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12 मई 2021 पंचांग

Updated on 12-05-2021 01:15 PM
⛅ दिन - बुधवार
⛅ विक्रम संवत - 2078 (गुजरात - 2077)
⛅ शक संवत - 1943
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - ग्रीष्म 
⛅ मास - वैशाख
⛅ पक्ष - शुक्ल 
⛅ तिथि - प्रतिपदा 13 मई रात्रि 03:05 तक तत्पश्चात द्वितीया
⛅ नक्षत्र - कृत्तिका 13 मई रात्रि 02:40 तक तत्पश्चात रोहिणी
⛅ योग - शोभन रात्रि 11:48 तक तत्पश्चात अतिगण्ड
⛅ राहुकाल - दोपहर 12:35 से दोपहर 02:13 तक 
⛅ सूर्योदय - 06:03 
⛅ सूर्यास्त - 19:07 
⛅ दिशाशूल - उत्तर दिशा में
⛅ *व्रत पर्व विवरण - आज बुधवार वैशाख शुक्ल प्रतिपदा तिथि है आज कृतिका नक्षत्र, संवत् 2078 है I
👉 आज पराशर ऋषि जयन्ती है। (मतान्तर)
👉 आज से सूर्य और चन्द्र दोनों ग्रह उच्च राशि में हैं।
👉 अक्षय तृतीया के दिन वर्ष भर का अनाज एकत्र कर रखने का मुहूर्त्त है।
👉 अक्षय तृतीया के दिन घी और गुड़ का हलवा बनाना चाहिए और सूर्य भगवान को भोग लगाकर खाना चाहिए।
👉 अक्षय तृतीया की रात्रि को देशी गाय के दूध की खीर बनाकर चन्द्रमा को भोग लगाकर प्रसाद के रूप में खाना चाहिए।
👉 अक्षय तृतीया के दिन बुजुर्गों और माता-पिता की सेवा करना चाहिए और उनकी प्रसन्नता वाले काम करना चाहिए।
👉 कृषक अक्षय तृतीया के दिन चन्द्रमा के अस्त होते समय रोहिणी का आगे जाना अच्छा और पीछे रह जाना बुरा फल मानते हैं।
👉 अक्षय तृतीया के दिन माता पार्वती का प्रीति पूर्वक पूजन करने का भी विधान है।
 💥 विशेष - प्रतिपदा को कूष्माण्ड(कुम्हड़ा, पेठा) न खाये, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
अक्षय फलदायी “अक्षय तृतीया” 
➡ 14 मई 2021 शुक्रवार को अक्षय तृतीया है ।
वैशाख शुक्ल तृतीया की महिमा मत्स्य, स्कंद, भविष्य, नारद पुराणों व महाभारत आदि ग्रंथो में है । इस दिन किये गये पुण्यकर्म अक्षय (जिसका  क्षय न हो) व अनंत फलदायी होते हैं, अत: इसे 'अक्षय तृतीया' कहते है । यह सर्व सौभाग्यप्रद है।
यह युगादि तिथि यानी सतयुग व त्रेतायुग की प्रारम्भ तिथि है । श्रीविष्णु का नर-नारायण, हयग्रीव और परशुरामजी के रूप में अवतरण व महाभारत युद्ध का अंत इसी तिथि को हुआ था ।
इस दिन बिना कोई शुभ मुहूर्त देखे कोई भी शुभ कार्य प्रारम्भ या सम्पन्न किया जा सकता है । जैसे - विवाह, गृह - प्रवेश या वस्त्र -आभूषण, घर, वाहन, भूखंड आदि की खरीददारी, कृषिकार्य का प्रारम्भ आदि सुख-समृद्धि प्रदायक है ।
प्रात:स्नान, पूजन, हवन का महत्त्व
इस दिन गंगा-स्नान करने से सारे तीर्थ करने का फल मिलता है । गंगाजी का सुमिरन एवं जल में आवाहन करके ब्राम्हमुहूर्त में पुण्यस्नान तो सभी कर सकते है । स्नान के पश्चात् प्रार्थना करें :
माधवे मेषगे भानौं मुरारे मधुसुदन ।
प्रात: स्नानेन में नाथ फलद: पापहा भव ॥
'हे मुरारे ! हे मधुसुदन ! वैशाख मास में मेष के सूर्य में हे नाथ ! इस प्रात: स्नान से मुझे फल देनेवाले हो जाओ और पापों का नाश करों ।'
सप्तधान्य उबटन व गोझरण मिश्रित जल से स्नान पुण्यदायी है । पुष्प, धूप-दीप, चंदनम अक्षत (साबुत चावल) आदि से लक्ष्मी-नारायण का पूजन व अक्षत से हवन अक्षय फलदायी है ।
जप, उपवास व दान का महत्त्व 
इस दिन किया गया उपवास, जप, ध्यान, स्वाध्याय भी अक्षय फलदायी होता है । एक बार हल्का  भोजन करके भी उपवास कर सकते है । 'भविष्य पुराण' में आता है कि इस दिन दिया गया दान अक्षय हो जाता है । इस दिन पानी के घड़े, पंखे, (खांड के लड्डू), पादत्राण (जूते-चप्पल), छाता, जौ, गेहूँ, चावल, गौ, वस्त्र आदि का दान पुण्यदायी है । परंतु दान सुपात्र को ही देना चाहिए ।
पितृ-तर्पण का महत्त्व व विधि 
इस दिन पितृ-तर्पण करना अक्षय फलदायी है । पितरों के तृप्त होने पर घर में  सुख-शांति-समृद्धि व दिव्य संताने आती है।
विधि : इस दिन तिल एवं अक्षत लेकर  र्विष्णु एवं ब्रम्हाजी को तत्त्वरूप से पधारने की प्रार्थना करें । फिर पूर्वजों का मानसिक आवाहन कर उनके चरणों में तिल, अक्षत व जल अर्पित करने की भावना करते हुए धीरे से सामग्री किसी पात्र में छोड़ दें तथा भगवान दत्तात्रेय, ब्रम्हाजी व विष्णुजी से पूर्वजों की सदगति हेतु प्रार्थना करें ।
आशीर्वाद पाने का दिन
इस दिन माता-पिता, गुरुजनों की सेवा कर उनकी विशेष प्रसन्नता, संतुष्टि व आशीर्वाद प्राप्त करें । इसका फल भी अक्षय होता है ।
अक्षय तृतीया का तात्त्विक संदेश
'अक्षय' यानी जिसका कभी नाश न हो । शरीर एवं संसार की समस्त वस्तुएँ नाशवान है, अविनाशी तो केवल परमात्मा ही है । यह दिन हमें आत्म विवेचन की प्रेरणा देता है । अक्षय आत्मतत्त्व पर दृष्टी रखने का दृष्टिकोण देता है । महापुरुषों व धर्म के प्रति हमारी श्रद्धा और परमात्म प्राप्ति का हमारा संकल्प अटूट व अक्षय हो - यही अक्षय तृतीया का संदेश मान सकते हो ।
अक्षय तृतीया  
'अक्षय' शब्द का मतलब है- जिसका क्षय या नाश न हो। इस दिन किया हुआ जप, तप, ज्ञान तथा दान अक्षय फल देने वाला होता है अतः इसे 'अक्षय तृतीया' कहते हैं। भविष्यपुराण, मत्स्यपुराण, पद्मपुराण, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, स्कन्दपुराण में इस तिथि का विशेष उल्लेख है। इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं, उनका बड़ा ही श्रेष्ठ फल मिलता है। इस दिन सभी देवताओं व पित्तरों का पूजन किया जाता है। पित्तरों का श्राद्ध कर धर्मघट दान किए जाने का उल्लेख शास्त्रों में है। वैशाख मास भगवान विष्णु को अतिप्रिय है अतः विशेषतः विष्णु जी की पूजा करें।
स्कन्दपुराण के अनुसार, जो मनुष्य अक्षय तृतीया को सूर्योदय काल में प्रातः स्नान करते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करके कथा सुनते हैं, वे मोक्ष के भागी होते हैं। जो उस दिन मधुसूदन की प्रसन्नता के लिए दान करते हैं, उनका वह पुण्यकर्म भगवान की आज्ञा से अक्षय फल देता है।
भविष्यपुराण के मध्यमपर्व में कहा गया है वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया में गंगाजी में स्नान करनेवाला सब पापों से मुक्त हो जाता है | वैशाख मास की तृतीया स्वाती नक्षत्र और माघ की तृतीया रोहिणीयुक्त हो तथा आश्विन तृतीया वृषराशि से युक्त हो तो उसमें जो भी दान दिया जाता है, वह अक्षय होता है | विशेषरूप से इनमें हविष्यान्न एवं मोदक देनेसे अधिक लाभ होता है तथा गुड़ और कर्पूर से युक्त जलदान करनेवाले की विद्वान् पुरुष अधिक प्रंशसा करते हैं, वह मनुष्य ब्रह्मलोक में पूजित होता है | यदि बुधवार और श्रवण से युक्त तृतीया हो तो उसमें स्नान और उपवास करनेसे अनंत फल प्राप्त होता हैं |
🌷 अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं ।
 तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया ।
उद्दिश्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यै: ।
 तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव ।। – मदनरत्न
अर्थ : भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठरसे कहते हैं, हे राजन इस तिथि पर किए गए दान व हवन का क्षय नहीं होता है; इसलिए हमारे ऋषि-मुनियोंने इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहा है । इस तिथि पर भगवानकी कृपादृष्टि पाने एवं पितरोंकी गतिके लिए की गई विधियां अक्षय-अविनाशी होती हैं ।
भविष्यपुराण, ब्राह्मपर्व, अध्याय 21 
वैशाखे मासि राजेन्द्र तृतीया चन्दनस्य च ।वारिणा तुष्यते वेधा मोदकैर्भीम एव हि । ।दानात्तु चन्दनस्येह कञ्जजो नात्र संशयः । । यात्वेषा कुरुशार्दूल वैशाखे मासि वै तिथिः ।तृतीया साऽक्षया लोके गीर्वाणैरभिनन्दिता । । आगतेयं महाबाहो भूरि चन्द्रं वसुव्रता ।कलधौतं तथान्नं च घृतं चापि विशेषतः । ।यद्यद्दत्तं त्वक्षयं स्यात्तेनेयमक्षया स्मृता । । यत्किञ्चिद्दीयते दानं स्वल्पं वा यदि वा बहु ।तत्सर्वमक्षयं स्याद्वै तेनेयमक्षया स्मृता । ।योऽस्यां ददाति करकन्वारिबीजसमन्वितान् ।स याति पुरुषो वीर लोकं वै हेममालिनः । ।इत्येषा कथिता वीर तृतीया तिथिरुत्तमा ।यामुपोष्य नरो राजन्नृद्धिं वृद्धिं श्रियं भजेत् । ।
अर्थ : वैशाख मास की तृतीया को चन्दनमिश्रित जल तथा मोदक के दान से ब्रह्मा तथा सभी देवता प्रसन्न होते हैं | देवताओं ने वैशाख मास की तृतीया को अक्षय तृतीया कहा है | इस दिन अन्न-वस्त्र-भोजन-सुवर्ण और जल आदि का दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है | इसी तृतीया के दिन जो कुछ भी दान किया जाता है वह अक्षय हो जाता है और दान देनेवाला सूर्यलोक को प्राप्त करता है | इस तिथि को जो उपवास करता है वह ऋद्धि-वृद्धि और श्री से सम्पन्न हो जाता है |

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