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18 दिसम्बर 2022

Updated on 18-12-2022 01:12 PM
दिन - रविवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2079*
*⛅शक संवत् - 1944*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - हेमंत*
*⛅मास - पौष (गुजरात, महाराष्ट्र में मार्गशीर्ष)*
*⛅पक्ष - कृष्ण*
*⛅तिथि - दशमी 19 दिसम्बर प्रातः 03:32 तक तत्पश्चात एकादशी*
*⛅नक्षत्र - हस्त सुबह 10:18 तक तत्पश्चात चित्रा*
*⛅योग - शोभन 19 दिसम्बर प्रातः 05:24 तक तत्पश्चात अतिगण्ड*
*⛅राहु काल - शाम 04:38 से 05:58 तक*
*⛅सूर्योदय - 07:14*
*⛅सूर्यास्त - 05:58*
*⛅दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:28 से 06:21 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:10 से 01:03 तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण -*
*⛅विशेष - दशमी को कलंबी शाक त्याज्य है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

*🔹विकराल स्वास्थ्य - समस्या : कृमिरोग🔹*

*🔸आज पेट के कृमि एक बढ़ती स्वास्थ्य- समस्या है । साधारण-सी मालूम पड़नेवाली यह समस्या बच्चों के शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकास के लिए अत्यंत हानिकारक है । यह समस्या बड़ी उम्र के व्यक्तियों में भी पायी जाती है ।*

*🔸कारण : पहले किये हुए भोजन के पूर्णरूप से पचने से पहले दोबारा खाना, दूध के साथ नमकयुक्त, खट्टे पदार्थों, फल, गुड़ आदि का सेवन; बेकरी के पदार्थ, फास्ट फूड, चायनीज फूड, बिस्कुट, चॉकलेट आदि का सेवन, गुड़, मैदे व चावल के आटे से बने पदार्थों का अधिक सेवन, दही, दूध, मावा, पनीर, मिठाई, गन्ना इनका अत्यधिक सेवन; बासी व सड़े हुए अन्न का सेवन, सफाई का ध्यान रखे बिना भोजन करना, दिन में सोना, आसन-व्यायाम का अभाव तथा कब्ज से पेट में कृमि होते हैं । मुँह में उँगली डालने, मुँह से नाखून चबाने तथा मिट्टी खाने की आदत से बच्चों में कृमि होने की सम्भावना अधिक होती है ।*

*🔹लक्षण व दुष्प्रभाव : शौच में कीड़े दिखना, गुदा में खुजली, अधिक खाने की इच्छा, पेट का फूलना व दर्द, जी मिचलाना, शरीर का कद न बढ़ना, वजन कम होना, खून की कमी, बुद्धि की मंदता, कभी-कभी बेहोशी आना, बिस्तर में पेशाब होना - ये सभी या इनमें से कुछ लक्षण दिखते हैं ।*

*🔹कृमि कभी-कभी पित्तवाहिनी में अवरोध करके पीलिया तथा आँतों के मार्ग को ही बंद कर देते हैं। ये मज्जा का भक्षण कर सिर के रोग तथा नेत्रों को हानि पहुँचा के नेत्ररोग उत्पन्न करते हैं इन दुष्परिणामों को न जानने से बच्चों के पेट में होनेवाले कृमि को हम नजरअंदाज करते हैं ।*

*🔸कृमिरोग से सुरक्षा के उपाय🔸*

*🔹अथर्ववेद (कांड २, सूक्त ३२, मंत्र १) में आता है : 'उदय होता हुआ प्रकाशमान सूर्य कृमियों को मारे और अस्त होता हुआ भी सूर्य अपनी किरणों से कृमियों को मारे ।' भगवान सूर्य से उपरोक्तानुसार प्रार्थना करें ।*

*रोज सुबह सूर्यस्नान करें ।*
*रोज तुलसी के ५-७ पत्ते खायें ।*

*🔹आहार : जौ, कुलथी, पपीता, अनन्नास, अजवायन, हींग, सोंठ, सरसों, मेथी, जीरा, अरंडी का तेल, पुदीना, करेला, बैंगन, सहजन की फली, परवल, लहसुन आदि का उपयोग अपनी प्रकृति, ऋतु आदि का ध्यान रखते हुए विशेषरूप से करें । फलों एवं सब्जियों को अच्छे से धोकर प्रयोग करें व बाजारू अपवित्र खाद्य पदार्थों से बचें ।*

*🔹 रविवार विशेष🔹*

*🔹 रविवार के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*

*🔹 रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75.90)*

*🔹 रविवार के दिन काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75)*

*🔹 रविवार सूर्यदेव का दिन है, इस दिन क्षौर (बाल काटना व दाढ़ी बनवाना) कराने से धन, बुद्धि और धर्म की क्षति होती है ।*

*🔹 रविवार को आँवले का सेवन नहीं करना चाहिए ।*

*🔹 स्कंद पुराण के अनुसार रविवार के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए । इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं ।*
*🔹 रविवार के दिन पीपल के पेड़ को स्पर्श करना निषेध है ।*

*🔹 रविवार के दिन तुलसी पत्ता तोड़ना वर्जित है ।*

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