नक्षत्र - पूर्व भाद्रपद रात्रि 11:03 तक तत्पश्चात उत्तर भाद्रपद
योग - सिद्धि दोपहर 11:52 तक तत्पश्चात व्यतिपात
राहुकाल - सुबह 08:33 से सुबह 09:54 तक
सूर्योदय - 07:12 सूर्यास्त - 18:01
दिशाशूल - पूर्व दिशा में
व्रत पर्व विवरण - शिशिर ऋतु प्रारंभ
विशेष - सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है तथा शरीर का नाश होता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः
व्यतिपात योग
व्यतिपात योग की ऐसी महिमा है कि उस समय जप पाठ प्राणायम, माला से जप या मानसिक जप करने से भगवान की और विशेष कर भगवान सूर्यनारायण की प्रसन्नता प्राप्त होती है जप करने वालों को, व्यतिपात योग में जो कुछ भी किया जाता है उसका 1 लाख गुना फल मिलता है।
वाराह पुराण में ये बात आती है व्यतिपात योग की :
व्यतिपात योग माने क्या- देवताओं के गुरु बृहस्पति की धर्मपत्नी तारा पर चन्द्र देव की गलत नजर थी जिसके कारण सूर्य देव अप्रसन्न हुए नाराज हुए, उन्होनें चन्द्रदेव को समझाया पर चन्द्रदेव ने उनकी बात को अनसुना कर दिया तो सूर्य देव को दुःख हुआ कि मैने इनको सही बात बताई फिर भी ध्यान नहीं दिया और सूर्यदेव को अपने गुरुदेव की याद आई कि कैसा गुरुदेव के लिये आदर प्रेम श्रद्धा होना चाहिये पर इसको इतना नहीं थोडा भूल रहा है ये, सूर्यदेव को गुरुदेव की याद आई और आँखों से आँसू बहे वो समय व्यतिपात योग कहलाता है। और उस समय किया हुआ जप, सुमिरन, पाठ, प्रायाणाम, गुरुदर्शन की खूब महिमा बताई है वाराह पुराण में।
विशेष ~ 21 दिसम्बर 2020 सोमवार को दोपहर 11:53 से 22 दिसम्बर, मंगलवार को दोपहर 12:11 तक व्यतिपात योग है।
शीत (हेमन्त तथा शिशिर) ऋतुचर्या
21 दिसम्बर 2020 सोमवार से शिशिर ऋतु प्रारंभ ।
शीत ऋतु के अंतर्गत हेमंत और शिशिर ऋतुएँ आती हैं। इस काल में चन्द्रमा की शक्ति विशेष प्रभावशाली होती है। इसलिए इस ऋतु में औषधियों, वृक्ष, पृथ्वी व जल में मधुरता, स्निग्धता व पौष्टिकता की वृद्धि होती है, जिससे प्राणिमात्र पुष्ट व बलवान होते हैं। इन दिनों शरीर में कफ का संचय व पित्त का शमन होता है।
शीत ऋतु में स्वाभाविक रूप से जठराग्नि तीव्र होने से पाचनशक्ति प्रबल रहती है। इस समय लिया गया पौष्टिक और बलवर्धक आहार वर्ष भर शरीर को तेज, बल और पुष्टि प्रदान करता है।
आहारः शीत ऋतु में खारा तथा मधुर रसप्रधान आहार लेना चाहिए।
पचने में भारी, पौष्टिकता से भरपूर, गरम व स्निग्ध प्रकृति के, घी से बने पदार्थों का यथायोग्य सेवन करना चाहिए।
मौसमी फल व शाक, दूध, रबड़ी, घी, मक्खन, मट्ठा, शहद, उड़द, खजूर, तिल, नारियल, मेथी, पीपर, सूखा मेवा तथा अन्य पौष्टिक पदार्थ इस ऋतु में सेवन योग्य माने जाते हैं। रात को भिगोये हुए चने (खूब चबा-चबाकर खायें), मूँगफली, गुड़, गाजर, केला, शकरकंद, सिंघाड़ा, आँवला आदि कम खर्च में खाये जाने वाले पौष्टिक पदार्थ हैं।
इस ऋतु में बर्फ अथवा बर्फ का या फ्रिज का पानी, रूखे-सूखे, कसैले, तीखे तथा कड़वे रसप्रधान द्रव्यों, वातकारक और बासी पदार्थों का सेवन न करें। शीत प्रकृति के पदार्थों का अति सेवन न करें। हलका व कम भोजन भी निषिद्ध है।
इन दिनों में खटाई का अधिक प्रयोग न करें, जिससे कफ का प्रकोप न हो और खाँसी, श्वास (दमा), नजला, जुकाम आदि व्याधियाँ न हों। ताजा दही, छाछ, नींबू आदि का सेवन कर सकते हैं। भूख को मारना या समय पर भोजन न करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। शीतकाल में जठराग्नि के प्रबल होने पर उसके बल के अनुसार पौष्टिक और भारी आहाररूपी ईंधन नहीं मिलने पर यह बढ़ी हुई अग्नि शरीर की धातुओं को जलाने लगती है जिससे वात कुपित होने लगता है। अतः इस ऋतु में उपवास भी अधिक नहीं करना चाहिए।
विहार
➡ शरीर को ठंडी हवा के सम्पर्क में अधिक देर तक न आने दें।
➡ प्रतिदिन प्रातःकाल दौड़ लगाना, शुद्ध वायु सेवन हेतु भ्रमण, शरीर की तेलमालिश, व्यायाम, कसरत व योगासन करने चाहिए।
➡ जिनकी तासीर ठंडी हो, वे इस ऋतु में गुनगुने गर्म जल से स्नान करें। अधिक गर्म जल का प्रयोग न करें। हाथ-पैर धोने में भी यदि गुनगुने पानी किया जाय तो हितकर होगा।
➡ शरीर की चंपी करवाना एवं यदि कुश्ती अथवा अन्य कसरतें आती हों तो उन्हें करना हितावह है।
➡ तेलमालिश के बाद शरीर पर उबटन लगाकर स्नान करना हितकारी है।
➡ कमरे एवं शरीर को थोड़ा गर्म रखें। सूती, मोटे तथा ऊनी वस्त्र इस मौसम में लाभकारी होते हैं। प्रातःकाल सूर्य की किरणों का सेवन करें। पैर ठंडे न हों, इस हेतु जुराबें अथवा जूतें पहनें। बिस्तर, कुर्सी अथवा बैठने के स्थान पर कम्बल, चटाई, प्लास्टिक अथवा टाट की बोरी बिछाकर ही बैठें। सूती कपड़े पर न बैठें।
➡ इन दिनों स्कूटर जैसे दुपहिया खुले वाहनों द्वारा लम्बा सफर न करते हुए बस, रेल, कार जैसे वाहनों से ही सफर करने का प्रयास करें।
➡ दशमूलारिष्ट, लोहासव, अश्वगंधारिष्ट, च्यवनप्राश अथवा अश्वगंधावलेह अथवा अश्वगंधाचूर्ण जैसे देशी व आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन करने से वर्ष भर के लिए पर्याप्त शक्ति का संचय किया जा सकता है।
➡ हेमंत ऋतु में बड़ी हरड़ के चूर्ण में आधा भाग सोंठ का चूर्ण मिलाकर तथा शिशिर ऋतु में अष्टमांश (आठवां भाग) पीपर मिलाकर 2 से 3 ग्राम मिश्रण प्रातः लेना लाभदायी है। यह उत्तम रसायन है।