सलमान खान के दुश्मन लॉरेंस के बिश्नोई समाज के 363 लोगों को क्यों कुल्हाड़ी से काट डाला गया...हैरान कर देगी ये कहानी
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18-10-2024 01:02 PM
नई दिल्ली: साल 1730 में सितंबर की शायद 11-12 तारीख। सुबह से ही रेगिस्तानी इलाके जोधपुर के खेजड़ली गांव में एक महिला पेड़ से चिपक गई। उसे भनक लगी कि मारवाड़ के महाराजा अभय सिंह के नए-नए बन रहे फूल महल के लिए लकड़ी की जरूरत है, जिसके लिए गांव के ही खेजड़ी के पेड़ों को काटा जाएगा। राजा के मंत्री गिरधर दास भंडारी अपने लाव-लश्कर लेकर खेजड़ली गांव पहुंच गए। अमृता देवी बिश्नोई नामक की यह बहादुर महिला खेजड़ी के एक पेड़ से चिपक गई। धीरे-धीरे पूरा गांव ही आसपास के खेजड़ी के वृक्षों को बचाने के लिए एकजुट हो गया। बाबा सिद्दीकी की हत्या और सलमान खान को धमकी देने वाले लॉरेंस के बिश्नोई समाज की यह कहानी बेहद वीरता और बहादुरी के मामले में बेमिसाल है। जानते हैं उस बिश्नोई समाज की उस महिला की कहानी, जिसने पेड़ के लिए अपने जान न्यौछावर कर दिए थे।
खेजड़ी के पेड़ों को घेरा बनाकर खड़ी हो गईं अमृता देवी
महाराजा के कारिंदे जब पेड़ काटने गांव पहुंचे तो अमृता देवी और गांव के लोग खेजड़ी के पेड़ों के चारों ओर हाथों से घेरा बना कर खड़े गए। अमृता देवी ने कहा कि खेजड़ी के पेड़ बिश्नोई लोगों के लिए पवित्र हैं। उसमें उनकी जान बसती है। खेजड़ी के पेड़ों को वह तुलसी और पीपल की तरह ही पवित्र मानते थे।
कुल्हाड़ी चलती रही और लाशें बिछती गईं, 363 लोग शहीद
महाराजा के कारिंदों ने जब देखा कि अमृता देवी और बाकी गांववाले पेड़ों से नहीं हट रहे हैं तो उन्होंने कुल्हाड़ियों से ही उन्हें मार डाला। अमृता देवी के आखिरी शब्द थे, कटे हुए पेड़ से ज्यादा सस्ता है कटा हुआ सिर। अमृता देवी की तीन बेटियां भी पेड़ को बचाने के लिए अपनी जान दे दी। पेड़ बचाने के लिए 84 गांवों के लोग जमा हो गए। ये सभी लोग पेड़ों को पकड़ कर खड़े हो गए। राजा के कारिंदों ने बारी-बारी से करीब 363 लोगों को मौत के घाट उतार दिया।
महाराजा ने जारी किया खेजड़ी के पेड़ों को नहीं काटा जाएगा
जब महाराजा के पास इस नरसंहार की खबर पहुंची तो उन्होंने फौरन अपना आदेश वापस लिया और कारिंदों को लौटने को कहा। इसके बाद महाराजा ने लिखित में आदेश जारी किया कि मारवाड़ में कभी खेजड़ी के पेड़ को नहीं काटा जाएगा। इस आदेश का आज तक पालन होता अया है। तब से लेकर आज तक भादवा सुदी दशम को बलिदान दिवस के रूप में खेजड़ली गांव में मेला लगता है।
बिश्नोई समाज के लिए खेजड़ी कितना पवित्र
रेगिस्तान के कल्पवृक्ष खेजड़ी को शमी वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है। यह मूलतः रेगिस्तान में पाया जाने वाला वृक्ष है जो थार के मरुस्थल एवं अन्य स्थानों पर भी पाया जाता है। अंग्रेजी में शमी वृक्ष प्रोसोपिस सिनेरेरिया के नाम से जाना जाता है। रेगिस्तान में भी हरियाली बरकरार रखने में इस पेड़ की अहम भूमिका रही है। इस पेड़ पर लगने वाले फल सांगरी का उपयोग सब्जी बनाने में होता है। इसकी पत्तियों से बकरियों को भोजन मिलता है। इस कारण ग्रामीण क्षेत्र में खेजड़ी इनकम का प्रमुख सोर्स भी माना जाता है।
कौन हैं बिश्नोई, किसे मानते हैं और किसने बनाए 29 नियम
बिश्नोई पश्चिमी थार रेगिस्तान और भारत के उत्तरी राज्यों में पाया जाने वाला एक समुदाय है। इस समुदाय का प्रमुख धार्मिक स्थान मुकाम, बीकानेर है। इस समुदाय के संस्थापक जांभोजी महाराज है। कई मान्यताओं के अनुसार गुरु जांभेश्वर भगवान विष्णु के अवतार माने गए है। इन्हीं से बना'विष्णोई' शब्द बाद में विश्नोई या बिश्नोई हो गया। अधिकांश बिश्नोई जाट व राजपूत जातियों से आते हैं। मुक्तिधाम मुकाम, राजस्थान के बीकानेर जिले के नोखा में बिश्नोई समाज का मुख्य मंदिर है। जांभोजी महाराज के बताए 29 नियमों का पालन करने वाले बिश्नोई हैं, जिसमें ज्यादातर पर्यावरण संरक्षण से संबंधित हैं।
पर्यावरण प्रेमी बिश्नोई समाज पेड़ों और जीवों की रक्षा करने में आगे
बिश्नोई विशुद्ध शाकाहारी होते हैं। वो वन्यजीवों पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला समुदाय हैं। बिश्नोई समुदाय के लोग ज्यादातर किसान खेती पशुपालन करते हैं। बिश्नोई समाज की पर्यावरण संरक्षण और वन एवं वन्य जीव संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका है। इन्होने अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई महासभा की स्थापना की है। वन वन्य जीवों के संरक्षण के लिए बिश्नोई टाईगर फोर्स संस्था बनाईं गई हैं जो दिन-रात वन्यजीवों की शिकार की घटनाओं पर रोकथाम में लगी रहती है।
यूपी, एमपी और हरियाणा तक फैला है बिश्नोई पंथ
गुरु जंभेश्वर के सीधे-सादे संदेशों ने आम लोगों को गहराई से छुआ और बड़ी संख्या में लोग उनके पंथ को अपनाने लगे। खास तौर से पश्चिमी राजस्थान के थार से लगे इलाकों में उनके मंदिर बनने लगे। राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा में भी बिश्नोई समाज के लोग बसे हैं। बिश्नोई समाज के लोगों की सबसे बड़ी पहचान यह बनी कि वो पेड़ों और पशुओं के सबसे बड़े रक्षक हैं और इनके लिए अपनी जान भी दे सकते हैं।
पेड़ों के लिए जान देने की कई कहानियां और भी हैं
एक कहानी वर्ष 1604 में रामसरी गांव में कर्मा और गोरा नाम की दो बिश्नोई महिलाओं की है. उनके बारे में कहा जाता है कि इन दोनों ने खेजड़ी पेड़ों को कटने से बचाने के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था। ऐसी ही एक कहानी वर्ष 1643 के समय की है, जब बुचोजी नाम के एक बिश्नोई ग्रामीण ने होलिका दहन के लिए खेजड़ी पेड़ों को काटे जाने का विरोध करते हुए जान दे दी थी।
रेगिस्तान का कल्पतरु है खेजड़ी वृक्ष, हरियाली का रक्षक
खेजड़ी पेड़ के बारे में माना जाता है कि यह मुश्किल मौसम में भी उपजता है और इसकी वजह से रेगिस्तान में हरियाली के रहने में मदद मिलती है। बिश्नोई गांव खेजड़ी वृक्षों में घिरे होते हैं और इनकी वजह से रेगिस्तान नखलिस्तान बन जाता है। खेजड़ी पर लगने वाले फल को सांगरी कहते हैं जिसकी सब्जी बनाई जाती है। इसकी पत्तियां बकरियां खाती हैं।
काला हिरण को बचाने में भी आगे है बिश्नोई समाज
बिश्नोई गांवों में खेजड़ी के पेड़ों के साथ हिरण भी नजर आते हैं। बिश्नोई समुदाय हिरणों को भी खेजड़ी की ही तरह पवित्र मानता है। बिश्नोई समाज के लोगों में ऐसी मान्यता है कि वो अगले जन्म में हिरण का रूप लेंगे। बिश्नोई समाज में यह भी माना जाता है कि गुरु जंभेश्वर ने अपने अनुयायियों से कहा था कि वह काले हिरण को उन्हीं का स्वरूप मान कर पूजा करें। यही वजह है कि काले हिरण का शिकार करने के मामले में फंसे अभिनेता सलमान खान लॉरेंस बिश्नोई के निशाने पर हैं। दरअसल, 1998 में फिल्म 'हम साथ-साथ हैं' की शूटिंग के दौरान काले हिरण का शिकार करने का मुद्दा सामने आया था। जिसमें सलमान खान, तब्बू सहित और कई नाम सामने आए थे।
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