दिन - बुधवार सूर्योदय - 06:46 सूर्यास्त - 18:47 विक्रम संवत - २०७७ शक संवत - १९४२ अयन - उत्तरायण ऋतु - वसंत मास - फाल्गुन पक्ष - शुक्ल तिथि - चतुर्थी रात्रि 11:28 तक तत्पश्चात पंचमी नक्षत्र - अश्विनी सुबह 07:31 तक तत्पश्चात भरणी योग - इन्द्र सुबह 09:00 तक तत्पश्चात वैधृति राहुकाल - दोपहर 12:47 से दोपहर 02:17 तक दिशाशूल - उत्तर दिशा में
व्रत पर्व विवरण - विनायक चतुर्थी
विशेष - चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
बुढ़ापे में झुर्रियों से बचने हेतु
बड़ी उम्रवालों को सूखा नारियल चबाके खाना चाहिये तो झुर्रियां नहीं पड़ेगी | नारंगी खाना चाहिये तो झुर्रियां नहीं पड़ेगी |
मास अनुसार देवपूजन
➡ माघ मास में सूर्य पूजन का विशेष विधान है | भविष्य पुराण आदि में वर्णन आता है | आरोग्यप्राप्ति हेतु बोले, माघ मास आया तो सूर्य उपासना करों |
➡ फाल्गुन मास आया तो होली का पूजन किया जाता है.. बच्चों की सुरक्षा हेतु |
➡ चैत्र मास आता है चैत्र मास में ब्रम्हा, दिक्पाल आदि का पूजन कियाजाता है ताकि वर्षभर हमारे घर में सुख-शांति रहें |
➡ वैशाख मास भगवान माधव का पूजन किया जाता है ताकि, मरने के बाद वैकुंठलोक की प्राप्ति हो | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय... |
➡ जेष्ठ मास में यमराज की पूजा की जाती है जो की वटसावित्री का व्रत सुहागन देवियाँ करती हैं | यमराज की पूजा की जाती है ताकि, सौभाग्य की प्राप्ति हो, दुर्भाग्य दूर हो |
➡ श्रावण मास में दीर्घायु की प्राप्ति हो, श्रावण मास में शिवजी की पूजाकी जाती है | अकाल मृत्यु हरणं सर्व व्याधि विनाशनम् |
➡ भाद्रपद मास में गणपति की पूजा करते है की, निर्विध्नता की प्राप्ति हेतु |
➡ आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में फिर पितृ पूजन करते है की, वंश वृद्धि हेतु | और अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में माँ दुर्गा की पूजा होती है की, शत्रुओं पर विजय प्राप्ति हेतु नवरात्रियां |
➡ कार्तिक मास में लक्ष्मी पूजा की जाती है, सम्पति बढ़ाने हेतु |
➡ मार्गशीर्ष मास में विश्वदेवताओं का पूजन किया जाता है कि जो गुजर गये उनकी आत्मा की शांति हेतु ताकि उनको शांति मिले | जीवनकाल में तो बिचारेशांति न लें पाये और चीजों में उनकी शांति दिखती रही पर मिली नहीं | तो मार्गशीर्ष मास में विश्व देवताओं का पूजन करते हैं भटकते जीवों के सद्गति हेतु |
➡ आषाढ़ मास में गुरुदेव का पूजन करते हैं अपने कल्याण हेतु और गुरुदेव का पूजन करते हैं तो फिर बाकी सब देवी-देवताओं की पूजा से जो फल मिलता है वह फल सद्गुरु की पूजा से भी प्राप्त हो सकता है, शिष्य की भावना पक्की हो की – सर्वदेवोमय गुरु | सभी देवों का वास मेरे गुरुदेव में हैं | तोअन्य देवताओं की पूजा से अलग-अलग मास में अलग-अलग देव की पूजा से अलग-अलग फल मिलता है पर उसमें द्वैत बना रहता है और फल जो मिलता है वो छुपने वाला होता है | पर गुरुदेव की पूजा-उपासना से ये फल भी मिल जाते है और धीरे-धीरे द्वैत मिटता जाता है | अद्वैत में स्थिति होती जाती है |
चंदन तिलक की महिमा
चंदनस्य महतपुण्यं पवित्रं पाप नाशनम |
आपदं हरति नित्यं लक्ष्मी तिष्ठति सर्वदा ||
➡ चंदन का तीलक महापुण्यदायी है | आपदा हर देता है |
निष्काम दान की महत्ता
( निष्काम = बिना बदल ! )
चिड़ी चोंच भर ले गई, नदी न घटयो नीर।
दान दिये धन न घटे, कह गये दास कबीर !
सुदूर देश में एक महिला संत हुई है -राबिआ ! बचपन काफी मुश्किलों में बीता, पर परमात्मा की अपार अनुकम्पा से जवानी की दहलीज पर आते-आते संत बन गई । एक नगर के बाहर कुटिया बना कर के तो भजन-पाठ में जीवन बिताया करती है ! बहुत ख्याति थी राबिआ की,कि परमात्मा की परम अनुरक्ता है। अतः लोग दूर दूर से आ कर के तो उस से अपनी समस्याओं का समाधान करवाया करते है ! एक दफा दो फकीर राबिआ की कुटिया पर पधारे और बोले:-" राबिआ बहुत भूखे है, दो तीन दिन से कुछ भी नहीं खाया है । अगर हो सके तो हमारे लिए भोजन की व्यवस्था कीजियेगा ! "ठीक है महाराज" यह कह कर के तो राबिआ बर्तनों में भोजन तलाशना शुरू कर देती है ! पर यह क्या केवल दो ही रोटियाँ घर में है ! इतने में ही एक भिखारी कुटिया के बाहर से आवाज लगता है :-- -"भूखा हूँ कोई खाने को दो!" राबिआ वे दोनों ही रोटिया उस भिखारी को दे देती है ! फकीर सब नजारा अपनी आँखों से देख रहे है। राबिआ के इस व्यवहार से काफी अचंभित हुए। इससे पहले कि वे राबिआ को कुछ कहें, छोटी सी एक लड़की हाथों में पोटली लिये दौड़ी-दौड़ी राबिआ की कुटिया में आती है । कहती है :-"ये अम्मा ने भेजी है। " राबिआ उस पोटली को खोलती है , इसमें तो रोटिया है। उन्हें गिनती है पर कुछ सोच कर के तो पोटली बंद कर उसी लड़की के हाथों ही उसे वापिस भिजवा देती है । फकीर फटी आँखों से राबिआ की इस अशिष्टता को देख रहे थे।आपस में बुदबुदा रहे है- "लगता है कि हमें भोजन ही नहीं करवाना चाहती ! " इस से पहले कि वो राबिआ को क्रोधपूर्वक कुछ कहे , वह लड़की पोटली लिये पुनः कुटिया में आती है । "अम्मा ने भेजी है ! " राबिआ फिर से उन्हें गिनती है ठीक है ! उन रोटियों को फकीरों की सेवा में परोसती है। भोजन कीजिये महाराज ! राबिआ भोजन तो हम बाद में करेंगे, पहले हमें जो कुछ भी हुआ सब समझाओ ! ठीक है महाराज । जब मैंने देखा कि घर में केवल दो ही रोटिया है तो मैं सोच में पड़ गई कि इन से क्या होगा ! एक -दो. रोटी अगर मैं आप दोनों को ही दे दू तो उस से पेट क्या भरेगा ? अगर दोनों रोटिया आप में से किसी एक को ही दे दू तो दूसरा नाराज हो जायेगा ! इतने में भिखारी आ गया। मैंने सोचा कम से कम इसका तो पेट भरा जा सकता है ! सो परमात्मा का नाम लेकर के तो वे दोनों रोटिया मैंने उसे दे दी। साथ ही साथ परमात्मा से प्रार्थना भी की, कि -" हे देवाधिदेव ! सुना है कि तुम दिये दान का दस गुणा तो कम से कम अवश्य ही वापिस किया करते हो ! सो आज मुझे तुरंत ही इस दान का फल प्रदान कीजियेगा ! वह लड़की पहली बार जब रोटियां ले कर आई तो गिनने पर पाया कि केवल 18 ही रोटिया है, जब कि दो का दस गुणा तो बीस होता है ! मैंने सोचा क्या परमात्मा के नियत किये विधान में भी कोई गलती हो सकती है ?अवश्य ही उस महिला से गलती लग गई होगी, सो पोटली ज्यों कि त्यों वापिस कर दी ! अब क़ी बार जब पुनः पोटली में गिनती क़ी है तो पूरी बीस क़ी बीस रोटिया ही है ! परमात्मा क़ी शुक्रगुजार हूँ क़ि उसने मेरी लाज रख ली क़ि जो द्वार पर आये आप लोगो को भूखा नहीं जाने दिया !
धन्य हो राबिया तुम और तुम्हारी ईश्वरभक्ति और आस्था ! साधकजनों मानवता की भलाई के कार्यो में दिल खोल कर दान दिया कीजियेगा ! ये परमात्मा का विधान है क़ि वह दान देने वाले को कभी किसी का मोहताज नहीं रहने देता ! संत महात्मा फ़रमाते है क़ि वह दिये दान का दस गुणा तो कम से कम अवश्य ही वापिस किया करता है ! नि:स्वार्थ भाव से दिये दान को कभी-कभी वह हजारों-लाखों गुणा कर के भी लौटाया करता है I
गर उसकी रजा हुई तो ! अतः नि:स्वार्थ भाव से जन-कल्याण के कार्यो में खूब दान दीजियेगा। वापिस मिलेगा यह सोच कर नहीं ! यह तो उस पर निर्भर है क़ि वह किस कर्म का फल कब और किस काल दें ! बनवास में द्रौपदी की भी कथा है कि जब थाली के एक चावल कण से श्री कृष्ण कृपा से साधुओं को भोजन कराया।
जानिए गणेश जी का असली मस्तक कटने के बाद कहां गया
भगवान गणेश गजमुख, गजानन के नाम से जाने जाते हैं, क्योंकि उनका मुख गज यानी हाथी का है। भगवान गणेश का यह स्वरूप विलक्षण और बड़ा ही मंगलकारी है। आपने भी श्रीगणेश के गजानन बनने से जुड़े पौराणिक प्रसंग सुने-पढ़े होंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं या विचार किया है कि गणेश का मस्तक कटने के बाद उसके स्थान पर गजमुख तो लगा, लेकिन उनका असली मस्तक कहां गया? जानिए, उन प्रसंगों में ही उजागर यह रोचक बात – श्री गणेश के जन्म के सम्बन्ध में दो पौराणिक मान्यता है। प्रथम मान्यता के अनुसार जब माता पार्वती ने श्रीगणेश को जन्म दिया, तब इन्द्र, चन्द्र सहित सारे देवी-देवता उनके दर्शन की इच्छा से उपस्थित हुए। इसी दौरान शनिदेव भी वहां आए, जो श्रापित थे कि उनकी क्रूर दृष्टि जहां भी पड़ेगी, वहां हानि होगी। इसलिए जैसे ही शनि देव की दृष्टि गणेश पर पड़ी और दृष्टिपात होते ही श्रीगणेश का मस्तक अलग होकर चन्द्रमण्डल में चला गया। इसी तरह दूसरे प्रसंग के मुताबिक माता पार्वती ने अपने तन के मैल से श्रीगणेश का स्वरूप तैयार किया और स्नान होने तक गणेश को द्वार पर पहरा देकर किसी को भी अंदर प्रवेश से रोकने का आदेश दिया। इसी दौरान वहां आए भगवान शंकर को जब श्रीगणेश ने अंदर जाने से रोका, तो अनजाने में भगवान शंकर ने श्रीगणेश का मस्तक काट दिया, जो चन्द्र लोक में चला गया। बाद में भगवान शंकर ने रुष्ट पार्वती को मनाने के लिए कटे मस्तक के स्थान पर गजमुख या हाथी का मस्तक जोड़ा।
ऐसी मान्यता है कि श्रीगणेश का असल मस्तक चन्द्रमण्डल में है, इसी आस्था से भी धर्म परंपराओं में संकट चतुर्थी तिथि पर चन्द्रदर्शन व अर्घ्य देकर श्रीगणेश की उपासना व भक्ति द्वारा संकटनाश व मंगल कामना की जाती है।