लंदन । वैश्विक
महामारी कोरोना संकट से
जूझ रही झेल
रही दुनिया के
लिए एक अशुभ
सूचना है। ब्रिटिश
वैज्ञानिकों ने सैटलाइट
की तस्वीरों
के आधार पर
पता लगाया है
कि बढ़ती गर्मी
की वजह से
30 साल में पृथ्वी की
28 ट्रिल्यन टन
बर्फ पिघल गई।
एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी
कॉलेज लंदन के
शोधकर्ताओं ने वर्ष
1994 से लेकर 2007 के बीच
की उत्तरी
और दक्षिणी ध्रुव
की सैटलाइट तस्वीरों का अध्ययन किया
था। इस अध्ययन का
मकसद वातावरण में
ग्रीन हाउस गैसों
की बढ़ती मात्रा
के असर का
पता लगाना था।
वैज्ञानिकों का यह
शोध क्रियोफेयर
डिस्कसन जर्नल
में प्रकाशित हुआ
है। इसमें चेतावनी
दिया गया है
कि इस शताब्दी के
आखिर तक समुद्र
का जलस्तर
काफी बढ़ सकता
है। शोध में
शामिल प्रोफेसर एंडी
शेफर्ड ने कहा
कि समुद्र के
जलस्तर में
मात्र एक सेंटीमीटर
की वृद्धि से
10 लाख लोग निचले
इलाकों से विस्थापित हो जाएंगे।
वैज्ञानिकों ने बताया कि जितनी बर्फ पिघली है, उसमें से आधी से ज्यादा केवल उत्तरी गोलार्द्ध से हुई है, बाकी दक्षिणी गोलार्द्ध से। उन्होंने बताया कि वर्ष 1990 के बाद से बर्फ के पिघलने की दर 57 फीसदी पहुंच गई है। यह अब 0.8 से बढ़कर 1.2 ट्रिल्यन टन प्रतिवर्ष हो गई। इसकी वजह अंटार्कटिका में पहाड़ों पर बिखरी बर्फ, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में बर्फ की परत का पिघलना है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी कि बर्फ के पिघलने से धरती के सौर विकिरण को वापस अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता कम होती जा रही है। इससे आर्कटिक और अंटार्कटिका के पानी में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। शेफर्ड ने कहा कि पहले शोधकर्ताओं ने कुछ खास इलाकों का अध्ययन किया था लेकिन पहली बार पूरी धरती के बर्फ के पिघलने का अध्ययन किया गया है। शेफर्ड ने कहा, 'हमें जो मिला, उससे हम अचंभित हैं।' शोधकर्ताओं ने लैटिन अमेरिका, कनाडा, आर्कटिक और अंटार्कटिका तथा एशिया के सैटलाइट सर्वे का परीक्षण किया ताकि धरती पर बर्फ के असंतुलन का पता लगाया जा सके। इससे शोध से निष्कर्ष निकला कि ज्यादातर जमीन बर्फ का नुकसान वातावरण में आए में बदलाव की वजह से हुआ है। इससे समुद्र का जलस्तर भी बढ़ गया है। शोध में पता चला है कि हर साल ग्रीनलैंड से 200 गीगाटन बर्फ पिघल रही है। वहीं अंटार्कटिका में 118 गीगाटन बर्फ पिघल रही है।
विपिन/ईएमएस 26 अगस्त 2020