मास - चैत्र (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार - फाल्गुन)
पक्ष - कृष्ण
तिथि - दशमी 07 अप्रैल रात्रि 02:09 तक तत्पश्चात एकादशी
नक्षत्र - श्रवण 07 अप्रैल रात्रि 02:35 तक तत्पश्चात धनिष्ठा
योग - सिद्ध शाम 03:30 तक तत्पश्चात साध्य
राहुकाल - शाम 03:48 से शाम 05:21 तक
सूर्योदय - 06:28 सूर्यास्त - 18:53
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
व्रत पर्व विवरण - ब्रह्मलीन भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज का प्राकट्य दिवस
एकादशी व्रत के लाभ
➡ 07 अप्रैल 2021 बुधवार को रात्रि 02:10 से 08 अप्रैल, गुरुवार को रात्रि 02:29 तक (यानी 07 अप्रैल, बुधवार को पूरा दिन) एकादशी है ।
विशेष - 07 अप्रैल, बुधवार को एकादशी का व्रत (उपवास) रखें ।
एकादशी व्रत के पुण्य के समान और कोई पुण्य नहीं है ।
जो पुण्य सूर्यग्रहण में दान से होता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है ।
जो पुण्य गौ-दान सुवर्ण-दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है ।
एकादशी करनेवालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं और अपने परिवारवालों पर प्रसन्नता बरसाते हैं ।इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है ।
धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है ।
कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन रसमय बनता है ।
परमात्मा की प्रसन्नता प्राप्त होती है ।पूर्वकाल में राजा नहुष, अंबरीष, राजा गाधी आदि जिन्होंने भी एकादशी का व्रत किया, उन्हें इस पृथ्वी का समस्त ऐश्वर्य प्राप्त हुआ ।भगवान शिवजी ने नारद से कहा है : एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं, इसमे कोई संदेह नहीं है । एकादशी के दिन किये हुए व्रत, गौ-दान आदि का अनंत गुना पुण्य होता है ।
एकादशी के दिन करने योग्य
एकादशी को दिया जलाके विष्णु सहस्त्र नाम पढ़ें I विष्णु सहस्त्र नाम नहीं हो तो १० माला गुरुमंत्र का जप कर लें l अगर घर में झगडे होते हों, तो झगड़े शांत हों जायें ऐसा संकल्प करके विष्णु सहस्त्र नाम पढ़ें तो घर के झगड़े भी शांत होंगे l
आज चैत्र कृष्ण दशमी तिथि है I
आज दशा माता व्रत एवं पूजन है
👉 भगवान की पूजा पांच प्रकार की होती है - अभिगमन, उपादान, योग, स्वाध्याय और इज्या।
👉 देवस्थान (मंदिर) तथा पात्र आदि की शुद्धि (साफ - सफाई) करना अभिगमन कहलाता है।
👉 उपचारों (पूजा सामग्री) का संग्रह करना उपादान कहलाता है।
👉 आस्था, ध्यान, भावना करना ही योग कहलाता है।
👉 वेदपाठ, भागवत पाठ, गीता, विष्णु सहस्रनाम, कवच, स्तोत्र आदि का पाठ करना स्वाध्याय कहलाता है।
👉 उपचारों से पूजन - हवन आदि करना इज्या है।
👉 तीर्थ, क्षेत्र, देश, काल, धाम में जो रीति प्रचलित हो उसे मानते हुए तदनुसार देव पूजन करना चाहिए।
👉 शास्त्र विधि का उल्लंघन करके स्वेच्छा से जो कुछ किया जाता है, वह सिद्धिदायक नहीं होता है।
👉 अक्षत से विष्णु जी का, दूर्वा से दुर्गा का, तुलसी से गणपति जी का पूजन नहीं करना चाहिए।
👉 विधिवत पूजा करने पर ही अभीष्ट कार्यों की सिद्धि होती है। बिना श्रद्धा - विश्वास के सब निष्फल होता है।