*⛅तिथि - तृतीया 23 फरवरी प्रातः 03:24 तक तत्पश्चात चतुर्थी*
*⛅नक्षत्र - पूर्वभाद्रपद 23 फरवरी प्रातः 09:00 तक तत्पश्चात उत्तरभाद्रपद*
*⛅योग - साध्य रात्रि 11:47 तक तत्पश्चात शुभ*
*⛅राहु काल - दोपहर 12:53 से 02:20 तक*
*⛅सूर्योदय - 07:07*
*⛅सूर्यास्त - 06:39*
*⛅दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:28 से 06:18 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:28 से 01:17 तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण -*
*⛅विशेष - तृतीया को परवल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔹लक्ष्मीप्राप्ति व घर में सुख-शांति हेतु🔹*
*🔸तुलसी-गमले की प्रतिदिन एक प्रदक्षिणा करने से लक्ष्मीप्राप्ति में सहायता मिलती है ।*
*🔸तुलसी के थोड़े पत्ते पानी में डाल के उसे सामने रखकर भगवद्गीता का पाठ करे । फिर घर के सभी लोग मिल के भगवन्नाम - कीर्तन करके हास्य - प्रयोग करे और वह पवित्र जल सब लोग ग्रहण करे । यह प्रयोग करने से घर के झगड़े मिटते है, शराबी की शराब छुटती है और घर में सुख शांति का वास होता है ।*
*🔸बुद्धि का नाश कैसे होता है और विकास कैसे होता है ? विद्यार्थियों को तो खास समझना चाहिए न ! बुद्धि नष्ट कैसे होती है ? बुद्धि: शोकेन नश्यति । भूतकाल कि बातें याद करके ‘ऐसा नहीं हुआ, वैसा नही हुआ...’ ऐसा करके जो चिंता करते हैं न, उनकी बुद्धि का नाश होता है । और ‘मैं ऐसा करके ऐसा बनूंगा, ऐसा बनूंगा...’ यह चिंतन बुद्धि-नाश तो नहीं करता लेकिन बुद्धि को भ्रमित कर देता है । और ‘मैं कौन हूँ ? सुख-दुःख को देखनेवाला कौन ? बचपन बीत गया फिर भी जो नहीं बीता वह कौन ? जवानी बदल रही है, सुख-दुःख बदल रहा है, सब बदल रहा है, इसको जाननेवाला मैं कौन हूँ ? प्रभु ! मुझे बताओ...’ इस प्रकार का चिंतन, थोड़ा अपने को खोजना, भगवान के नाम का जप और शास्त्र का पठन करना - इससे बुद्धि ऐसी बढ़ेगी, ऐसी बढ़ेगी कि दुनिया का प्रसिद्द बुद्धिमान भी उसके चरणों में सिर झुकायेगा ।*
*🔹बुद्धि बढ़ाने के ४ तरीके🔹*
*१] शास्त्र का पठन*
*२] भगवन्नाम-जप, भगवद-ध्यान*
*३] आश्रम आदि पवित्र स्थानों में जाना*
*४] ब्रह्मवेत्ता महापुरुष का सत्संग-सान्निध्य*
*🔹जप करने से, ध्यान करने से बुद्धि का विकास होता है । जरा – जरा बात में दु:खी काहे को होना ? जरा – जरा बात में प्रभावित काहे को होना ? ‘यह मिल गया, वह मिल गया...’ मिल गया तो क्या है !*
*🔹ज्यादा सुखी - दु:खी होना यह कम बुद्धिवाले का काम है । जैसे बच्चे की कम बुद्धि होती है तो जरा- से चॉकलेट में, जरा-सी चीज में खुश हो जाता है, और जरा-सी चीज हटी तो दु:खी हो जाता है । वही जब बड़ा होता है तो चार आने का चॉकलेट आया तो क्या, गया तो क्या ! ऐसे ही संसार की जरा-जरा सुविधा में जो अपने को भाग्यशाली मानता है उसकी बुद्धि का विकास नहीं होता और जो जरा-से नुकसान में आपने को अभागा मानता है उसकी बुद्धि मारी जाती है । अरे ! यह सब सपना है, आता-जाता है । जो रहता है, उस नित्य तत्त्व में जो टिके उसकी बुद्धि तो गजब की विकसित होती है ! सुख-दुःख में, लाभ-हानि में, मान-अपमान में सम रहना तो बुद्धि परमात्मा में स्थित रहेगी और स्थित बुद्धि ही महान हो जायेगी ।*