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29 दिसम्बर 2020

Updated on 29-12-2020 01:33 PM
दिन - मंगलवार
विक्रम संवत - 2077     शक संवत - 1942
अयन - दक्षिणायन         ऋतु - शिशिर
मास - मार्गशीर्ष               पक्ष - शुक्ल 
तिथि -  चतुर्दशी सुबह 07:54 तक तत्पश्चात पूर्णिमा 
नक्षत्र - मॄगशिरा शाम 05:33 तक तत्पश्चात आर्द्रा
योग - शुक्ल शाम 04:13 तक तत्पश्चात ब्रह्म
राहुकाल - शाम 03:24 से शाम 04:45 तक
सूर्योदय - 07:16         सूर्यास्त - 18:05 
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
व्रत पर्व विवरण - व्रत पूर्णिमा, श्री दत्तात्रेय जयंती
विशेष - चतुर्दशी और पूर्णिमा के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
कर्ज से मुक्ति 
कर्ज से शीघ्र मुक्ति पाने के लिए हर बुधवार के दिन वट वृक्ष के मूल में घी का दीप जला कर रख दें| इससे कर्जे से शीघ्र मुक्ति मिलेगी| और बुधवार के दिन खाने में मूँग या मूँग की दाल लें|
कारोबार में बरकत पाने के लिए 
जिनकी अपनी दुकान है, फैक्ट्री या कारोबार है वे लोग रोज नही तो हर बुधवार को गौ माता को हरा चारा खिलायें तो उन्हें लाभ होगा ओर गौ सेवा भी होगी ।
पूज्य साईजी के ओजस्वी जीवन की ओर पुस्तक से
शारीरिक कमजोरी  
10 ग्राम काले तिल चबा लो औरपानी पियो, 2 घंटे तक कुछ खाओ पियो नहीं l इससे शरीर की कमजोरी मिटकर शरीर मजबूत होगा l दांत व मसूड़े मज़बूत होंगे, मस्तक मज़बूत होगा ।
विशेष - रात को तिल की चीजे नहीं खानी चाहिए ।
बलवान शुक्र कल्याणकारी ...
किसी व्यक्ति की भौतिक समृद्धि एवं सुखों का भविष्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए जन्म कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति एवं शक्ति (बल) का अध्ययन करना अत्यंत महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है। अगर जन्म कुंडली में शुक्र की स्थिति सशक्त एवं प्रभावशाली हो तो जातक को सब प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। इसके विपरीत यदि शुक्र निर्बल अथवा दुष्प्रभावित (अपकारी ग्रहों द्वारा पीड़ित) हो तो भौतिक अभावों का सामना करना पड़ता है।
इस ग्रह को जीवन में प्राप्त होने वाले आनंद का प्रतीक माना गया है। प्रेम और सौंदर्य से आनंद की अनुभूति होती है और श्रेष्ठ आनंद की प्राप्ति स्त्री से होती है। अत: इसे स्त्रियों का प्रतिनिधि भी माना गया है और दाम्पत्य जीवन के लिए ज्योतिषी इस महत्वपूर्ण स्थिति का विशेष अध्ययन करते हैं।
अगर शक्तिशाली शुक्र (स्वराशि, उच्च राशि का मूल त्रिकोण) केंद्र में स्थित हो और किसी भी अशुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट न हो तो जन्म कुंडली के समस्त दुष्प्रभावों (अनिष्ट) को दूर करने की सामर्थ्य रखता है। शुक्र लग्र द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम और एकादश भाव में स्थित हो तो धन, सम्पत्ति और सुखों के लिए अत्यंत शुभ फलदायक है। सशक्त शुक्र अष्टम भाव में भी अच्छा फल प्रदान करता है। शुक्र अकेला अथवा शुभ ग्रहों के साथ शुभ योग बनाता है। चतुर्थ स्थान में शुक्र बलवान होता है। इसमें अन्य ग्रह अशुभ भी हों तो भी जीवन साधारणत: सुख कर होता है। स्त्री राशियों में शुक्र को बलवान माना गया है। यह पुरुषों के लिए ठीक है किंतु स्त्री की कुंडली में स्त्री राशि के शुक्र का फल अशुभ मिलता है।
शुक्र, वाहन का कारक ग्रह है। अत: लग्र में चतुर्थेश के साथ होने पर वाहन योग बनता है। कामवासना या यौन सुख पर शुक्र का स्वामित्व माना गया है। अत: विवाह अथवा यौन सुख के लिए भी इसकी स्थिति का अध्ययन करना महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है। अगर यह ग्रह जन्मकुंडली में निर्बल अथवा दुष्प्रभावित हो तो दाम्पत्य सुख का अभाव रहता है। सप्तम भाव में शुक्र की स्थिति विवाह के बाद भाग्योदय की सूचक है। शुक्र पर मंगल के प्रभाव से जातक का जीवन अनैतिक होता है और शनि का प्रभाव जीवन में निराशा व वैवाहिक जीवन में अवरोध, विच्छेद अथवा कलह का सूचक होता है 
जीवन में प्राप्त होने वाले आनंद, अलंकार, सम्पत्ति, स्त्री सुख, विवाह के कार्य, उपभोग के स्थान, वाहन, काव्य कला, संभोग तथा स्त्री आदि के संबंध में शुक्र से विचार करना उपयुक्त है। अगर यह ग्रह जन्म कुंडली में शुभ एवं सशक्त प्रधान है तो जातक का जीवन सफल एवं सुखमय माना जाता है किंतु शुक्र के निर्बल या अशुभ होने पर जातक की अनैतिक कार्यों में प्रवृत्ति होती है, समाज में मान-सम्मान नहीं मिलता तथा अनेक सुखों का अभाव रहता है।
पंडित संदीप,मिढोतिया ज्योतिषाचार्य भोपाल (मध्य प्रदेश)


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