भारत-पाकिस्तान के युद्ध के हालात से क्यों हो रही तुलना?
ठाकुर कहते हैं कि उत्तर कोरिया के सैनिकों का रूस पहुंचना ठीक उसी तरह से मित्रता की संधि की तरह से हो सकती है जैसे साल 1971 के बांग्लादेश युद्ध से ठीक पहले भारत और सोवियत संघ के बीच हुई थी। यह संधि चीन या अमेरिका के हस्तक्षेप को रोकने के लिए की गई थी। उन्होंने कहा कि यह रणनीतिक भागीदारी की संधि पूरी संभावना है कि नाटो को रोकने के लिए की गई है।
ठाकुर ने कहा कि किम जोंग उन ने अपनी सेना को यूं ही नहीं भेजा है। इसके पीछे उनका भी कोई मकसद होगा। यूक्रेन की सेना पीछे हट रही है और पश्चिमी हथियारों की सप्लाई बहुत कम हो गई है। यूक्रेन में नए सैनिक भर्ती होने कम हो गए हैं। नाटो यूक्रेन की हार नहीं चाहता है और इसी वजह से वह संघर्ष को बढ़ाना चाहता है, वहीं रूस ने भी उत्तर कोरिया के सैनिक बुलाकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं कि वह पूरी तरह से तैयार हैं।