तब शिवसेना और अब NCP विधायकों की अयोग्यता पर छिड़ी जंग, जानिए स्पीकर का रोल क्यों है अहम
Updated on
04-07-2023 07:04 PM
मुंबई: महाराष्ट्र की राजनीति में महाविकास अघाड़ी के टूटने बाद कमोवेश वही सीन फिर से सामने आ गया है, जब तत्कालीन उद्धव सरकार में मंत्री शिंदे ने विधायकों को तोड़कर शिवसेना में बगावत कर दी थी। हालांकि इस बार का खेल राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार के साथ हुआ है, जिनके भतीजे और उत्तराधिकारी कहे जाने वाले अजित पवार एनसीपी में बगावत के बाद शिंदे-बीजेपी सरकार में डेप्युटी सीएम बन गए हैं। शरद पवार ने अजित और बाकी विधायकों के खिलाफ कड़ा एक्शन लेते हुए प्रफुल्ल पटेल और सुनील तटकरे को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है, जिसके बाद उसी अंदाज में एनसीपी के अजित गुट ने भी जयंत पाटिल की जगह तटकरे को नियुक्त किया है। इन सबके बीच दोनों की गुटों की ओर से अयोग्यता का खेल शुरू हो गया है, जिसमें स्पीकर राहुल नार्वेकर का रोल एक बार फिर से अहम हो चला है।
जारी है वार-पलटवार
सुनील तटकरे की बेटी अदिति का नाम भी उन बाकी 8 मंत्रियों की लिस्ट में शामिल है, जिन्होंने रविवार को अजित पवार के साथ शपथ ली। शरद पवार समूह ने विधानसभा स्पीकर को दो याचिकाएं भेजी हैं। इसमें अजित और उनके साथ शपथ लेने वाले बाकी एनसीपी विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग की गई है। वहीं अजित पवार गुट ने भी पार्टी अध्यक्ष से पद से जयंत पाटिल और विधानसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर नियुक्त किए गए जितेंद्र अव्हाद को अयोग्य घोषित करने की मांग की है।
स्पीकर पर अटका दारोमदार
दोनों गुटों की ओर से अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने में स्पीकर को कितना समय लग सकता है? यह देखने वाली बात होगी। राजनीतिक मनमुटाव और इस तरह के मुद्दों को लेकर जो दलबदल कानून बनाया गया है, उसके तहत इसमें दखल या फैसले का हक सिर्फ स्पीकर को है। हालांकि सबसे अहम बात यह कि इसको लेकर कोई समय सीमा तय न होना एक बड़ी रुकावट के तौर पर देखा जाता है। अदालत इसको लेकर पहले भी साफ कह चुकी है कि कानून बनाना संसद का काम है, क्योंकि स्पीकर से पहले कोर्ट इस मामले में सीधे तौर पर दखल नहीं कर सकती है। बीते समय में मणिपुर से लेकर महाराष्ट्र तक में ऐसा देखा जा चुका है।
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