श्रीलंका के मंत्री ने कहा है कि भारत ने अब तक कच्चाथीवू द्वीप को लेकर उनकी सरकार से कोई बात नहीं की है। द इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में श्रीलंका के मंत्री जीवन थोंडामन ने कहा कि भारत ने कच्चाथीवू पर अधिकार लौटाने को लेकर उनसे कोई मांग नहीं की है। अगर भारत की तरफ से ऐसी कोई रिक्वेस्ट आई तो हम जरूर जवाब देंगे।
दरअसल, तमिलनाडु के BJP अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने कहा था कि केंद्र सरकार कच्चाथीवू को वापस हासिल करने के लिए जरूरी कदम उठा रही है। वहीं, न्यूज एजेंसी ANI के मुताबिक श्रीलंका की कैबिनेट में कच्चाथीवू को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई है।
श्रीलंका के मंत्री का ये बयान उस वक्त आया है, जब सोमवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत-श्रीलंका के बीच स्थित कच्चाथीवू द्वीप पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि इंदिरा सरकार ने 1974 में भारत का ये द्वीप श्रीलंका को दे दिया था।
कच्चाथीवू पर जयशंकर के अहम दावे...
1. 1974 के समझौते की तीन कंडीशन थीं
जयशंकर ने कहा था कि 1974 में इंडिया और श्रीलंका ने एक समझौता किया, जिसके जरिए दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा का निर्धारण हुआ। इस सीमा को तय करते वक्त कच्चाथीवू को श्रीलंका को दे दिया गया। इस समझौते की 3 और कंडीशन थीं।
पहली- दोनों देशों का अपनी जल सीमा पर पूरा अधिकार और संप्रभुता होगी। दूसरी- कच्चाथीवू का इस्तेमाल भारतीय मछुआरे भी कर सकेंगे और इसके लिए किसी ट्रैवल डॉक्यूमेंट की आवश्यकता नहीं होगी। तीसरी- भारत और श्रीलंका की नौकाएं एक-दूसरे की सीमा में यात्राएं कर सकेंगी जैसा वह परंपरागत रूप से करती आ रही हैं।
यह समझौता संसद में रखा गया। तब के विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह ने 23 जुलाई 1974 को संसद को भरोसा दिलाया था। मैं उन्हीं का स्टेटमेंट पढ़ रहा हूं, जो कहता है- 'मुझे विश्वास है कि दोनों देशों के बीच सीमाओं का निर्धारण बराबरी से हुआ है, ये न्यायसंगत है और सही है।'
स्वर्ण सिंह ने आगे कहा था, 'मैं सभी सदस्यों को याद दिलाना चाहता हूं कि इस समझौते को करते वक्त दोनों देशों को भविष्य में मछली पकड़ने, धार्मिक कार्य करने और नौकाएं चलाने का अधिकार रहेगा। 2 साल के भीतर ही इंडिया और श्रीलंका के बीच एक और समझौता हुआ था।'
2. कांग्रेस और DMK कच्चाथीवू पर अपनी जिम्मेदारी को नकार रहीं
एस जयशंकर ने कहा था, कच्चाथीवू और मछुआरों के मसले पर अब कांग्रेस और DMK इस तरह का व्यवहार कर रही हैं कि उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है और आज की केंद्र सरकार इस मसले को हल करे। जैसे इसका कोई इतिहास नहीं है, जैसे ये अभी हुआ है। कांग्रेस-DMK वे लोग हैं, जो इस मसले को उठा रहे हैं।
पिछले 20 साल में 6184 भारतीय मछुआरों को श्रीलंका ने पकड़ा। भारत की मछली पकड़ने वाली 1175 नावें सीज की गईं। जब भी कोई गिरफ्तारी होती है, जो ये लोग मुद्दा उठाते हैं। चेन्नई में बैठकर बयान देना आसान है, लेकिन उन मछुआरों को कैसे छुड़ाया जाता है, ये हम जानते हैं।
3. हम नहीं जानते इसे जनता से किसने छिपाया
विदेश मंत्री ने कहा था, हम आज 2 एग्रीमेंट की बात कर रहे हैं। हमने 2 दस्तावेज देखे। RTI के जरिए ये दस्तावेज हमें मिले। विदेश मंत्रालय की 1968 की एक कमेटी की रिपोर्ट है। दूसरा दस्तावेज तब के विदेश सचिवों और तमिलनाडु के तब के मुख्यमंत्री के बीच हुई बातचीत का रिकॉर्ड है, जो 19 जून 1974 का है।
कच्चाथीवू का मुद्दा लंबे समय तक जनता से छिपाया गया। कौन जिम्मेदार है, कौन इसमें शामिल है, किसने इसे छिपाया। हम जानते हैं। हमें यह लगता है कि जनता को यह जानने का अधिकार है कि किसने यह किया है। आज भी मछुआरों को पकड़ा जा रहा है, नावों को पकड़ा जा रहा है। आज भी यह मसला संसद में उठता है।
यह मसला वो 2 पार्टियां उठाती हैं, जिन्होंने इसे अंजाम दिया है। जब भी कोई गिरफ्तारी होती है, जो ये लोग मुद्दा उठाते हैं।
285 एकड़ में फैला है कच्चाथीवू , रामेश्वरम से 19 KM दूर है
भारत के तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच काफी बड़ा समुद्री क्षेत्र है। इस समुद्री क्षेत्र को पाक जलडमरूमध्य कहा जाता है। यहां कई सारे द्वीप हैं, जिसमें से एक द्वीप का नाम कच्चाथीवू है।
श्रीलंका के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक कच्चाथीवू 285 एकड़ में फैला एक द्वीप है। ये द्वीप बंगाल की खाड़ी और अरब सागर को जोड़ता है।
ये द्वीप 14वीं शताब्दी में एक ज्वालामुखी विस्फोट के बाद बना था। जो रामेश्वरम से करीब 19 किलोमीटर और श्रीलंका के जाफना जिले से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर है। रॉबर्ट पाक 1755 से 1763 तक मद्रास प्रांत के अंग्रेज गवर्नर हुआ करते थे। इस समुद्री क्षेत्र का नाम रॉबर्ट पाक के नाम पर ही पाक स्ट्रेट रखा गया।