हमास के पॉलिटिकल चीफ इस्माइल हानियेह की मंगलवार रात इजराइली हमले में मौत हो गई। वह हमास का सबसे बड़ा चेहरा था। अब उसकी जगह लेने वाले शख्स की चर्चा शुरू हो गई है।
आमतौर पर किसी चीफ के मरने के बाद उनकी जगह डिप्टी चीफ लेता है, लेकिन हमास के डिप्टी चीफ रहे सालेह अल-अरूरी की हत्या इसी साल जनवरी में हो गई थी। इजराइली सेना ने एक ड्रोन हमले में हमास के नंबर-2 नेता को मार दिया था। अब हमास के पॉलिटिकल विंग में नंबर-1 और नंबर-2 दोनों की कुर्सी खाली है।
हानियेह की मौत के बाद कुछ ऐसे लोग हैं जिनके बारे में कहा जा रहा है कि वे हानियेह की जगह ले सकते हैं। शूरा परिषद, हमास को सलाह देने वाली संस्था है। रिपोर्ट्स के मुताबिक इसकी बैठक जल्द होने की उम्मीद है। इसमें ही हमास के नए उत्तराधिकारी के नाम का खुलासा किया जाएगा।
हमास में हानियेह की जगह लेने वालों में 4 नामों की काफी चर्चा हो रही है।
1. याह्या सिनवार- हमास का सबसे खूंखार शख्स
हानियेह के बाद सिनवार को हमास का दूसरा सबसे बड़ा पॉलिटिकल लीडर माना जाता है। 62 साल के याह्या सिनवार को लोग अबु इब्राहिम के नाम से भी जानते हैं। उसका जन्म गाजा पट्टी के दक्षिणी इलाके में स्थित खान यूनिस के शरणार्थी कैंप में हुआ था।
याह्या के मां-बाप अश्केलॉन के थे। 1948 में इजराइल की स्थापना हुई और हजारों फिलिस्तीनियों को उनके पुश्तैनी घरों से निकाला गया, तो याह्या के माता-पिता भी शरणार्थी बन गए थे। फिलिस्तीनी उसे 'अल-नकबा' यानी तबाही का दिन कहते हैं।
BBC के मुताबिक याह्या सिनवार को पहली बार इजराइल ने 1982 में गिरफ्तार किया था। उस समय उसकी उम्र 19 साल थी। याह्या पर 'इस्लामी गतिविधियों' में शामिल होने का इल्जाम था। 1985 में उसे दोबारा गिरफ्तार किया गया। लगभग इसी दौरान, याह्या ने हमास के संस्थापक शेख अहमद यासीन का भरोसा जीत लिया।
सिनवार 1985 में हमास के संस्थापक शेख अहमत यासीन के करीब आया। वह हमास के फाउंडिंग मेंबर में से है। सिनवार गाजा पट्टी में हमास चीफ के पद पर है। हानियेह और दाइफ की तरह सिनवार को भी इजराइल पर हमले का मास्टरमाइंड माना जाता है।
सिनवार को दो इजराइली सैनिकों की हत्या का दोषी पाया गया था जिसके बाद उसे 22 साल तक इजराइल की जेल में रहना पड़ा। साल 2011 में इजराइली सैनिक गिलाद शालित के बदले 1027 फिलिस्तीनी कैदियों को छोड़ गया था। इसमें सिनवार भी शामिल था। अब इजराइल इसे सबसे बड़ी गलती मानता है।
खान यूनिस का कसाई
सिनवार को निर्मम हत्याएं करने के लिए जाना जाता है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक सिनवार ने इजराइल के लिए जासूसी करने के शक में एक शख्स को उसके भाई के हाथों ही जिंदा दफन करवा दिया था।
हैरानी की बात ये है कि दफन करने का काम किसी फावड़े से नहीं बल्कि चम्मच से किया गया था। ऐसी क्रूरता की वजह से ही सिनवार को खान यूनिस का कसाई भी कहा जाता है। सिनवार के करीबी भी उससे खौफ खाते हैं। कहा जाता है कि अगर आप सिनवार की बात को टाल रहे हैं तो अपनी जिंदगी को दांव पर लगा रहे हैं।
सिनवार ने 2015 में हमास कमांडर महमूद इश्तिवी को टॉर्चर कर जान ले ली थी। इश्तिवी पर समलैंगिकता और पैसों की हेरा-फेरी का आरोप था। सिनवार लोगों को कंट्रोल करने में माहिर है। हालांकि उसे बहुत अच्छा वक्ता नहीं माना जाता है।
2014 में उसे ‘मृत’ घोषित कर दिया था, कुछ समय बाद यह एक अफवाह साबित हुई। साल 2015 में याह्या को अमेरिका ने आतंकी घोषित किया था। सिनवार को ईरान का करीबी माना जाता है। हानियेह की जगह लेने के लिए सिनवार का दावा भी बहुत मजबूत है।
2. खालिद मेशाल- हानियेह से पहले 21 सालों तक हमास चीफ रहा
हानियेह की मौत के बाद उसकी जगह लेने वाले में सिनवार की तरह ही खालिद मेशाल का दावा बेहद मजबूत माना जा रहा है। मेशाल का जन्म 28 मई 1956 को वेस्ट बैंक में रामल्लाह के करीब सिलवाड में हुआ था। वह 15 साल की उम्र में ही मिस्र के सुन्नी संगठन 'मुस्लिम ब्रदरहुड' में शामिल हो गया था।
साल 1987 में जब हमास का गठन हुआ तो उसमें मेशाल भी शामिल था। वह 1996 में हमास का पॉलिटिकल चीफ बना और 2017 तक इस पद पर रहा। इसके बाद हानियेह ने उसकी जगह ली।मेशाल भी हानियेह की तरह दोहा में रहता है। 2004 से 2012 के बीच वह सीरिया में रहकर काम करता था। लेकिन इसी दौरान सीरिया में गृहयुद्ध शुरू हो गया।
सीरिया में सुन्नी आबादी ज्यादा है, जबकि वहां के शासक बशर अल-असद शिया हैं। हमास एक सुन्नी संगठन है। ऐसे में मेशाल ने सीरिया में सुन्नी गुट का समर्थन किया। इससे राष्ट्रपति बशर अल-असद नाराज हो गए। मेशाल को सीरिया छोड़ना पड़ा। इसके बाद से ही मेशाल के सीरिया और ईरान के साथ बुरे संबंध चल रहे हैं।
इजराइल ने जहर दिया फिर खुद ही बचाया, नाम पड़ा- जिंदा शहीद
दुनिया को पहली बार 1997 में मेशाल की ताकत का अंदाजा हुआ। दरअसल मेशाल जॉर्डन में ठहरा हुआ था। इस दौरान उसे जहर दे दिया गया। जहर देने वाले मोसाद के एजेंट थे। भागते वक्त उन्हें पकड़ लिया गया था तभी पता चला इस घटना में इजराइल का हाथ है।
उधर मेशाल को अस्पताल ले जाया गया। उसकी सांसे धीमी हो रही थीं। डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए। उन्होंने कहा कि जल्द से जल्द जहर का एंटीडोट नहीं मिला तो मेशाल की जान नहीं बच पाएगी।
इसके बाद जॉर्डन किंग हुसैन ने इजराइल को धमकी दी कि अगर आधी रात से पहले उस जहर का एंटीडोट नहीं भेजा गया तो वह इजराइल के साथ हुआ शांति समझौता तोड़ देंगे। इतना ही नहीं, जहर देने वाले मोसाद के एजेंट्स को फांसी पर लटका देंगे।
पहले तो इजराइल ने इस मामले में अपना हाथ होने से ही इनकार कर दिया लेकिन जब अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने खुद नेतन्याहू को समझाया तो उन्हें मजबूर होकर एंटिडोट भिजवाना पड़ा।मेशाल जिंदा बच गया।
बाद में नेतन्याहू जॉर्डन भी गए और वहां पर किंग से माफी भी मांगी। ये पहली बार हुआ था कि इजराइल ने अपने किसी दुश्मन को मरने से बचाया। तब से उसका नाम ‘जिंदा शहीद’ पड़ गया।
विदेश नीति का बड़ा चेहरा है मेशाल
मेशाल, हमास की विदेश नीति का बड़ा चेहरा है। उसे करिश्माई शख्सियत का बताया जाता है। वह डिप्लोमेसी में माहिर है। हमास के कई बड़े नेताओं पर यात्रा से जुड़े प्रतिबंध लगे हुए हैं मगर मेशाल इससे अछूता है।
खालिद मशाल को लेकर भारत में भी विवाद हो चुका है। उसने पिछले साल अक्तूबर में फिलिस्तीनियों के समर्थन में आयोजित ऑनलाइन रैली को संबोधित किया था। ऑनलाइन रैली में हमास के एक बड़े नेता के शामिल होने से केरल बीजेपी चीफ के सुरेंद्रन नाराज हो गए थे। उन्होंने आयोजकों पर कानूनी एक्शन लेने की मांग की थी।
मेशाल को याह्या सिनवार के ठीक उलट शख्सियत का माना जाता है। यही वजह है कि उसकी सिनवार से नहीं बनती। ईरान का भी मेशाल को समर्थन नहीं है बावजूद वह हमास का चीफ बनने के के लिए सबसे काबिल माना जा रहा है।
3. जेहर जबरीन- फंडिग का जुगाड़ करता है, नाम पड़ा हमास CEO
जबरीन हानियेह के डिप्टी के तौर पर काम कर रहा था। उसका जन्म 1968 में वेस्ट बैंक में हुआ था। वह 1987 में हमास से जुड़ा। जबरीन फिलिस्तीन और इजराइल के बीच कैदियों की अदला-बदली में बड़ी भूमिका निभाता आया है।
वह हमास की फंडिंग का काम भी देखता है इसलिए उसे अक्सर हमास का CEO भी बुलाया जाता है। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक इजराइल सहित पश्चिमी देशों ने हमास पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं।
इसके बावजूद वह हर साल हर साल करोड़ों डॉलर्स की फंडिंग जुटा लेता है। ये मामूली बात नहीं है।
सिनवार की तरह इजराइली कब्जे से रिहा हुआ
द डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक हमास के पास 500 मिलियन डॉलर्स से अधिक रकम है। इस पैसे का क्या और कैसे इस्तेमाल होना है ये जबरीन ही तय करता है। हमास में आर्थिक विभाग का सर्वेसर्वा होने की वजह से उसे बेहद खास रुतबा हासिल है। यही वजह है कि अमेरिका ने 2019 में उस पर प्रतिबंध लगा दिया था।
जबरीन का तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन से भी अच्छा रिश्ता है। इसके अलावा हिजबुल्लाह और ईरान से भी उसका अच्छा संबंध है। जबरीन को 1996 में एक इजराइली सैनिक की हत्या के बाद गिरफ्तार किया गया था। 15 साल तक वह जेल में रहा।
साल 2011 में इजराइली सैनिक के बदले हुई कैदियों की अदला-बदली में वह भी सिनवार के साथ रिहा हुआ था। एक इंटरव्यू में जबरीन ने कहा था कि वह हमास के पॉलिटिकल विंग से जुड़ा है। अल कासिम से उसका कोई संबंध नहीं है।
उसने आगे कहा कि इजराइल सेब और संतरे को मिलाने की कोशिश करता है लेकिन दोनों अलग हैं, एक नहीं हो सकते। अल कासिम और हमास दोनों का कोई रिश्ता नहीं है। रिपोर्ट्स के मुताबिक सिनवार और मेशाल बड़े दावेदार हैं मगर उनके संबंध अच्छे नहीं हैं। दोनों एक दूसरे के नाम पर समर्थन देंगे इसकी कम ही उम्मीद है। जबरीन को इसका फायदा मिल सकता है।
खलील अल-हय्या- इजराइल से जंग के अलावा कुछ और नहीं चाहता
खलील अल-हय्या भी जबरीन की तरह हानियेह के डिप्टी के तौर पद पर काम कर रहा था। अल-हय्या इजराइल से बातचीत का पक्ष में नहीं है। उसका मानना है कि इजराइल को हराकर ही फिलिस्तीन की समस्या का समाधान निकल सकता है।
सीरिया में 2011 में जब गृहयुद्ध छिड़ा था तब अल-हय्या ने भी बशर असद के खिलाफ दूसरे गुट का समर्थन किया था, लेकिन अब उसने सीरियाई शासक के साथ दोस्ती कायम कर ली है। अल-हय्या को हानियेह की तरह ही कड़े और संतुलित कदम उठाने के लिए जाना जाता है। उसकी लीडरशिप की तारीफ होती है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक हमास को इस बुरे वक्त में बाहरी दुनिया का साथ चाहिए होगा। ऐसे में अल-हय्या की भूमिक बड़ी हो जाती है क्योंकि उसके ईरान, तुर्की, सीरिया, कतर और मिस्र के साथ अच्छे संबंध हैं।