दिन - सोमवार विक्रम संवत - 2077 शक संवत - 1942 अयन - दक्षिणायन
ऋतु - हेमंत
मास - मार्गशीर्ष (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार - कार्तिक)
पक्ष - कृष्ण
तिथि - सप्तमी रात्रि 06:47 तक तत्पश्चात अष्टमी
नक्षत्र - मघा दोपहर 02:33 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी
योग - विष्कम्भ 08 दिसम्बर रात्रि 03:19 तक तत्पश्चात प्रीति
राहुकाल - सुबह 08:25 से सुबह 09:47 तक
सूर्योदय - 07:04 सूर्यास्त - 17:55
दिशाशूल - पूर्व दिशा में
व्रत पर्व विवरण - कालभैरव जयंती
विध्नों का समन करते हैं गजानन
गजानन गणेश की संकल्प अनुसार साधना करने से विघ्नहर्ता बिगड़ी बना देते हैं। भगवान गणेश स्वयं रिद्धि-सिद्धि के दाता व शुभ-लाभ के प्रदाता हैं। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश की पूजा-अर्चना से अर्थ, विद्या, बुद्धि, विवेक, यश, प्रसिद्धि, सिद्धि की उपलब्धि सहज ही प्राप्त हो जाती है। ऐसे विघ्न विनाशक भगवान श्री गणेश की आराधना पूजन गणेशअथर्वशीर्ष के पाठ करने से सकारात्मकता, विद्या और अनेक विघ्न, आलस्य, रोग आदि का तत्काल निवारण हो जाता हैऔर सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
विशेष - सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है या शरीर का नाश होता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
स्वास्थवर्धक विशेष प्रयोग
यौवनदाता : 10-15 ग्राम गाय के घी के साथ 25 ग्राम आँवले का चूर्ण, 5 ग्राम शहद तथा 10 ग्राम तिल का तेल मिलाकर प्रात: सेवन करने से दीर्घकाल तक युवावस्था बनी रहती है |
यादशक्ति बढ़ानेे हेतु : प्रतिदिन 15 से 20 मि.ली. तुलसी रस व एक चम्मच च्यवनप्राश का थोडा-सा घोल बना के सारस्वत्य मंत्र अथवा गुरुमंत्र जपकर पियें | 40 दिन में चमत्कारिक फायदा होगा |
वीर्यवर्धक योग : 4-5 खजूर रात को पानी में भिगो के रखें | सुबह 1 चम्मच मक्खन, 1 इलायची व थोडा-सा जायफल पानी में घिसकर उसमें मिला के खाली पेट लें | यह वीर्यवर्धक प्रयोग है |
कालभैरवाष्टमी
सोमवार, 07 दिसम्बर 2020 को कालभैरवाष्टमी (कालभैरव जयंती) है। शिवपुराण शतरुद्रासंहिता के अनुसार “भगवान् शिव ने मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को भैरवरूप से अवतार लिया था। इसलिये जो मनुष्य मार्गशीर्ष मासकी कृष्णाष्टमी को काल भैरव के संनिकट उपवास करके रात्रि में जागरण करता हैं, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है | जो मनुष्य अन्यत्र भी भक्तिपूर्वक जागरणसहित इस व्रत का अनुष्ठान करेगा, वह भी महापापों से मुक्त होकर सद्गति को प्राप्त हो जायगा।वामकेश्वर तंत्र की योगिनी हदय दीपिका टीका में अमृतानंद नाथ कहते हैं- 'विश्वस्य भरणाद् रमणाद् वमनात् सृष्टि-स्थिति-संहारकारी परशिवो भैरवः' अर्थात भ- से विश्व का भरण, र- से रमश, व- से वमन अर्थात सृष्टि को उत्पत्ति पालन और संहार करने वाले शिव ही भैरव हैं Iइस दिन उपवास तथा रात्रि जागरण का ही विशेष महत्व है। 'जागरं चोपवासं च कृत्वा कालाष्टमीदिने । प्रयतः पापनिर्मुक्तः शैवो भवति शोभनः॥' के अनुसार उपवास करके रात्रि में जागरण करे तो सब पाप दूर हो जाते हैं और व्रती शैव बन जाता है। भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं और इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि में 12 से 3 बजे का माना जाता है।भैरव का मध्याह्न में जन्म हुआ था, अतः मध्याह्णव्यापिनी अष्टमी ही व्रत/पूजन में लेनी चाहिये ।
भविष्यपुराण, उत्तरपर्व, अध्याय 58 के अनुसार मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष अष्टमी में अनघाष्टमी व्रत का विधान है जिसको करने से त्रिविध पाप (कायिक, वाचिक और मानसिक) नष्ट हो जाते है और अष्टविध ऐश्वर्य (अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, लघिमा, ईशित्व, वशित्व तथा सर्वकामावसायिता) प्राप्त होते हैं।
शिवपुराण में “भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:। मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिता:शिवमायया।।” को शिव का ही पूर्णरूप बताया है। ब्रह्माण्डपुराण के उत्तरभाग में “तयोरेव समुत्पन्नो भैरवः क्रोधसंयुतः” के अनुसार क्रुद्ध शिव से भैरव की उत्पत्ति तथा उसके बाद भैरव द्वारा ब्रह्मा के सिर का छेदन बताया गया है। वामनपुराण में शिव के रक्त से 8 दिशाओं में विभिन्न भैरवों की उत्पत्ति बताई गयी है। जबकि ब्रह्मवैवर्त्तपुराण में कृष्ण के दक्षिण नेत्र से भैरव की उत्पत्ति की बताई गयी है।