दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में साइबर क्राइम सेल ने ठगी के मामलों में जिन आरोपितों को पकड़ा है, उनसे पूछताछ में यह बात सामने आई है कि उनको यह डाटा डार्कवेब (इंटरनेट का वह हिस्सा जहां लोग पहचान और लोकेशन छुपाकर अवैध काम करते हैं) के जरिये मिला है।
पड़ताल में सामने आया कि डार्कवेब पर डाटा उपलब्ध कराने के लिए पेशेवर हैकर कंपनियों के सर्वर को हैक कर उपभोक्ताओं की निजी जानकारी चुरा रहे हैं। कई मामलों में कंपनी का ही कोई कर्मचारी यह डाटा चुराकर डार्कवेब पर उपलब्ध करवा रहा है।
चोरी किया गया यह डाटा 35 से 50 रुपया प्रति उपभोक्ता की कीमत पर डार्कवेब पर बेचा जा रहा है। पुलिस का मानना है कि अगर कंपनियां डाटा की सुरक्षा के प्रति सजग रहें तो ऐसी चोरी रोकी जा सकती है। साथ ही, उपभोक्ताओं को नुकसान से बचाया जा सकता है।
अब तक जांच एजेंसियां डाटा चोरी के लिए कंपनियों की लापरवाही को जिम्मेदार तो मान रही थीं, लेकिन उन पर कार्रवाई का अधिकार उनके पास नहीं था। नए दूरसंचार कानून ने उनको कार्रवाई की ताकत दी है।
नेशनल ला इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी में साइबर ला के विभागाध्यक्ष प्रो. अतुल पांडेय का कहना है कि साइबर अपराधों में यदि किसी कंपनी की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई संलिप्तता है तो उस पर कार्रवाई की जा सकती है। आईटी एक्ट की धारा 46 व 66 के अंतर्गत कार्रवाई का प्रविधान है।