नई दिल्ली । केरल से लेकर कश्मीर तक जिस भी किसी भी राज्य का नाम लें जब दंगों का जिक्र होता है तो पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का नाम जरूर आता है। हाथरस केस को लेकर दंगा फैलाने की साजिश का खुलासा हुआ है। केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में भी पीएफआई का नाम है। कांग्रेस ने इस मामले पर सवाल उठाया कि सरकार बताए कि कौन सी शक्तियां हैं जो पीएफआई को बचा रहे हैं? प्रतिबंध लगाने से कौन रोक रहा है? सारे मामले को लेकर मथुरा पुलिस ने चार लोगों अतीक, आलम, सिद्दकी, मसूद को गिरफ्तार किया था, जिनका संबंध पीएफआई से बताया गया। जिसे कोर्ट ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया।
एनआईए की एक रिपोर्ट में केरल के कन्नूर में आईएसआईएस के एक कैंप बनाए जाने और 23 लड़कों को हथियार चलाने की ट्रेनिंग देने की भी बात सामने आई थी। एनआईए की उसी रिपोर्ट में केरल की पापुलर फ्रंट आफ इंडिया पर कई गंभीर आरोप लगाए गए थे। एनआईए की जांच में ये खुलासा हुआ था कि पीएफआई के कई सदस्य धर्म परिवर्तन के सिंडिकेट में शामिल हैं और कुछ आतंकी साजिश में भी पकड़े जा चुके हैं। संगठन 2006 में उस वक़्त सुर्ख़ियों में आया था जब दिल्ली के राम लीला मैदान में इनकी तरफ से नेशनल पॉलिटिकल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया था। तब लोगों की एक बड़ी संख्या ने इस कांफ्रेंस में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। संगठन को बैन किये जाने की मांग 2012 में भी हुई थी।
कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी सवाल उठाया कि ने प्रदेश सरकार ने अपना प्रस्ताव तैयार कर केंद्र सरकार को भेजा और बैन लगाने की मांग की है। तो आखिर इतने दिनों में पीएफआई पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जा सका? केंद्र में और उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार है। दोनों जगह पर भाजपा की सरकार होने से कोई अडंगा लगना भी संभव नहीं है। ऐसे में सरकार बताए कि कौन सी शक्तियां हैं अथवा कौन लोग हैं जो पीएफआई को बचा रहे हैं? उस पर प्रतिबंध लगाने से कौन रोक रहा है?
गृह विभाग का कहना है कि किसी संगठन पर बैन लगाने के लिए प्रमाणिक तथ्यों की जरूरत होती है। अब तक जिस तरह की शिकायत मिली है उसकी जांच की जा रही है। जानकारों की माने तो गृह मंत्रालय हड़बड़ी में कोई फैसला लेने के मूड में है। अगर पीएफआई पर बैन लगाने जैसे कोई कदम उठाए जाते हैं तो संगठन उसे कोर्ट में चुनौती दे सकता है। ऐसे में प्रमाणिक तथ्यों की जरूरत होगी।