नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने संसद में विश्वास मत हासिल कर लिया है। रविवार को हुए बहुमत परीक्षण में केपी ओली को 263 सांसदों में से 188 सांसदों ने अपना समर्थन दिया। वहीं 74 सांसदों ने विश्वास मत के खिलाफ वोट किया। वहीं एक सांसद ने किसी के पक्ष में वोट नहीं किया।
केपी ओली ने 15 जुलाई को चौथी बार नेपाल के पीएम के तौर पर शपथ ली थी। चीन समर्थक माने जाने वाले ओली ने भारत समर्थक शेर बहादुर देउबा के साथ मिलकर सरकार बनाई है। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड ने 12 जुलाई को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। काठमांडू पोस्ट के मुताबिक, वह संसद में विश्वासमत हासिल करने में नाकाम रहे। वे सिर्फ 1 साल 6 महीने ही प्रधानमंत्री रह पाए।
दरअसल, इस महीने की शुरुआत में चीन समर्थक केपी शर्मा ओली की पार्टी CPN-UML ने प्रधानमंत्री प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल से गठबंधन तोड़ लिया था। इसके बाद उनकी सरकार अल्पमत में आ गई थी। नेपाल के संविधान के आर्टिकल 100 (2) के तहत उन्हें एक महीने में बहुमत साबित करना था।
वे ऐसा नहीं कर पाए। फ्लोर टेस्ट में उन्हें 275 में से सिर्फ 63 सांसदों का साथ मिला। नेपाल की नेशनल असेंबली के 194 सांसदों ने उनके खिलाफ वोट किया। उन्हें सरकार बचाने के लिए 138 सांसदों के समर्थन की जरूरत थी।
ओली के प्रधानमंत्री बनने से भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा
BBC की रिपोर्ट के मुताबिक केपी शर्मा ओली के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और नेपाल के रिश्तों पर थोड़ा असर पर सकता है। केपी ओली सरकार में ही नेपाल ने अपना एक नक्शा जारी किया था जिसपर विवाद खड़ा हो गया था।
नेपाल ने मई 2020 में अपना आधिकारिक नक्शा जारी किया, जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा इलाके को नेपाल की सीमा में दिखाया गया था। भारत ने इस पर आपत्ति जाहिर की थी और इस नक्शे को मानने से इनकार कर दिया था।
इस बार सरकार में नेपाली कांग्रेस भी है। इस पार्टी का संबंध भारत से अच्छा है। नेपाली कांग्रेस डिप्लोमेसी के जरिए समस्या का समाधान ढूंढने पर जोर देती है। ऐसे में नई सरकार भारत के साथ रिश्ते में अधिक बदलाव कर पाएगी इसकी संभावना कम है।