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किताबी ज्ञान तक ही सीमित न हों शिक्षा के मायने,क्या असल जिंदगी के दोहे सिखा सकेगा किताबी ज्ञान?

Updated on 23-05-2024 02:12 PM
शिक्षा कैसी होना चाहिए? आखिर शिक्षा के मायने क्या होने चाहिए? क्या रट-रट कर हासिल किए गए श्रेष्ठ अंक ले आना बेहतर शिक्षा कहला सकती है? किताबी कीड़ा बनकर एक बेहतर शिक्षार्थी बना जा सकता है? क्या आप भी यही सोचते हैं कि शिक्षा महज़ किताबी ज्ञान हो? सिर्फ चंद किताबें पढ़ लेने और उनके हिसाब से परीक्षा में शामिल होकर अच्छे अंक ले आना ही क्या वाकई में शिक्षा की परिभाषा है? किताबी ज्ञान की असल जीवन में यदि महत्ता हासिल न कर सके, तो क्या ही शिक्षा अर्जित की? पास हो जाने का नाम शिक्षा नहीं है। 

लेकिन तथ्य की ओर देखा जाए, तो आज की शिक्षा सच-मुच इसी ढर्रे पर आगे बढ़ रही है, और पीछे छोड़ती जा रही है इससे मिलने वाली वास्तविक सीख को। आज की शिक्षा से मिलने वाला किताबी ज्ञान महज़ किताबों तक ही सीमित है, जिसका जीवन के पाठ से कोई लेना-देना नहीं। ज़रा बताएँ कि जीवन के किस मोड़ पर वो रटे-रटाए सूत्र और समीकरण काम आए? असल जीवन में कहाँ लगाया आपने वह गणित का साइन थीटा, कॉस थीटा, डेल्टा या फिर सिग्मा? क्या कभी पानी माँगने या साधारण रूप से पानी की बात ही निकलने पर इसे इसके वैज्ञानिक नाम H2O से पुकारा है? (a+b)² = a² + 2ab + b² का उपयोग कहाँ किया? या फिर x और y की वैल्यू स्कूल और कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के बाद निकालने की कहाँ जरुरत पड़ी? 

पहले के समय में लोग गुरुकुल में रहकर शिक्षा अर्जित किया करते थे, जहाँ उनकी पहचान सिर्फ शिक्षा अर्जित करने तक ही नहीं थी, वे यहाँ जीवन जीने की कला भी सीखते थे। गुरु के आश्रम में उनके सानिध्य में रहकर सदाचार और बुद्धि ज्ञान प्राप्त करते थे। संस्कार भी तो गुरु से ही प्राप्त करने का सौभाग्य कच्ची उम्र में शिष्यों को मिलता था। इसे कच्ची उम्र में मिली पक्की सीख कहना, मुझे नहीं लगता कि तनिक भी गलत होगा। फिर गुरु भी जीवन भर के तजुर्बे हासिल किए हुए होते थे। धूप में तपकर सोना हुए महान व्यक्तित्व के धनी गुरु, पत्थर रुपी अपने शिष्यों को अद्भुत मूर्ती के रूप में तराशने का काम करते थे। बच्चे भी काफी मेहनती हुआ करते थे, सबसे श्रेष्ठ बनने का जुनून जैसे उनकी रगों में दौड़ता था, शायद यही वजह थी कि वे हर क्षेत्र में अव्वल आते थे। इतना ही नहीं, जीवन के कौशल को भी बखूबी सीखते थे और एक महान इंसान बनने की राह पर आगे बढ़ते थे।

बदलते ज़माने के साथ-साथ शिक्षा के मायने और उसूल भी दिन-ब-दिन बदलते चले गए और धीरे-धीरे इस क्षेत्र में भी नए-नए बदलाव देखे जाने लगे। शिक्षा की परिभाषा भी साथ-साथ संकुचित होती चली गई। आज के समय में होते-होते यही इतनी संकुचित हो गई है कि बच्चों का पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ अपनी कक्षा पास करने पर है। अव्वल आने का दर्जा प्राप्त करने और जीवन के अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने का जुनून अब कम ही छात्रों में देखने को मिलता है। यदि तुलना की जाए, तो अपनी पढ़ाई को लेकर गंभीर रहने वाले छात्रों का आँकड़ा कम ही निकलेगा। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि बच्चों को शिक्षा की महत्ता से आज के समय में वंचित रखा जाने लगा है।

सही मायने में बच्चों को समझाया ही नहीं जाता है कि आखिर में ग्रेविटी थ्योरी क्यों बनी? क्यों विज्ञान को एक अलग विषय बनाया गया? सामाजिक विज्ञान क्यों पढ़ाया जा रहा है? इतिहास के क्या मायने हैं? गणित की परिभाषा सिर्फ कैल्क्युलेशन्स तक ही सीमित नहीं है। सामान्य ज्ञान भी जीवन में जरुरी है। असल में बच्चों को ऐसी चीजें सिखाई जाना चाहिए, जिससे उनमें कौशल निखर कर सामने आए। हो सकता है कि एक इंजीनियर की पढ़ाई कर रहा बच्चा एक बहुत अच्छा लेखक या गायक हो सकता है। जरुरी नहीं है कि सिर्फ पढ़-लिख कर ही कुछ बना जा सकता है, कभी-कभी मन से सीखा हुआ काम भी हमें कुशल साबित कर सकता है। यहाँ हरगिज़ मैं पढ़ाई को दूसरी प्राथमिकता देने की बात नहीं कर रहा हूँ।

आपने गौर किया है कि आज की शिक्षा प्रणाली पूरी तरह डिजिटल होने लगी है, शिक्षा प्रणाली क्या, पूरी दुनिया ही डिजिटल होने लगी है। बेशक बदलाव अच्छे हैं, लेकिन तब, जब इनसे लोगों को लाभ अधिक और नुकसान कम हों। कभी इसकी गंभीरता आँकी है कि डिजिटल की दुनिया में लिप्त बच्चे सीख क्या रहे हैं? वे बच्चे होकर भी बच्चों का आचरण भूलने लगे लगे हैं। सोशल मीडिया सारे सवालों के जवाब अपने में लिए बैठा है। जिस उम्र में पठन-पाठन पर ध्यान होना चाहिए, उस उम्र में नन्हें-नन्हें बच्चे युवाओं को पीछे छोड़ ऐसी-ऐसी रील्स बना रहे हैं, जिन्हें देखने वाला एक क्षण को दंग रह जाए। मुझे कहने में बिल्कुल भी हर्ज नहीं है कि वे छोटी उम्र में ही उम्र का एक पड़ाव पार कर चुके हैं और खुद को कच्ची उम्र में ही युवा बना चुके हैं।

अब जब मन दुनियादारी और सोशल मीडिया में लगने लगा है, तो शिक्षा में कैसे लगेगा, यह आज के समय का बहुत बड़ा सवाल है। कैसे बच्चों को पता लगेगा कि आखिर हमारा इतिहास क्या है? अंग्रेजों से आज़ादी का संग्राम क्या था? क्यों और कैसे बने नियम व कानून? क्या है जीवन चक्र? और भी बहुत कुछ, जो बच्चे अब सिर्फ रट लेते हैं और परीक्षा में भर-भर कर लिख देते हैं। क्या यहीं तक आकर सीमित हो गए हैं शिक्षा के मायने? 

वर्तमान समय की सबसे बड़ी माँग है कि रटी-रटाई किताबी बातें और किताबी ज्ञान से बच्चों को दूर किया जाए। और सबसे विशेष, पढ़ाई की गंभीरता से दूर जा रहे बच्चों को पुनः ट्रैक पर लाया जाए और उन्हें पढ़ाई की महत्ता समझाई जाए। पास होने या परीक्षा में अच्छे अंक लाने के बजाए बच्चों को सही मायने में शिक्षा लेने और अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। 

यदि इस बात को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो मुझे लगता है कि आने वाले समय में बच्चे स्कूल जाना ही भूल जाएँगे। वे स्कूली शिक्षा और पढ़ाई के महत्व से खुद को दूर पाएँगे, जबकि स्कूल ही वह बुनियाद होती है, जो हमें बचपन से अनुशासन सिखाती है, जो हमें बताती है कि आपस में कैसा व्यवहार रखना चाहिए। शिक्षा में सुधार बेशक किए जा रहे हैं। समय-समय पर विभिन्न अभियान चलाए जाते हैं, नियम और कानून भी बनाए जाते हैं, लेकिन ये काफी नहीं हैं, क्योंकि कहीं न कहीं ये अपने अंतिम लक्ष्य तक पहुँचने में खुद को असहाय पाते हैं। 

यहाँ सबसे अधिक आवश्यकता है हमारी शिक्षा प्रणाली की बुनियाद को मजबूत करने की। यदि अब भी एक कुशल शिक्षा प्रणाली के सृजन पर काम नहीं किया गया, तो वास्तव में बहुत देर हो जाएगी। छात्रों से अधिक आवश्यकता शिक्षकों को कुशल और निपुण बनाने की है। ठीक उसी प्रकार, जैसे एक मोबाइल को समय-समय पर अपग्रेड किया जाता है, तो क्यों छात्रों और शिक्षकों को अपग्रेड करने का सिलसिला बचपन रुपी नींव से और इस नींव को मजबूत बनाने वाली शिक्षा तक बरकरार रखा जाए?

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