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22 जनवरी 2021

Updated on 22-01-2021 12:42 PM
 दिन - शुक्रवार   ऋतु - शिशिर
विक्रम संवत - 2077    शक संवत - 1942
अयन - उत्तरायण
मास - पौष      पक्ष - शुक्ल 
तिथि - नवमी शाम 06:29 तक तत्पश्चात दशमी
नक्षत्र - भरणी शाम 06:40 तक तत्पश्चात कृत्तिका
योग - शुभ रात्रि 09:19 तक तत्पश्चात शुक्ल
राहुकाल - सुबह 11:27 से दोपहर 12:50 तक
सूर्योदय - 07:19     सूर्यास्त - 18:21 
दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
 बाई करवट लेटने के लाभ 
शरीर के लिए सोना बेहद जरूरी होता है। अच्छी सेहत के लिए शरीर को आराम देना कई तरह की बीमारियों से बचाता है। सोते समय हम कई बार करवट बदलकर सोते हैं जिसका हमारे शरीर पर गहरा प्रभाव पड़ता है। किसी भी इंसान के लिए एक तरफ करवट लेकर सोए रहना नामुमकिन है। लेकिन क्या आपको पता है बांए ओर करवट लेने से आपको कई तरह के फायदे मिल सकते हैं।
बांए ओर करवट लेकर सोने के फायदे
आयुर्वेद में शरीर को बीमारियों से बचाने के लिए बाएं ओर करवट लेकर सोने के बारे में बताया गया है। जिसे आज के वैज्ञानिकों ने शोध के आधार पर इसे माना है। 
शोध के अनुसार बाएं ओर करवट बदलकर सोने से पेट फूलने की समस्या, दिल के रोग, पेट की खराबी और थकान जैसी समस्याएं दूर होती हैं। यदि आप बाएं की जगह दाएं तरफ करवट लेकर सोते हैं तो इससे शरीर से टाक्सिन सही तरह से निकल नहीं निकल पाते हैं और दिल पर जोर ज्यादा पड़ता है साथ ही पेट की बीमारी भी लगने लगती हैं। कई बार तो हार्ट रेट भी बढ़ सकता है।
सीधे लेटे रहने से भी इंसान को ठीक तरह से सांस लेने में परेशानी होती है। ज्यादातर वे लोग जिन्हें दमा या अस्थमा और स्लीप एपनिा की दिक्कत हो। उनको रात में सीधा नहीं लेटना चाहिए। इसलिए बांए ओर करवट लेकर सोने की आदत डालनी चाहिए।
किडनियां और लीवर के लिए
बाएं ओर करवट बदलकर सोने से लीवर और किडनियां ठीक तरह से काम करती हैं। शरीर से गंदगी को साफ करने में लीवर और किड़नी बेहद अहम भूमिका निभाती हैं इसलिए इन पर ज्यादा दबाव नहीं डालना चाहिए।
पाचन में सुधार
शरीर तभी ठीक रहता है जब आपका पाचन तंत्र ठीक हो। एैसे में बाएं तरफ करवट लेने से आपके पाचन तंत्र को फायदा मिलता है। और खाया हुआ खाना भी आसानी से पेट तक पहुंचता है जो ठीक से हजम भी हो जाता है। इसके अलावा एक ओर फायादा यह है कि बदहजमी की दिक्कत भी दूर हो जाती है।
खतरनाक बीमारियों से बचाव
बाएं ओर करवट लेने से शरीर पर जमा हुआ टाक्सिन धीरे-धीरे निकलने लगता है और इस वजह से शरीर को लगने वाली खतरनाक बीमारियां नहीं होती हैं।
एसिडिटी में फायदा
सीने में जलन और एसिडिटी की समस्या को दूर करता है बायीं ओर करवट लेकर सोना। क्योंकि इस तरीके से पेट में मौजूद एसिड उपर की जगह से नीचे आने लगता है जिस वजह से सीने की जलन और एसिडिटी की परेशानी में फायदा मिलता है।
पेट को आराम
बांए ओर सोने से पेट को आराम मिलता है। क्योंकि इस पोजिशन में सोने से भोजन छोटी आंत से बड़ी आंत तक आसानी से पहुंच जाता है जिस वजह से सुबह आपका पेट खुलकर साफ होता है।
दिल की परेशानी में
बाएं ओर करवट बदलकर सोने से दिल से संबंधित परेशानियां दूर होती हैं क्योंकि इस अवस्था में सोने से दिल तक खून की पूर्ती बेहद अच्छे तरह से होती है जिसकी वजह से आक्सीजन और खून की सप्लाई आराम से दिमाग और शरीर तक पहुंचती है जो इंसान को दिल की बीमारी यानि कि हार्ट अटैक जैसे गंभीर रोग से बचा सकती है।
गलत तरीकों से सोना कई बीमारियों जैसे सिर दर्द, पीठदर्द, माइग्रेन, थकान व दर्द को न्योता देता है । अच्छी स्लीपिंग पोजीशन इंसान को स्मार्ट और सेहतमन्द बनाती है इसलिए अपने सोने के तरीके को बदलें और हमेशा स्वस्थ रहें।
ब्राहमण भाईयो के लिये विशेष             
सरयूपारीण ब्राह्मण वंशावली
सरयूपारीण ब्राह्मण या सरवरिया ब्राह्मण या सरयूपारी ब्राह्मण सरयू नदी के पूर्वी तरफ बसे हुए ब्राह्मणों को कहा जाता है। यह कान्यकुब्ज ब्राह्मणो कि शाखा है। श्रीराम ने लंका विजय के बाद कान्यकुब्ज ब्राह्मणों से यज्ञ करवाकर उन्हे सरयु पार स्थापित किया था। सरयु नदी को सरवार भी कहते थे। इसी से ये ब्राह्मण सरयुपारी ब्राह्मण कहलाते हैं। सरयुपारी ब्राह्मण पूर्वी उत्तरप्रदेश, उत्तरी मध्यप्रदेश, बिहार छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में भी होते हैं। मुख्य सरवार क्षेत्र पश्चिम मे उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या शहर से लेकर पुर्व मे बिहार के छपरा तक तथा उत्तर मे सौनौली से लेकर दक्षिण मे मध्यप्रदेश के रींवा शहर तक है। काशी, प्रयाग, रीवा, बस्ती, गोरखपुर, अयोध्या, छपरा इत्यादि नगर सरवार भूखण्ड में हैं।
एक अन्य मत के अनुसार श्री राम ने कान्यकुब्जो को सरयु पार नहीं बसाया था बल्कि रावण जो की ब्राह्मण थे उनकी हत्या करने पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए जब श्री राम ने भोजन और दान के लिए ब्राह्मणों को आमंत्रित किया तो जो ब्राह्मण स्नान करने के बहाने से सरयू नदी पार करके उस पार चले गए और भोजन तथा दान सामंग्री ग्रहण नहीं की वे ब्राह्मण सरयुपारीन ब्राह्मण कहे गए।
सरयूपारीण ब्राहमणों के मुख्य गाँव : 
गर्ग (शुक्ल- वंश)
गर्ग ऋषि के तेरह लडके बताये जाते है जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल बंशज  कहा जाता है जो तेरह गांवों में बिभक्त हों गये थे| गांवों के नाम कुछ इस प्रकार है|
(१) मामखोर (२) खखाइज खोर  (३) भेंडी  (४) बकरूआं  (५) अकोलियाँ  (६) भरवलियाँ  (७) कनइल (८) मोढीफेकरा (९) मल्हीयन (१०) महसों (११) महुलियार (१२) बुद्धहट (१३) इसमे चार  गाँव का नाम आता है लखनौरा, मुंजीयड, भांदी, और नौवागाँव| ये सारे गाँव लगभग गोरखपुर, देवरियां और बस्ती में आज भी पाए जाते हैं|
उपगर्ग (शुक्ल-वंश) 
उपगर्ग के छ: गाँव जो गर्ग ऋषि के अनुकरणीय थे कुछ इस प्रकार से हैं|
बरवां (२) चांदां (३) पिछौरां (४) कड़जहीं (५) सेदापार (६) दिक्षापार
यही मूलत: गाँव है जहाँ से शुक्ल बंश का उदय माना जाता है यहीं से लोग अन्यत्र भी जाकर शुक्ल     बंश का उत्थान कर रहें हैं यें सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं|
गौतम (मिश्र-वंश)
गौतम ऋषि के छ: पुत्र बताये जातें हैं जो इन छ: गांवों के वाशी थे|
(१) चंचाई (२) मधुबनी (३) चंपा (४) चंपारण (५) विडरा (६) भटीयारी
इन्ही छ: गांवों से गौतम गोत्रीय, त्रिप्रवरीय मिश्र वंश का उदय हुआ है, यहीं से अन्यत्र भी पलायन हुआ है ये सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं|
उप गौतम (मिश्र-वंश)
उप गौतम यानि गौतम के अनुकारक छ: गाँव इस प्रकार से हैं|
(१)  कालीडीहा (२) बहुडीह (३) वालेडीहा (४) भभयां (५) पतनाड़े  (६) कपीसा
इन गांवों से उप गौतम की उत्पत्ति  मानी जाति है|
वत्स गोत्र  ( मिश्र- वंश)
वत्स ऋषि के नौ पुत्र माने जाते हैं जो इन नौ गांवों में निवास करते थे|
(१) गाना (२) पयासी (३) हरियैया (४) नगहरा (५) अघइला (६) सेखुई (७) पीडहरा (८) राढ़ी (९) मकहडा
बताया जाता है की इनके वहा पांति का प्रचलन था अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है|
कौशिक गोत्र  (मिश्र-वंश)
तीन गांवों से इनकी उत्पत्ति बताई जाती है जो निम्न है|
(१) धर्मपुरा (२) सोगावरी (३) देशी
वशिष्ठ गोत्र (मिश्र-वंश)
इनका निवास भी इन तीन गांवों में बताई जाती है|
(१) बट्टूपुर  मार्जनी (२) बढ़निया (३) खउसी
शांडिल्य गोत्र ( तिवारी,त्रिपाठी वंश) 
शांडिल्य ऋषि के बारह पुत्र बताये जाते हैं जो इन बाह गांवों से प्रभुत्व रखते हैं|
(१) सांडी (२) सोहगौरा (३) संरयाँ  (४) श्रीजन (५) धतूरा (६) भगराइच (७) बलूआ (८) हरदी (९) झूडीयाँ (१०) उनवलियाँ (११) नोनापार (१२) कटियारी, नोनापार में लोनाखार, कानापार, छपरा भी समाहित है  
इन्ही बारह गांवों से आज चारों तरफ इनका विकास हुआ है, यें सरयूपारीण ब्राह्मण हैं| इनका गोत्र श्री मुख शांडिल्य त्रि प्रवर है, श्री मुख शांडिल्य में घरानों का प्रचलन है जिसमे  राम घराना, कृष्ण घराना, नाथ घराना, मणी घराना है, इन चारों का उदय, सोहगौरा गोरखपुर से है जहाँ आज भी इन चारों का अस्तित्व कायम है| 
उप शांडिल्य ( तिवारी- त्रिपाठी, वंश)
इनके छ: गाँव बताये जाते हैं जी निम्नवत हैं|
(१) शीशवाँ (२) चौरीहाँ (३) चन…

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