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म्यांमार में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा रूस, किया युद्धाभ्यास, भारत समेत हिंद महासागर पर कैसा असर

Updated on 14-11-2023 02:43 PM
रंगून: रूस और म्यांमार ने हाल में ही अंडमान सागर में नौसैनिक अभ्यास किया है। यह पहली बार है, जब रूस और म्यांमार ने किसी द्विपक्षीय युद्धाभ्यास में हिस्सा लिया है। इसे रूस और म्यांमार के बीच बढ़ते सैन्य और रणनीतिक संबंधों के तौर पर देखा जा रहा है। पिछले दो-तीन साल से म्यांमार और रूस की नजदीकियां काफी ज्यादा बढ़ी हैं। म्यांमार में रूसी वायु सेना के कई ट्रांसपोर्ट विमान ट्रैक किए गए हैं। पश्चिमी देशों का दावा है कि रूस म्यांमार की सैन्य सरकार को हथियार मुहैया करा रहा है, जिसका इस्तेमाल लोकतंत्र समर्थकों और आम लोगों के खिलाफ किया जा रहा है। हिंद महासागर की भू-राजनीति में इस तरह के नौसैनिक अभ्यास को काफी अहम माना जा रहा है। इसका भारत पर भी प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि हिंद महासागर में भारत सबसे बड़ी नौसैनिक शक्ति है।


म्यांमार और रूस एक ही 'नाव में सवार'

2021 में सैन्य तख्तापलट के बाद से म्यांमार पर पश्चिमी देशों ने कई प्रतिबंध लगा रखे हैं। म्यांमार की सैन्य जुंटा को लोकतंत्र समर्थकों के साथ-साथ जातीय सशस्त्र संगठनों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल, जब यह युद्धाभ्यास चल रहा था, तब म्यंमार में सक्रिय सशस्त्र समूहों ने सैन्य जुंटा के खिलाफ संयुक्त अभियान शुरू किया था। वे इससे रणनीतिक लाभ हासिल करने की उम्मीद कर रहे थे। म्यांमार की तरह रूस पर भी यूक्रेन पर आक्रमण के कारण पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों से दबा हुआ है। पश्चिम ने रूस को अलग-थलग करने और आर्थिक, राजनीतिक और कूटनीतिक लागत थोपने के प्रयास किए हैं। हालांकि, मॉस्को को ग्लोबल साउथ में इच्छुक भागीदार मिल गए हैं और वह एशिया और अफ्रीका के कई देशों के साथ संबंधों का विस्तार करना चाहता है।

म्यांमार के नजदीक कैसे आया रूस


रूस और म्यांमार वर्तमान समय में एक तरह की मुसीबतों का सामना कर रहे हैं। ऐसे में वे साथ मिलकर अपने संबंधों को और गहरा करने की कोशिश कर रहे हैं। रूस, म्यांमार की सैन्य जुंटा के लिए हथियार आपूर्तिकर्ताओं में से एक के रूप में उभरा है। रिपोर्टों के अनुसार, 2021 में सैन्य तख्तापलट के बाद से म्यांमार के साथ रूस का जुड़ाव गहरा हो गया है। जुंटा विपक्ष के खिलाफ अपनी लड़ाई में रूसी ट्रांसपोर्ट विमानों पर निर्भर है। सैन्य जुंटा के लिए, रूसी समर्थन महत्वपूर्ण है। दरअसल, मॉस्को ने संयुक्त राष्ट्र में म्यांमार के लिए कवर प्रदान किया है। दोनों देश आर्थिक सहयोग का विस्तार भी कर रहे हैं क्योंकि दोनों पक्ष कई समझौतों पर हस्ताक्षर करना चाहते हैं। दोनों देशों ने लगभग 30 वर्षों के अंतराल के बाद सीधी उड़ानें फिर से शुरू की हैं। पिछले साल ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम में रूस और म्यांमार ने परमाणु सहयोग पर एक रोडमैप पर भी हस्ताक्षर किए थे।

चीन से निर्भरता घटाना चाहता है म्यांमार


रूस के साथ गहराते संबंधों से म्यांमार को चीन पर अपनी भारी निर्भरता में कमी लाने में मदद की है। 1990 और 2010 के बीच, जब म्यांमार वैश्विक समुदाय से अलग-थलग था और पश्चिम ने मुंह मोड़ लिया था, तब चीन ने उसका दामन थामा और हर तरह की सहायता प्रदान की। चीन म्यांमार के प्रमुख सैन्य, राजनीतिक और आर्थिक साझेदारों में से एक बना हुआ है। बीजिंग ने मलक्का जलडमरूमध्य पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा और ऊर्जा पाइपलाइनों का एक नेटवर्क बनाने की मांग की है।

रूस के साथ दोस्ती से म्यांमार को क्या फायदा

म्यांमार के लिए, अपने बाहरी साझेदारों में विविधता लाना अनिवार्य है। रूस के साथ जुड़ने से तीन प्रमुख लाभ होते हैं: पहला, यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है और इसके पास वीटो शक्ति है। दूसरा, रूस उन्नत रक्षा उद्योगों का एक प्रमुख स्रोत है और उनमें से कुछ हथियार प्रणालियों को म्यांमार को निर्यात करने का इच्छुक है। और अंत में, रूस भारत और चीन का करीबी रणनीतिक साझेदार है, ये दो देश हैं जो म्यांमार के मामलों में काफी रुचि रखते हैं। रूस के साथ जुड़ने से दिल्ली और बीजिंग में खतरे की घंटी नहीं बजेगी।

रूस भी मौके का उठाना चाहता है पूरा फायदा


रूस के लिए, म्यांमार दक्षिण पूर्व एशिया और व्यापक पूर्वी हिंद महासागर के साथ जुड़ने के लिए एक आदर्श भागीदार है। म्यांमार दक्षिण एशिया को दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ता है। म्यांमार में रणनीतिक उपस्थिति से रूस को पूर्वी हिंद महासागर में अपना प्रभाव दिखाने में मदद मिलेगी। रूस पहले से ही पश्चिमी हिंद महासागर (डब्ल्यूआईओ) में कई देशों के साथ जुड़ा हुआ है और उसने पोर्ट सूडान में एक नौसैनिक अड्डा स्थापित करने की भी मांग की है। रूसी नौसेना पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में चीन, ईरान और दक्षिण अफ्रीका की नौसेनाओं के साथ नियमित रूप से अभ्यास करती है। हालांकि, पूर्वी हिंद महासागर में रूस की ऐसी मौजूदगी नहीं है। म्यांमार इस क्षेत्र में रूस के प्रवेश द्वार के रूप में उभर सकता है। म्यांमार के साथ नवीनतम नौसैनिक अभ्यास इस क्षेत्र में संभावित रूप से बढ़ती रूसी उपस्थिति की दिशा में पहला कदम है।

रूस की मौजूदगी से क्षेत्रीय खिलाड़ी चौकन्नें

यह देखना बाकी है कि क्षेत्रीय खिलाड़ी जैसे कि भारत, चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश रूसी गतिविधियों पर कैसे प्रतिक्रिया देंगे। ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया रूस और म्यांमार के बीच बढ़ते संबंधों को कैसे देखते हैं? क्या वे इस क्षेत्र में बढ़ती रूसी नौसैनिक उपस्थिति से सहज होंगे? क्या रूस की बढ़ती उपस्थिति हिंद महासागर में चीन-रूस की आक्रामकता को बढ़ावा देगी? अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देश रूसी कदमों को किस प्रकार देखते हैं? जैसे-जैसे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का भू-राजनीतिक महत्व बढ़ता जा रहा है, रूस दक्षिण पूर्व एशिया सहित इस क्षेत्र में अपनी रणनीतिक उपस्थिति बढ़ाना चाहता है। इस संदर्भ में, म्यांमार शायद एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में रूस के लिए सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक भागीदारों में से एक के रूप में उभर सकता है।


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