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19 फरवरी 2021

Updated on 19-02-2021 01:48 PM
दिन - शुक्रवार  ⛅ विक्रम संवत - २०७७   ⛅ शक संवत - १९४२  ⛅ सूर्योदय - 07:07  ⛅ सूर्यास्त - 18:37 ⛅ अयन - उत्तरायण  ⛅ ऋतु - वसंत  ⛅ मास - माघ   ⛅ पक्ष - शुक्ल  
⛅ तिथि - सप्तमी सुबह 10:58 तक तत्पश्चात अष्टमी  ⛅ दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
⛅ नक्षत्र - कृत्तिका 20 फरवरी प्रातः 05:58 तक तत्पश्चात रोहिणी
⛅ योग - इन्द्र 20 फरवरी प्रातः 04:33 तक तत्पश्चात वैधृति
⛅ राहुकाल - सुबह 11:26 से दोपहर 12:53 तक 
⛅ व्रत पर्व विवरण - रथ-आरोग्य-विधान-अचला-चन्द्रभागा सप्तमी, नर्मदा जयंती, भीष्माष्टमी (भीष्म पितामह श्राद्ध दिवस) छत्रपति शिवाजी जयंती (दि.अ.)
 💥 विशेष - सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है था शरीर का नाश होता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
अभीष्ट सिद्धि हेतु 
🙏🏻 भीष्माष्टमी (19 फरवरी) के दिननिम्न मंत्र से भीष्मजी को तिल, गंध, पुष्प, गंगाजल व कुश मिश्रित अर्घ्य देने से अभीष्ट सिद्ध होता है :
वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च |
अर्घ्यं ददामि भीष्माय आबालब्रह्मचारिणे ||
माघ शुक्ल सप्तमी 
➡  19 फरवरी 2021 शुक्रवार को माघ शुक्ल सप्तमी है ।
🙏🏻 माघ शुक्ल सप्तमी को अचला सप्तमी, रथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी, भानु सप्तमी, अर्क सप्तमी आदि अनेक नामों से सम्बोधित किया गया है और इसे सूर्य की उपासना के लिए बहुत ही सुन्दर दिन कहा गया है। पुत्र प्राप्ति, पुत्र रक्षा तथा पुत्र अभ्युदय के लिए इस दिन संतान सप्तमी का व्रत भी किया जाता है।
 स्कन्द पुराण के अनुसार
यस्यां तिथौ रथं पूर्वं प्राप देवो दिवाकरः॥सा तिथिः कथिता विप्रैर्माघे या रथसप्तमी॥ ५.१२९ ॥
तस्यां दत्तं हुतं चेष्टं सर्वमेवाक्षयं मतम्॥ सर्वदारिद्र्यशमनं भास्करप्रीतये मतम्॥ ५.१३० ॥
🙏🏻 भगवान सूर्य जिस तिथि को पहले-पहल रथ पर आरूढ़ हुए, वह ब्राह्मणों द्वारा माघ मास की सप्तमी बताई गयी है, जिसे रथसप्तमी कहते हैं। उस तिथि को दिया हुआ दान और किया हुआ यज्ञ सब अक्षय माना जाता है। वह सब प्रकार की दरिद्रता को दूर करने वाला और भगवान सूर्य की प्रसन्नता का साधक बताया गया है।
🙏🏻 भविष्य पुराण के अनुसार सप्तमी तिथि को भगवान् सूर्य का आविर्भाव हुआ था | ये अंड के साथ उत्पन्न हुए और अंड में रहते हुए ही उन्होंने वृद्धि प्राप्त कि | बहुत दिनोंतक अंड में रहने के कारण ये ‘मार्तण्ड’ के नामसे प्रसिद्ध हुए |
🙏🏻 भविष्य पुराण के अनुसार ही सूर्य को अपनी भार्या उत्तरकुरु में सप्तमी तिथि के दिन प्राप्त हुई, उन्हें दिव्य रूप सप्तमी तिथि को ही मिला तथा संताने भी इसी तिथि को प्राप्त हुई, अत: सप्तमी तिथि भगवान् सूर्य को अतिशय प्रिय हैं |
🙏🏻 भविष्य पुराण : श्रीकृष्ण उवाच ॥ शुक्लपक्षे तु सप्तम्यां यदादित्यदिनं भवेत् । सप्तमी विजया नाम तव्र दत्तं महाफलम् ॥
स्त्रांन दानं जपो होम उपवासस्तथैव च । सर्वें विजयसप्तम्पां महापातकनाशनम् ॥   
प्रदक्षिणां यः कुरुते फलैः पुष्पौर्दिवाकरम् । स सर्वगुणसंपन्नं पुव्रं प्राप्नोत्यनुत्तमम ॥   
🙏🏻 भगवान श्रकृष्ण कहते है– राजन! शुक्ल पक्षकी सप्तमी तिथि को यदि आदित्यवार (रविवार) हो तो उसे विजय सप्तमी कहते है. वह सभी पापोका विनाश करने वाली है .उस दिन किया हुआ स्नान ,दान्, जप, होम तथा उपवास आदि कर्म अनन्त फलदायक होता है. जो उस दिन फल् पुष्प आदि लेकर भगवान सूर्यकी प्रदक्षिणा करता है। वह सर्व गुण सम्पन्न उत्तम पुत्र को प्राप्त करता है। 
नारद पुराण में माघ शुक्ल सप्तमी को “अचला व्रत” बताया गया है। यह “त्रिलोचन जयन्ती” है।  इसी को रथसप्तमी कहते हैं। यही “भास्कर सप्तमी” भी कहलाती है, जो करोङों सूर्य-ग्रहणों के समान है। इसमें अरूणोदय के समय स्नान किया जाता है। आक और बेर के सात-सात पत्ते सिर पर रखकर स्नान करना चाहिए। इससे सात जन्मों के पापों का नाश होता है। इसी सप्तमी को ‘’पुत्रदायक ” व्रत भी बताया गया है। स्वयं भगवान सूर्य ने कहा है - ‘जो माघ शुक्ल सप्तमी को विधिपूर्वक मेरी पूजा करेगा, उसपर अधिक संतुष्ट होकर मैं अपने अंश से उन्सका पुत्र होऊंगा’। इसलिये उस दिन इन्द्रियसंयमपूर्वक दिन-रात उपवास करे और दूसरे दिन होम करके ब्राह्मणों को दही, भात, दूध और खीर आदि भोजन करावें।
शिव पुराण के अनुसार रविवारी सप्तमी सूर्यग्रहण के बराबर फल देती है और इनमें किया गया जप-ध्यान, स्नान , दान व श्राद्ध अक्षय होता है ।
अग्नि पुराण में अग्निदेव कहते हैं – माघ मासके शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथिको (अष्टदल अथवा द्वादशदल) कमल का निर्माण करके उसमें भगवान् सूर्यका पूजन करना चाहिये | इससे मनुष्य शोकरहित हो जाता है |
चंद्रिका में लिखा है “सूर्यग्रहणतुल्या हि शुक्ला माघस्य सप्तमी। अरुणोदगयवेलायां तस्यां स्नानं महाफलम्॥”
➡ अर्थात माघ शुक्ल सप्तमी सूर्यग्रहण के तुल्य होती है सूर्योदय के समय इसमें स्नान का महाफल होता है ।
नारद पुराण के अनुसार “अरुणोदयवालायां शुक्ला माघस्य सप्तमी ॥ प्रयागे यदि लभ्येत सहस्रार्कग्रहैः समा॥ अयने कोटिपुण्यं स्याल्लक्षं तु विषुवे फलम् ॥११२॥”
चंद्रिका में भी विष्णु ने लिखा है “अरुणोदयवेलायां शुक्ला माघस्य सप्तमी ॥ प्रयागे यदि लभ्येत कोटिसूर्यग्रहैः समा”
➡ अर्थात माघ शुक्ल सप्तमी यदि अरुणोदय के समय प्रयाग में प्राप्त हो जाए तो कोटि सूर्य ग्रहणों के तुल्य होती है ।
 मदनरत्न में भविष्योत्तर पुराण का कथन है की “माघे मासि सिते पक्षे सप्तमी कोटिभास्करा। दद्यात् स्नानार्घदानाभ्यामायुरारोग्यसम्पदः॥”
➡ अर्थात माघ मास की शुक्लपक्ष सप्तमी कोटि सूर्यों के बराबर है उसमें सूर्य स्नान दान अर्घ्य से आयु आरोग्य सम्पदा करते हैं ।

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