🌤️ *मास - माघ (गुजरात एवं महाराष्ट्र के अनुसार पौष मास)*
🌤️ *पक्ष - कृष्ण*
🌤️ *तिथि - द्वितीया पूर्ण रात्रि तक*
🌤️ *नक्षत्र - पुष्य 09 जनवरी सुबह 06:05 तक तत्पश्चात अश्लेशा*
🌤️ *योग - वैधृति सुबह 09:43 तक तत्पश्चात विष्कंभ*
🌤️ *राहुकाल - शाम 04:51 से शाम 06:13 तक*
*🌞 सूर्योदय- 07:19*
🌦️ *सूर्यास्त - 18:11*
👉 *दिशाशूल -पश्चिम दिशा में*
🚩 *व्रत पर्व विवरण- रविपुष्यामृत योग (सूर्योदय से 9 जनवरी सुबह 06:05 तक द्वितीया वृद्धि तिथि*
🔥 *विशेष -द्वितीया को बृहती (छोटा बैगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
💥 *रविवार के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
💥 *रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75.90)*
💥 *रविवार के दिन काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75)*
💥 *स्कंद पुराण के अनुसार रविवार के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए। इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।*
*माघ कृष्ण चतुर्थी / संकष्टी चतुर्थी / संकट चौथ*
➡ *10 जनवरी 2023 मंगलवार को माघ कृष्ण चतुर्थी, संकट चौथ, संकष्टी चतुर्थी का त्यौहार है। इस चतुर्थी को 'माघी कृष्ण चतुर्थी', 'तिलचौथ', ‘वक्रतुण्डी चतुर्थी’ भी कहा जाता है।*
🙏🏻 *इस दिन गणेश भगवान तथा संकट माता की पूजा का विधान है। संकष्ट का अर्थ है 'कष्ट या विपत्ति', 'कष्ट' का अर्थ है 'क्लेश', सम् उसके आधिक्य का द्योतक है। आज किसी भी प्रकार के संकट, कष्ट का निवारण संभव है। आज के दिन व्रत रखा जाता है। इस व्रत का आरम्भ ' गणपतिप्रीतये संकष्टचतुर्थीव्रतं करिष्ये ' - इस प्रकार संकल्प करके करें । सायंकालमें गणेशजी का और चंद्रोदय के समय चंद्र का पूजन करके अर्घ्य दें।*
*'गणेशाय नमस्तुभ्यं सर्वसिद्धि प्रदायक।*
*संकष्टहर में देव गृहाणर्धं नमोस्तुते।*
*कृष्णपक्षे चतुर्थ्यां तु सम्पूजित विधूदये।*
*क्षिप्रं प्रसीद देवेश गृहार्धं नमोस्तुते।'*
🙏🏻 *नारदपुराण, पूर्वभाग अध्याय 113 में संकष्टीचतुर्थी व्रत का वर्णन इस प्रकार मिलता है।*
🙏🏻 *माघ कृष्ण चतुर्थी को ‘संकष्टवव्रत’ बतलाया जाता है। उसमें उपवास का संकल्प लेकर व्रती सबेरे से चंद्रोदयकाल तक नियमपूर्वक रहे। मन को काबू में रखे। चंद्रोदय होने पर मिट्टी की गणेशमूर्ति बनाकर उसे पीढ़े पर स्थापित करे। गणेशजी के साथ उनके आयुध और वाहन भी होने चाहिए। मिटटी में गणेशजी की स्थापना करके षोडशोपचार से विधिपूर्वक उनका पूजन करें । फिर मोदक तथा गुड़ से बने हुए तिल के लडडू का नैवेद्य अर्पण करें।*
*तत्पश्चात् तांबे के पात्र में लाल चन्दन, कुश, दूर्वा, फूल, अक्षत, शमीपत्र, दधि और जल एकत्र करके निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करते हुए उन्हें चन्द्रमा को अर्घ्य दें -*
*गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।*
*गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥*
*'गगन रूपी समुद्र के माणिक्य, दक्ष कन्या रोहिणी के प्रियतम और गणेश के प्रतिरूप चन्द्रमा! आप मेरा दिया हुआ यह अर्घ्य स्वीकार कीजिए।’*
*इस प्रकार गणेश जी को यह दिव्य तथा पापनाशन अर्घ्य देकर यथाशक्ति उत्तम ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्च्यात स्वयं भी उनकी आज्ञा लेकर भोजन करें। ब्रह्मन ! इस प्रकार कल्याणकारी ‘संकष्टवव्रत’ का पालन करके मनुष्य धन-धान्य से संपन्न होता है। वह कभी कष्ट में नहीं पड़ता।*
🙏🏻 *लक्ष्मीनारायणसंहिता में भी कुछ इसी प्रकार वर्णन मिलता है ।*
➡ *भविष्यपुराण में भी इस व्रत का वर्णन मिलता है ।*
👉🏻 *आज के दिन क्या करें*
➡ *१. गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ अत्यन्त शुभकारी होगा ।*
➡ *२. गणेश भगवान को दूध (कच्चा), पंचामृत, गंगाजल से स्नान कराकर, पुष्प, वस्त्र आदि समर्पित करके तिल तथा गुड़ के लड्डू, दूर्वा का भोग जरूर लगायें। लड्डू की संख्या 11 या 21 रखें। गणेश जी को मोदक (लड्डू), दूर्वा घास तथा लाल रंग के पुष्प अति प्रिय हैं । गणेश अथर्वशीर्ष में कहा गया है "यो दूर्वांकुरैंर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति" अर्थात जो दूर्वांकुर के द्वारा भगवान गणपति का पूजन करता है वह कुबेर के समान हो जाता है। "यो मोदकसहस्रेण यजति स वाञ्छित फलमवाप्रोति" अर्थात जो सहस्र (हजार) लड्डुओं (मोदकों) द्वारा पूजन करता है, वह वांछित फल को प्राप्त करता है।*
➡ *३. आज गणपति के 12 नाम या 21 नाम या 101 नाम से पूजा करें ।*
➡ *४. शिवपुराण के अनुसार “महागणपतेः पूजा चतुर्थ्यां कृष्णपक्ष के। पक्षपापक्षयकरी पक्षभोगफलप्रदा ॥ “ अर्थात प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को की हुई महागणपति की पूजा एक पक्ष के पापों का नाश करनेवाली और एक पक्ष तक उत्तम भोगरूपी फल देनेवाली होती है ।*
➡ *५. किसी भी समस्या के समाधान के लिए आज संकट नाशन गणेश स्तोत्र के 11 पाठ करें।*