⛅ नक्षत्र - मॄगशिरा शाम 07:25 तक तत्पश्चात आर्द्रा
⛅ योग - आयुष्मान् दोपहर 12:40 तक तत्पश्चात सौभाग्य
⛅ राहुकाल - शाम 05:19 से शाम 06:50 तक
⛅ सूर्योदय - 06:45
⛅ सूर्यास्त - 18:48
⛅ दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
⛅ व्रत पर्व विवरण - होलाष्टक प्रारंभ, रविवारी सप्तमी (सुबह 06:45 से सुबह 07:11 तक)
💥 विशेष - सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है था शरीर का नाश होता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
💥 रविवार के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
💥 रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75.90)
💥 रविवार के दिन काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75)
💥 स्कंद पुराण के अनुसार रविवार के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए। इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।
होलाष्टक विशेष -
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर फाल्गुन मास की पूर्णिमा यानी होली के दिन तक का काल "होलाष्टक" कहलाता है | इन दिनों में शादी, ब्याह, सगाई आदि के काम नहीं किये जाते, लेकिन अगर जप-तप करते हैं तो बहुत फायदा होता है | चमत्कारिक फायदा होता है |
विशेष ~ 21 मार्च 2021 रविवार से होलाष्टक प्रारंभ। कर्जे के भार से बचें I
➡ उबटन वाला स्नान यानी सात चीजों का उबटन लगा के नहाओ सात चीजें हैं :
१ गेहूँ,,,२ चावल ( जो ज्वार खाते हों वो ज्वार और जो चावल खाते हों वो चावल ले सकते हैं ), ३ मूँग
४ चना, ५ उड़द, ६ जौं, ७ तिल कर्जे के भार से छुड़ाने में बड़ा काम करेगा |
➡ इस का समान भाग मिश्रण बना लें उसको चक्की में पिसवाकर उस पाउडर का घोल बनाकर उससे नहाऐं पहले ललाट पर (भस्म की तरह बीच की तीन उँगलियों से लगायें) लगायें आधा-एक मिनट “ॐ नमः शिवाय ” बोलें इससे पाप नाशिनी ऊर्जा पैदा होगी और स्वास्थ्य में कितने लाभ होगें बता नहीं सकते, साबुन लगाने से डिप्रेशन होता है, शरीर के रोम-कूप पर बुरा असर पड़ता है
➡ सप्त धान उबटन का स्नान रोज करो | बहुत मदद मिलेगी .... गृह पीड़ा दूर होगी बहुत फायदा होगा |
सफलता प्राप्ति के लिये शुभ मुहूर्त में शुरू करे काम
किसी अच्छे समय का चयन करके किया गया कार्य ही मुहूर्त कहलाता है। ज्योतिष शास्त्र में शुभ मुहूर्त पर खासा महत्व दिया गया है। कार्य के शुभारंभ के लिए कई प्रकार से मुहूर्त देखे जा सकते हैं। किसी अच्छे समय का चयन करके किया गया कार्य ही मुहूर्त कहलाता है। मुहूर्त पंचांग के पांच अंगों के बिना अधूरा सा है। पंचांग मतलब पंच अंग जैसे तिथि, वार, योग, नक्षत्र, करण इन्हीं से मिलकर ही शुभ योग का निर्माण होता है, जिसे हम मुहूर्त कहते हैं। इनका एक साथ होना योग कहलाता है।
चंद्रमा और मुहूर्त
शुभ कार्य का प्रारम्भ करने से पहले (चंद्रमा) का विचार करना चाहिए। जातक को अपनी राशि ज्ञात होनी चाहिए। याद रहे गोचर का चंद्रमा जातक की जन्मराशि से चौथा, आठवा, बारहवां (4, 8, 12) नहीं होना चाहिए। यदि ऎसा होता है तो अशुभ माना जाता है। इस दौरान शुभ कार्य भी त्यागने योग्य है।
अमृत योग
रविवार-हस्त, सोमवार-मृगशिरा, मंगलवार-अश्विनी, बुधवार-अनुराधा, गुरूवार- पुष्य, शुक्रवार- रेवती, शनिवार- रोहिणी यदि इन वारों के नक्षत्र भी समान हो तो अमृत योग क हलाता है। जैसे रविवार हो हस्त नक्षत्र हुआ तो शुभ कहलाता है। ये योग शुभ होता है।
पुष्य योग
रवि पुष्य योगः रविवार को पुष्य नक्षत्र का संयोग रवि पुष्य योग का निर्माण करता है जो कि अच्छा योग माना जाता है ।
गुरू पुष्य योगः गुरूवार को पुष्य नक्षत्र गुरू पुष्य योग का निर्माण करता है जो व्यापारिक दृष्टिकोण से शुभ रहता है।
चौघडिया मुहूर्त
ये सभी योग किसी विशेष संयोग के कारण बनते हैं। किसी कार्य का शुभारम्भ करना आवश्यक है मगर शुभ योग नही बन रहा है, उस स्थिति में चौघडिया काम में लेते हैं, जो कि 1:30 घंटे का होता है और इस दौरान राहुकाल का त्याग करना चाहिए। लाभ, अमृत, शुभ, चंचल ये चौघडिया शुभ माने जाते हैं । इसकी शुद्धता के लिए हम सुर्योदय से सुर्यास्त के समय को उस दिन के समय को दिनमान व सुर्यास्त से सुर्योदय तक के समय को रात्रिमान मानकर उस मे आठ का भाग देते है जो भागफल आता है वह एक चौघडीए का मान होगा।
अभिजीत मुहूर्त
सुर्योदय से सुर्यास्त के समय यानि दिनमान मे दो का भाग देगे।जो मध्यान्त काल प्राप्त होगा उससे 24मीनट पूर्व व 24मीनट बाद तक अभिजित काल होगा।