नक्सल प्रभावित इलाकों के आदिवासी युवाओं ने भोपाल में सीखा हुनर, मिला रोजगार
Updated on
11-06-2023 12:50 AM
भोपाल। हमारा परिवार छत्तीसगढ़ में जंगल-जंगल घूमकर लकड़ियां काटने के साथ-साथ बकरियां चराते हैं। हम कुछ अलग करना चाहते थे इसलिए इलेक्ट्रिशियन का कोर्स करने भोपाल आ गए। यह कहना है छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों से आए युवाओं का। उन्होंने भोपाल आकर इलेक्ट्रिशियन से जुड़ी तकनीकी जानकारी हासिल करते हुए प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसमें कई युवाओं ने बताया कि हम जिस क्षेत्र से आते हैं, वो नक्सल प्रभावित है। हमारे जैसे कई युवा भी नक्सली बनना चाहते थे लेकिन आज वो भी हमसे प्ररेणा हासिल कर जीवन में कुछ अलग करने निकल पड़े हैं। जिससे समाज में उनकी पहचान बने और रोजगार भी प्राप्त हो सके।
तीन महीने चला प्रशिक्षण
क्रिस्प की पहल पर इन ग्रामीण युवाओं को सहायक इलेक्ट्रीशियन का कोर्स कराया गया। तीन महीने के आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर, कोरबा और जांजगीर, चांपा व अन्य जिलों के ग्रामीण युवाओं को उनकी दक्षता के आधार पर चुना गया। इनका एनटीपीसी द्वारा उनका सत्यापन भी किया गया।
प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों को बिजली के औजारों और बिजली के उपकरणों के चयन और उनके सही उपयोग, प्रकाश की स्थापना और कम वोल्टेज बिजली के तारों, कम वोल्टेज बिजली के पैनलों की स्थापना और रख-रखाव पर तकनीकी जानकारी प्रदान की गई। तकनीकी जानकारी के अलावा प्रशिक्षुओं ने कार्यस्थल पर बेहतर प्रदर्शन करने और टीम में प्रभावी ढंग से काम की कला भी सीखी।
अहमदाबाद की कंपनी में मिला रोजगार
सहायक इलेक्ट्रीशियन की नौकरी में पड़ने वाली जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इस कार्यशाला और प्रशिक्षण का आयोजन किया गया था। प्रतिभागियों का मूल्यांकन, कौशल परिषद की ओर से तय मूल्यांकन एजेंसी द्वारा किया गया। सभी प्रशिक्षुओं ने सफलतापूर्वक मूल्यांकन पूर्ण किया और उन्हें एनएसडीसी ने उनका सर्टिफिकेशन किया। प्लेसमेंट सेल ने प्रशिक्षुओं के लिए कैंपस इंटरव्यू कराया। जहां परिणामस्वरूप सभी प्रशिक्षुओं को अहमदाबाद स्थित एक उद्योग से प्लेसमेंट आफर भी मिला। इस मौके पर एमडी डा. श्रीकांत पाटिल मौजूद रहे।
मैं कोरबा से आया हूं। वहां कई युवा नक्सलियों की चंगुल में हैं। परिवार के लिए कुछ करने की चाह लिए भोपाल आया हूं। यहां आने से पहले एक मामूली इलेक्ट्रिक की दुकान पर काम करता था लेकिन कार्यशाला को करने के बाद न सिर्फ मुझे नौकरी मिली बल्कि मेरी सैलरी 18 हजार रुपए हो गई है, इससे में अपने परिवार का जीवनयापन अच्छे से कर पाऊंगा।
मैं बिलासपुर के छोटे-से गांव से आय हूं। जहां पूरा परिवार जंगल में लकड़ियां काटकर बाजार में बेचता है। यह प्रशिक्षण मेरे लिए बहुत उपयोगी साबित हुआ है। इस प्रशिक्षण के बाद मुझे अहमदाबाद की एक कंपनी में नौकरी भी मिल गई है।
- यग्नेश्वर साहू, प्रशिक्षु
परिवार ने पढ़ाया, काबिल बनाया मैं परिवार के लिए कुछ अलग करना चाहता था। जैसे-तैसे उन्होंने मुझे पढ़ाया और इस काबिल बनाया है कि मैंने इलेक्ट्रिशियन का कोर्स पूरा किया। इस प्रशिक्षण में आने से पहले मुझे अर्थिंग और फेज में अंतर भी नहीं पता था, लेकिन अब मुझे सरे बेसिक्स पता हैं और ट्रेनिंग के बाद मैंने अपना मूल्यांकन पूर कर प्लेसमेंट भी हासिल कर लिया है अब में बतौर सहायक इलेक्ट्रीशियन काम करूंगा।
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