बिहार में आज से शिक्षकों का बड़ा आंदोलन, बेतिया के भितिहरवा से आगाज, बिना शर्त राज्यकर्मी का दर्जा देने की मांग
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10-06-2023 06:57 PM
पटना: बिहार में नई शिक्षक नियमावली 2023 के विरोध में शिक्षकों का जंग अभी चरम पर है। धरना-प्रदर्शन के बाद भितिहरवा (पश्चिम चंपारण) से प्रतिरोध मार्च का ऐलान है। ये सच है कि तात्कालिक लाभ मिले, ये आंदोलन का स्वरूप नहीं होता। लाभ-हानि को देख कर आंदोलन भी नहीं होते। मगर शुरू हुआ आंदोलन सफलता की सीढ़ी बनी है। ये शिक्षकों और शिक्षक संघों को पता भी है। लेकिन एक बात तो तय है कि देश या राज्य में सभी मुद्दों पर राजनीति हावी है। ऐसे में आंदोलन के साथ कितना बड़ा वोट बैंक खड़ा है, वो सत्तासीन को निर्णय करने में सहायक होता है। इस पर भी सियासी दलों की नजर है।
भितिहरवा से आंदोलन की शुरुआत
बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह और महासचिव सह पूर्व सांसद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह मुस्तैद हैं। उन्होंने बताया कि बिना शर्त राज्यकर्मी का दर्जा देने की मांग को लेकर अब शिक्षक संघ ने चौथे चरण के आंदोलन शुरू किया है। इसके तहत जन जागरण और हस्ताक्षर अभियान चलाया जाएगा। शिक्षकों के प्रति राज्य सरकार जितना असंवेदनशील होकर नकारात्मक रवैया अपनाएगी, हम अपने आंदोलन को और धारदार बनाएंगे। हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्मभूमि भितिहरवा आश्रम से अपने आंदोलन के चौथे चरण की शुरुआत कर रहे हैं।
एक मात्र उद्देश्य राज्यकर्मी का दर्जा
भितिहरवा गांधी आश्रम से प्रमंडल के शिक्षक अब अपनी उम्मीद को पूरा करने के लिए भर्ती नियमावली 2023 के विरोध में प्रतिरोध मार्च निकालने जा रहे हैं। बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ से मिली जानकारी के अनुसार इसमें राज्य संघ, तिरहुत प्रमंडल के संघ के पदाधिकारी, सभी जिलों के अध्यक्ष, सचिव, राज्य कार्यकारिणी सदस्य शामिल हैं। इसके अलावा पश्चिम चंपारण के तमाम शिक्षक, शिक्षकेतर कर्मी राज्य के अध्यक्ष और महासचिव के नेतृत्व में अपने आंदोलन को धार देंगे। इस मार्च के दौरान स्थानीय जनप्रतिनिधियों और आम लोगों से भी आंदोलन के प्रति समर्थन मांगे गए हैं। शिक्षक भर्ती नियमावली 2023 के विरोध में दो महीने से शांतिपूर्ण आंदोलन के बाद इस प्रतिरोध मार्च का मतलब ज्यादा से ज्यादा समर्थन जुटाना है। सरकार को मेमोरंडम सौंप कर अपनी ताकत का एहसास कराना है। साथ ही इस मार्च से ये बताना भी है कि भितिहरवा रैली में हम अपनी एकमात्र मांग बिना शर्त राज्यकर्मी का दर्जा लेकर ही रहेंगे। इस प्रक्रिया मे भितिहरवा से शुरू ये अभियान सभी 38 जिलों में चलाया जाएगा।
वैसे, अच्छा रहा है आंदोलन का इतिहास
शिक्षकों के आंदोलन का इतिहास तो अच्छा रहा है। कई ऐसे मौके आए जब शिक्षकों की मांगें लंबे संघर्ष के बाद पूरी भी हुई। 1974 से 1978 के दौर को शिक्षकों के लिए आदर्श माना जाता है। ये समय तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्र का था। इनके कार्यकाल में बहुत से प्राइवेट स्कूल और कॉलेज निजी प्रबंधन के अंदर चल रहे थे। शिक्षकों को दंश को झेलना पड़ता था। लेकिन जब आंदोलन शुरू हुए तो धीरे-धीरे सरकार को भी झुकना पड़ा। तब स्कूल और कॉलेज में काम करने वाले शिक्षकों को वेतनमान मिला। कॉलेज शिक्षकों, चाहे वो मगध के हों या मिथिला या अन्य विश्वविद्यालय सभी को एक समान वेतन मिला। वर्ष 1991 में, 91 दिन का आंदोलन चला। तब सरकार को झुकना पड़ा। शिक्षकों को मैट्रिक का स्केल मिलना शुरू हो गया। केंद्र के समान वेतन का लाभ मिला। ये आंदोलन बिहार अराजपत्रित संघ की ओर से शुरू किया गया था। 2015 में भी हू ब हू वेतन की लड़ाई लड़ी गई और सफलता भी मिली। तब शिक्षकों को 5200 से 20200 का वेतनमान मिला।
अब क्या बोलते हैं शिक्षक नेता
बिहार अराजपत्रित प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रदेश महासचिव डॉ भोला पासवान का मानना है कि इस बार भी शिक्षक लड़ाई जीतेंगे। उन्हें राज्यकर्मी बनने के लिए बीपीएससी या कोई अन्य परीक्षा देने की जरूरत नहीं है। आखिर पांच लाख परिवारों के भविष्य का सवाल है। बिहार विधान परिषद में तमाम शिक्षक प्रतिनिधि भी इस आंदोलन के साथ में हैं। सदन में वे संघर्षरत हैं। अभी एक और प्लस पॉइंट है कि इस सरकार को वाम दलों का समर्थन प्राप्त हैं। वाम दल भी शिक्षकों की मांग के साथ हैं। इसलिए उम्मीद ही नही विश्वास है कि इस लड़ाई में भी जीत शिक्षकों की होगी।
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