तालिबान ने 14 देशों में मौजूद अफगानिस्तान के दूतावासों को अमान्य घोषित कर दिया है। इनमें ब्रिटेन, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, इटली और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश शामिल हैं। दरअसल, इन दूतावासों को अफगानिस्तान की पिछली सरकार के कार्यकाल में खोला गया था।
तालिबान के विदेश मंत्रालय ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के जरिए बताया कि इन दूतावासों की तरफ से जारी किया गया कोई भी पासपोर्ट, वीजा या डिप्लोमैटिक दस्तावेज मान्य नहीं होगा। अफगानिस्तान का तालिबान शासन इनके लिए जिम्मेदार नहीं होगा।
मंत्रालय ने कहा कि नए पासपोर्ट हासिल करने के लिए लोगों को तालिबान की इस्लामिक एमिरेट ऑफ अफगानिस्तान सरकार के नेतृत्व वाले दूतावासों से संपर्क करना होगा। विदेश में रह रहे सभी अफगानी नागरिकों को अमान्य घोषित किए गए 14 देशों के दूतावास के अलावा दूसरे डिप्लोमैटिक मिशन्स में जाकर अपने दस्तावेज रीन्यू करवाने होंगे।
पाक-चीन में तालिबान के नेतृत्व वाले दूतावास
मार्च 2023 में तालिबान शासन ने कहा था कि वे ज्यादा से ज्यादा अफगान दूतावासों को अपने कंट्रोल में लेने की कोशिश कर रहा है। इसके बाद तालिबान ने लंदन और वियना में मौजूद अफगान वाणिज्य दूतावासों पर सेवाएं रोक दी गई थीं।
तालिबान के इस आदेश के बाद पिछले साल अक्टूबर में स्पेन और नीदरलैंड में अफगान ऐम्बेसी ने कहा था कि वे तालिबान के साथ मिलकर काम करने की कोशिश कर रहे हैं। फिलहाल पाकिस्तान, चीन और रूस जैसे देशों में तालिबान के नेतृत्व वाले दूतावास मौजूद हैं।
भारत में भी बंद हो चुका अफगानी दूतावास
इससे पहले पिछले साल अक्टूबर में तालिबान ने भारत में मौजूद अपनी एम्बेसी को बंद कर दिया था। एम्बेसी ने कहा था कि भारत सरकार से समर्थन और संसाधनों की कमी के चलते हमें यह करना पड़ा है। हमें काबुल से पॉलिटिकल सपोर्ट नहीं मिल रहा था।
दरअसल, भारत में मौजूद इस दूतावास को फरीद मामुंदजई हेड करते थे, जिन्हें अफगानिस्तान की पिछली सरकार ने नियुक्त किया था। तब अफगानिस्तान में राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार थी, जिसे पश्चिमी देशों से समर्थन हासिल था। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से भारतीय दूतावास में स्टाफ की भी कमी हो गई थी।
मान्यता की मांग कर रहा तालिबान
अफगानिस्तान का तालिबान शासन अब तक अलग-अलग देशों में मौजूद करीब 14 मिशन्स को अपने कब्जे में ले चुका है। इन सब जगहों पर उन्होंने अपने राजदूत को चुनकर भेज दिया है। तालिबान ने 15 अगस्त 2021 को काबुल के साथ ही पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था।
इसके बाद से वो लगातार दुनिया से उसे मान्यता देने की मांग करता रहा है। तालिबान का आरोप है कि उन्होंने मान्यता हासिल करने के लिए सभी जरूरतों को पूरा कर लिया है। इसके बावजूद अमेरिका के दबाव में आकर दूसरे देश हमें मान्यता नहीं दे रहे हैं।