*⛅नक्षत्र - पूर्वाषाढ़ा दोपहर 12:38 तक तत्पश्चात उत्तराषाढ़ा*
*⛅योग - गण्ड रात्रि 09:34 तक तत्पश्चात वृद्धि*
*⛅राहु काल - शाम 04:32 से 05:53 तक*
*⛅सूर्योदय - 07:01*
*⛅सूर्यास्त - 05:53*
*⛅दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:16 से 06:08 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:01 से 12:54 तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण - विनायक चतुर्थी*
*⛅विशेष - चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है । पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है ।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)।
हवन-यज्ञ क्यों ? - वैश्विक समस्याओं में जाति, मत, पंथ, देश के दायरों से परे होकर देखें तो जो विकराल समस्याएँ हैं उनमें से एक है वातावरण और वैचारिक प्रदूषण की समस्या । विभिन्न देशों द्वारा करोड़ों-अरबों डॉलर खर्च करके उपाय खोजे व किये जा रहे हैं परंतु यह समस्या वैसी ही बनी हुई है । इसके निवारण हेतु विश्व अब भारत की प्राचीन धरोहर यज्ञ-हवन की ओर एक आशाभरी नजर से देख रहा है। यह हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा चलायी गयी परम्परा है और समय-समय पर महापुरुषों द्वारा इसे सुविकसित व लोकसुगम्य बनाया गया है ।
कारखानों व गाड़ियों आदि के धुएँ से वातावरण दूषित होता है, जिससे फेफड़ों व श्वास के विभिन्न रोग होते हैं । यज्ञ-हवन दूषित वायुमंडल को तो शुद्ध करता ही है, साथ ही इससे मानसिक कुविचारों पर भी नियंत्रण पाया जा सकता है ।
*🔹प्रज्वलित खाँड (अपरिष्कृत शक्कर) में वायु को शुद्ध करने की अत्यधिक शक्ति होती है । घी की आहुति से वातावरण शुद्धि तथा विभिन्न रोगों के कीटाणुओं का नाश होता है । अतः जिन स्थानों पर हवन होता है वहाँ फसल अच्छी होती है ।*
*🔹श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ पूज्य बापूजी यज्ञ की उपयोगिता समझाते हुए कहते हैं : "तुम्हारे जीवन में यज्ञ के लिए भी स्थान होना चाहिए । श्रीकृष्ण बताते हैं : यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि... 'सब प्रकार के यज्ञों में जपयज्ञ मैं हूँ।' (गीता : १०.२५)*
*परंतु आहुति देकर जो यज्ञ होते हैं, वे भी अच्छे हैं, उनका भी अपना महत्त्व है ।*
*🔹विज्ञान ने स्वीकारी यज्ञ की महिमा🔹*
*विदेशी वैज्ञानिकों ने भी भारत की यज्ञ-विधि पर कुछ खोज - अध्ययन किये ।*
*👉 फ्रांस के प्रोफेसर ट्रिलवर्ट के अनुसार 'यज्ञ में जो मधुर पदार्थ (शर्करा आदि) डालते हैं उससे निकलनेवाले धुएँ से चेचक, हैजा, टी.बी. आदि के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं ।'*
*👉 डॉ. हैफकिन ने अपने प्रयोगों से सिद्ध किया कि "घी डालने से निकलनेवाले धुएँ से चेचक व प्लेग के कीटाणु नष्ट होते हैं ।'*
*👉 रूसी वैज्ञानिक शिरोविच के अनुसार 'एक चम्मच (१० ग्राम) गोघृत की कुछ बूँदें अंगारों पर या गौ-कंडों पर डालते रहने से पवित्र, ऊर्जावान एक टन प्राणवायु (ऑक्सीजन) बनती है, जो अन्य किसी भी उपाय से सम्भव नहीं है ।'*
*👉 लेकिन हमारे ऋषियों ने केवल चेचक, टी.बी. आदि के कीटाणु नष्ट हों इतना ही नहीं सोचा वरन् यज्ञ के समय शरीर का ऊपरी हिस्सा खुला रखने का भी विधान किया ताकि यज्ञ करते समय रोमकूप खुले हों और यज्ञ का धूआँ श्वासोच्छ्वास एवं रोमकूपों के द्वारा शरीर के अंदर प्रवेश करे, जिससे अन्य अनेक लाभ होते हैं । यज्ञ से केवल शरीर को ही लाभ नहीं होता वरन् यज्ञ करते समय मंत्र बोलते-बोलते कहा जाता है :*
*ॐ वरुणाय स्वाहा, इदं वरुणाय इदं न मम । 'यह इन्द्र का है, यह वरुण का है, मेरा नहीं है ।' इस प्रकार ममता छुड़ाकर निर्भय करने की व्यवस्था भी हमारी यज्ञ-विधि में हैं ।*
*🔹 रविवार विशेष🔹*
रविवार के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
*🔹 रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75.90)*
*🔹 रविवार के दिन काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75)*
*🔹 रविवार सूर्यदेव का दिन है, इस दिन क्षौर (बाल काटना व दाढ़ी बनवाना) कराने से धन, बुद्धि और धर्म की क्षति होती है ।*
*🔹 रविवार को आँवले का सेवन नहीं करना चाहिए ।*
*🔹 स्कंद पुराण के अनुसार रविवार के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए । इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं ।*
*🔹 रविवार के दिन पीपल के पेड़ को स्पर्श करना निषेध है ।*