नक्षत्र - रेवती 24 दिसम्बर प्रातः 04:33 तक तत्पश्चात अश्विनी
योग - वरीयान् दोपहर 12:50 तक तत्पश्चात परिघ
राहुकाल - दोपहर 12:38 से दोपहर 01:59 तक
सूर्योदय - 07:13 सूर्यास्त - 18:02
व्रत पर्व विवरण -
विशेष - नवमी को लौकी खाना गोमांस के समान त्याज्य है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34
दीर्घायु और आरोग्य वृद्धि के लिए
विष्णु धर्मोत्तर ग्रंथ में बताया कि जिनके परिवार में ज्यादा बीमारी .....जल्दी-जल्दी किसी की मृत्यु हो जाती है वे लोग मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पक्ष के दशमी तिथि के दिन (दशमी तिथि के स्वामी यमराज है मृत्यु के देवता | ) भगवान धर्मराज यमराज का मानसिक पूजन करे, और हो सके तो घी की आहुति दे I
एक दिन पहले से हवन की छोटी सी व्यवस्था कर लेना घी से आहुति डाले इससे दीर्घायु, आरोग्य और ऐश्वर्य तीनों की वृद्धि होती है विष्णु धर्मोत्तर ग्रंथ में बताया है | आहुति डालते समय ये मंत्र बोले–
विशेष - [ ध्यान रखे जिसके घर में तकलीफे है वो जरुर आहुति डाले और डालते समय स्वाहा बोले और जो आहुति न डाले तो वो नम: बोले | ]
ॐ यमाय नम:
ॐ धर्मराजाय नम:
ॐ मृत्यवे नम:
ॐ अन्तकाय नम:
ॐ कालाय नम:
ये पाँच मंत्र बोले ज्यादा देर तक आहुति डाले तो भी अच्छा है |
अकाल मृत्यु घर में न हो, जल्दी-जल्दी किसी की मृत्यु न हो उसके लिए घर में अमावस्या के दिन गीता का सातवां अध्याय पढना चाहिये | पाठ पूरा हो जाय तो सूर्य भगवान को अर्घ्य देना चाहिये कि हमारे घर में सबकी लंबी आयु हो और जो पहले गुजर गये है हे भगवान उनकी आत्मा को शांति दे और आज के गीता पाठ का पुण्य ये उनको पहुँचे | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय करके वो जल चढ़ा दे |
और हो सके तो ....भगवान ने पैसा दिया हो थोडा बहुत तो उस अमावस्या को गरीब बच्चों – बच्चीयों को चार–पाँच बच्चों को खाना देकर आये सब्जी-रोटी थोडा कुछ मीठा हलवा बना ले थोडा-सा गरीब बच्चों को दे आये | सेवा भी हो जायेगी और जो गुजर गये है वो हम पर राजी हो जायेंगे |*
विशेष - 24 दिसम्बर 2020 गुरुवार को मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि है।
तुलसी को पानी अर्पण से पुण्य
अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए उसकी हवा से भी बहुत लाभ होते हैं और तुलसी को एक ग्लास पानी अर्पण करने से सवा मासा सुवर्ण दान का फल मिलता है।
तुलसी पूजन विधि व तुलसी – नामाष्टक
तुलसी पूजन विधि
25 दिसम्बर को सुबह स्नानादि के बाद घर के स्वच्छ स्थान पर तुलसी के गमले को जमीन से कुछ ऊँचे स्थान पर रखें | उसमें यह मंत्र बोलते हुए जल चढायें :
महाप्रसाद जननी सर्वसौभाग्यवर्धिनी
आधि व्याधि हरा नित्यम् तुलसी त्वाम् नमोस्तुते
फिर ‘तुलस्यै नम:’ मंत्र बोलते हुए तिलक करें, अक्षत (चावल) व पुष्प अर्पित करें तथा वस्त्र व कुछ प्रसाद चढायें | दीपक जलाकर आरती करें और तुलसीजी की ७, ११, २१,५१ व १०८ परिक्रमा करें | उस शुद्ध वातावरण में शांत हो के भगवत्प्रार्थना एवं भगवन्नाम या गुरुमंत्र का जप करें | तुलसी के पास बैठकर प्राणायाम करने से बल, बुद्धि और ओज की वृद्धि होती है |
तुलसी – पत्ते डालकर प्रसाद वितरित करें | तुलसी के समीप रात्रि १२ बजे तक जागरण कर भजन, कीर्तन, सत्संग-श्रवण व जप करके भगवद-विश्रांति पायें | तुलसी – नामाष्टक का पाठ भी पुण्यदायक है | तुलसी – पूजन अपने नजदीकी आश्रम या तुलसी वन में अथवा यथा–अनुकूल किसी भी पवित्र स्थान में कर सकते हैं |
तुलसी – नामाष्टक
वृन्दां वृन्दावनीं विश्वपावनी विश्वपूजिताम् |
पुष्पसारां नन्दिनी च तुलसी कृष्णजीवनीम् ||
एतन्नामाष्टकं चैतत्स्तोत्रं नामार्थसंयुतम् |
य: पठेत्तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ||
भगवान नारायण देवर्षि नारदजी से कहते हैं : “वृन्दा, वृन्दावनी, विश्वपावनी, विश्वपूजिता, पुष्पसारा, नंदिनी, तुलसी और कृष्णजीवनी – ये तुलसी देवी के आठ नाम हैं | यह सार्थक नामावली स्तोत्र के रूप में परिणत है |
जो पुरुष तुलसी की पूजा करके इस नामाष्टक का पाठ करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है | ( ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खण्ड :२२.३२-३३)