जैसे ही तबादले की सुगबुगाहट शुरु हुई अफसरों ने जमावट शुरू कर दी। एसीपी और निरीक्षकों ने अपने-अपने स्तर पर दौड़भाग की और करीबी जिलों को चुन लिया। पुलिस मुख्यालय ने विधानसभा चुनाव के पूर्व उन अफसरों का ब्योरा मांगा जो वर्षों से एक ही स्थान पर जमे हुए थे। जद में शहर के कई एसीपी और 26 टीआइ आ गए। मुख्यालय ने उनसे यह भी पूछा कि वह तीन जिलों का जिक्र करें जहां पदस्थ होना चाहते हैं। ज्यादातर निरीक्षकों ने धार और देवास का चुनाव किया। सूची बनाने वाले अफसर उस वक्त चौंक गए जब कई निरीक्षकों ने ईओडब्ल्यू जैसी विंग में जाने की इच्छा जताई। बताते हैं ईओडब्ल्यू तबादला मांगने वालों ने अफसरों की हरी झंडी मिलने के बाद ही उल्लेख किया था। आर्थिक अपराध की जांच करने वाली इस विंग को लूपलाइन माना जाता है, लेकिन फिर भी अफसर इसमें ही रुचि ले रहे हैं।
लाइन अटैच मतलब घर के न घाट के
बंटवारे के बाद से ग्रामीण पुलिस बड़े अभाव में है। बैठने की व्यवस्था तो जैसे-तैसे कर ली लेकिन साधन-संसाधनों की पूर्ति नहीं हुई। सबसे बड़ी समस्या उन निरीक्षकों की है जिन्हें किन्हीं कारणों से लाइन अचैट करना पड़ा। पुलिस लाइन न होने के कारण न घर के रहते हैं न घाट के। नगरीय सीमा से अलग होने के बाद तय हुआ था कि किशनगंज के समीप नई पुलिस लाइन बनाई जाएगी। जमीन झमेले में पड़ने के कारण पुराने तहसील कार्यालय (महू) में ही लाइन का कार्य हो रहा है। प्रधान आरक्षक रोजनामचा लेकर बैठा रहता है। यहां न बैठने की व्यवस्था है न साधन-संसाधन। ऐसे में लाइन अटैच होने वाले टीआइ बीमारी के बहाने छुट्टी लेकर चले जाते हैं। सबसे बड़ी दिक्कत तो आरआइ की है। उनके पास न एमटीओ शाखा है न काम करने की गुंजाइश।
आयुक्त की पहल से पुलिसवालों के स्वजन खुश
आयुक्त मकरंद देऊस्कर की सख्ती से पुलिसवाले भले ही परेशान हों, स्वजन उनकी पहल से खुश हैं। आयुक्त ने हाल ही में पुलिस लाइन में परेड के साथ-साथ स्वास्थ्य परीक्षण का प्रबंध करवाया है। पुलिसकर्मियों को डांट फटकार पड़ती है वो भी स्वास्थ्य में लापरवाही करने पर। उनके स्वजन को बुला कर बताया भी जाता है कि इनका खयाल रखें। नवाचार की शुरुआत उस समय हुई जब पुलिसवालों का स्वास्थ्य परीक्षण करवाया गया। रिपोर्ट में पता चला कि ज्यादातर पुलिसकर्मी बीमार हैं। कुछेक को शुगर, बीपी है और कुछेक तो हाई कोलेस्ट्रोल से पीड़ित हैं। इसके बाद आरआइ दीपक पाटिल को बताया गया कि परेड में बटन-वर्दी के साथ-साथ मेडिकल स्थिति भी जांची जाएगी। जिसकी रिपोर्ट खराब होगी उसे ध्यान-योग और वर्जिश करने की सलाह दी जाएगी। उनके स्वजन को भी बताया जाएगा कि वह खुद योग करने पर ध्यान दें।
डीसीपी की सुनवाई : जनता खुश, अमला परेशान
जोन-1 के डीसीपी आदित्य मिश्र की सुनवाई से जनता खुश है। न थानों के चक्कर लगाने पड़ते न पुलिसवालों से बुरा भला सुनने को मिलता है। बस मातहत थोड़े दुखी हैं। साहब गलती पकड़ते ही थाने से छुट्टी जो कर देते हैं। डीसीपी आनलाइन सुनवाई कर रहे हैं। सर्किल के सभी थानों में वेब कैमरा, माइक्रो फोन और लैपटाप लगवा कर वीसी रूम बनवाया है। आवेदक के साथ-साथ जांच अधिकारी, टीआइ, एसीपी और एडीसीपी को भी कनेक्ट कर लेते हैं। जैसे ही आवेदक स्क्रीन पर आता है जांच अधिकारी की धड़कन बढ़ने लगती है। सुनवाई होने तक यह भय सताता है कि उसकी शिकायत न कर दें। डीसीपी 160 से ज्यादा शिकायतों का निराकरण कर चुके हैं। अब तो आलम यह कि आवेदन ज्यादा दिनों तक लंबित होने पर पुलिसकर्मियों को घर ही भेज देते हैं। जो भी हो, लेकिन जनता तो नवाचार से खुश है।
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