा पुष्टि बढ़ती है । शरीर – वर्ण निखरता है, चित्त प्रसन्न होता है, वात-संबंधी अनेक रोगों का नाश होता है ।*
*🔸३] ताजे मट्ठे में चुटकीभर सोंठ, सेंधा नमक व काली मिर्च मिलाकर पीने से आँव, मरोड़ तथा दस्त दूर हो के भोजन में रूचि बढ़ती है ।*
*🔸 ४] मट्ठे में अजवायन और काला नमक मिलाकर पीने से कब्ज मिटता है ।*
*उपरोक्त सभी गुण गाय के ताजे व मधुर मट्ठे में ही होते हैं । ताजे दही को मथकर उसी समय मट्ठे का सेवन करें । ऐसा मट्ठा दही से कई गुना अधिक गुणकारी होता है । देर तक रखा हुआ खट्टा व बासी मट्ठा हितकर नही है ।*
*🔸५] केवल ताजे दही को मथकर हींग, जीरा तथा सेंधा नमक डाल के पीने से अतिसार, बवासीर और पेडू का शूल मिटता है ।*
*🔸ताजे दही का अर्थ है, रात को जमाया हुआ दही जिसका उपयोग सुबह किया जाय एवं सुबह जमाया हुआ दही जिसका सेवन मध्यान्हकाल में अथवा सूर्यास्त के पहले किया जाय । सायंकाल के बाद दही अथवा छाछ का सेवन नहीं करना चाहिए ।*
*🔸सावधानी – १] दही एंव मट्ठा ताँबे, काँसे, पीतल एवं एल्युमिनियम के बर्तन में न रखें । दही बनाने के लिए मिट्टी अथवा चाँदी के बर्तन विशेष उपयुक्त हैं, स्टील के बर्तन भी चल सकते हैं ।*
*🔸२] अति दुर्बल व्यक्तियों को तथा क्षयरोग, मूर्च्छा, भ्रम, दाह व रक्तपित्त में तक्र का उपयोग नहीं करना चाहिए । उष्णकाल अर्थात शरद और ग्रीष्म ऋतुओं में तक्र का सेवन निषिद्ध है । इन दिनों यदि तक्र पीना ही हो तो जीरा व मिश्री मिला के ताजा व कम मात्रा में लें ।*