⛅विशेष - चतुर्दशी के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और जलाना है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
🔹माघ मास 25 जनवरी से 24 फरवरी तक🔹
🔸 माघ मास की महिमा 🔸
🔸माघ मास की बड़ी भारी महिमा है। चारों युगों का अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। कलियुग में कभी दान का प्रभाव होता है, कभी यज्ञ का प्रभाव होता है, कभी सत्य का प्रभाव होता है लेकिन माघ मास के स्नान का प्रभाव कभी चारों युगों में पड़ता है।
🔸 माघ मास में सूर्योदय से पहले कोई स्नान करता है तो गंगा - स्नान माना जाएगा, शारीरिक लाभ तो होंगे-ही-होंगे लेकिन भगवान की प्रियता होगी।
🔸 माघ मास के सभी दिन पर्व हैं, सब जल गंगाजल हैं, सब भूमि तीर्थमयी हैं। -
🔹 माघ मास में सूर्योदय से थोड़ी देर पहले स्नान करना पापनाशक और स्वास्थ्य प्रद और प्रभाव बढ़ाने वाला होता है। पाप नाशनी मीटिंग से बुद्धि शुद्ध होती है, इरादे सुंदर होते हैं।
🔹पद्म पुराण में ब्रह्म ऋषि भृगु कहते हैं कि तप परम ध्यानं त्रेता यम जन्म तथाः। द्वापरे व् कलो दानं। माघ सर्व युगे शुच।।
🔹माघ मास में स्नान की चारो युग में बड़ी भारी महिमा है। सभी दिन माघ मास में स्नान कर स्नान करना चाहिए तो बहुत अच्छा नहीं तो 3 दिन तक लगातार स्नान करना चाहिए। बीच में तो करें लेकिन आखिरी तीन दिन तो जरूर करना चाहिए। माघ मास का प्रभाव सभी जल, गंगा जल, तीर्थयात्रा पर्व के समान है।
🔹पुस्तक, कुरुक्षेत्र, काशी, प्रयाग में 10 वर्ष पवित्र शौच, संतोष आदि नियम पालने से जो फल मिलता है माघ मास में 3 दिन स्नान करने से वो मिल जाता है, खाली 3 दिन। माघ मास प्रात: स्नान सब कुछ देता है। आयु, आरोग्य, रूप, बल, सौभाग्य, सदाचरण देता है।
🔹माघ प्रात: स्नान से विद्या निर्मल होती है, कीर्ति पादप होती है, आरोग्य और आयुष्य होता है, अक्षय धन की प्राप्ति होती है। जो धन कभी नष्ट न हो, वह अक्षय धन की भी प्राप्ति करता है। सभी पापों से मुक्ति और इंद्र लोक की प्राप्ति सहज में हो जाती है अर्थात स्वर्ग लोक की प्राप्ति।
🔹पद्म पुराण में वशिष्टजी भगवान कहते हैं, वैशाख में जल, अन्न दान उत्तम हैं। कार्तिक में तपस्या और पूजा, माघ में जप और गृह दान उत्तम है।
🔹प्रिय वस्तु अर्थात् डूबकर वस्तु का त्याग करने से व्यक्तिगत प्रेमियों की गुलामी के जंजाल को काटने वाले का बल ले आता है। नियम पालन, पवित्र नियम पालन से अधर्म की जड़े कटती हैं। जो लोग तत्वज्ञान स्थापित करते हैं लेकिन अधर्म करते हैं तो तत्वज्ञान में कोई नहीं होता, तत्वज्ञान पचता नहीं है।