लोस चुनाव: चौथे चरण के बाद सीटें जीतने का ‘माइंड गेम’ तेज
Updated on
18-05-2024 01:33 PM
लोकसभा चुनाव के चौथे चरण के मतदान के बाद मटन, मंगलसूत्र और पाकिस्तान जैसे मुद्दों के बाद जीतने वाली सीटों की संख्या का ‘माइंड गेम’ हावी होता दिख रहा है। इसकी शुरूआत तो सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद में इस घोषणा के साथ की थी कि इस चुनाव में भाजपा 370 तथा एनडीए 400 पार सीटें जीतेगी। तब बहुत से लोगों ने इसे दंभोक्ति के रूप में लिया था। भाजपा और एनडीए सचमुच यह आंकड़ा पार कर पाते हैं या नहीं, यह तो 4 जून को ही पता चलेगा, लेकिन चुनाव में जीत की मनोवैज्ञानिक बढ़त की नींव उसी वक्त रख दी गई थी। जब विपक्ष को देर से यह चाल समझ आई तब उसने पलटवार किया कि आखिर भाजपा को 400 पार चाहिए क्यों? कहा गया कि भाजपा संविधान बदलने के लिए ऐसा चाहती हैं। हालांकि ज्यादातर लोगों के लिए संविधान का मतलब आरक्षण ही है और जब यह कहा जाने लगा कि भाजपा दरअसल आरक्षण व्यवस्था खत्म करने के लिए 400 पार सीटें चाहती हैं तो भाजपा को समझ आया कि उसका नारा बूमरेंग हो रहा है। जो आत्मविश्वास का परिचायक कम और विघातक ज्यादा हो सकता है। ऐसे में ताबड़तोड़ तरीके से विपक्ष के नरेटिव की काट यह कहकर ढूंढी गई कि वह हिंदुअों में अोबीसी, दलित और आदिवासियों का आरक्षण खत्म कर मुसलमानों को देना चाहता है। जबकि हकीकत यह है कि इस देश मुसलमानों में भी करीब 41 फीसदी आबादी अोबीसी की है और वह अोबीसी आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था में पहले से आरक्षण की हकदार है। फर्क इतना है कि यह आरक्षण उन्हें जाति के आधार पर िमला है न कि धर्म के आधार पर।
आरक्षण पर भाजपा के इस पलटवार और देश में चौथे चरण के साथ कुल 543 में से 380 सीटों पर मतदान के बाद हार जीत के नए कयास और गणित लगाए जा रहे हैं। अगर भाजपा के दावों को सही मानें तो तुलनात्मक रूप से वो चार चरणों के बाद सरकार बनाने के करीब दिखती है, जबकि विपक्षी दलों का मानना है कि भाजपा हवा में है। चुनाव की जमीनी हकीकत दूसरी है वोटर भाजपा के अहंकारी शासन से परेशान है और चुनाव में उसे हराकर अपनी नाराजगी का इजहार करेगा। लेकिन मामला इतना भी आसान नहीं है। क्योंकि इस देश का मतदाता मौजूदा सरकार को क्यों बदलना चाहता है, इसका भी कोई ठोस कारण उभर कर नहीं आ रहा है, सिवाय महंगाई़़, बेरोजगारी, जल संकट इत्यादि परंपरागत मुद्दों के। बहरहाल चौथे चरण के मतदान बाद विपक्षी इंडिया गठबंधन की अोर से सीटों की जीत के जो दावे हो रहे हैं, उन पर जरा नजर डालें। देश में सत्ता परिवर्तन का दावा करने वाला इंडिया गठबंधन 466 सीटों पर तो सत्ता में तीसरी बार वापसी का दावा करने वाला भाजपा नीत एनडीए कुल 541 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। इंडिया गठबंधन में भी दो तरह के गठबंधन हैं। एक राष्ट्रीय स्तर पर है और दूसरा क्षेत्रीय स्तर पर है। जिसमें राज्यवार क्षेत्रीय व राष्ट्रीय पार्टियां 233 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं। इंडिया गठबंधन में प्रमुख पार्टी कांग्रेस है, जो खुद 328 सीटों पर ही लड़ रही है, जबकि एनडीए में मुख्य पार्टी भाजपा है, जो खुद 441 सीटों पर चुनाव मैदान में है।
अब चौथे चरण के बाद भाजपा अपने दावों पर कायम है तो इंडिया गठबंधन के खुद की जीत से ज्यादा भाजपा को हराने के दावे हैं। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने कहा कि भाजपा नतीजों में 200 से भी कम सीटों तक सिमट जाएगी और इंडिया गठबंधन 315 सीटों पर जीतेगा। शिव सेना (ठाकरे) गुट के उद्धव ठाकरे ने दावा िकया कि इंडिया गठबंधन 300 से अधिक सीटें जीतेगा। कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी का दावा है कि इंडिया गठबंधन अकेले यूपी में 50 से ज्यादा जीतेगा तो सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ‘राजनीतिक जोक’ के अंदाज में दावा किया कि यूपी में इंडिया गठबंधन 80 में से 79 सीटें जीतेगा केवल एक सीट ( वाराणसी) ‘मुकाबले’ में है। उन्होंने यह भी कहा कि देश की 140 करोड़ जनता भाजपा को 140 सीटों तक समेट देगी। यह शायद मोदी द्वारा 370 सीटें जीतने के दावे का अखिलेशी जवाब था। यानी आंकड़ों की तुकबंदी। सबसे हैरानी भरा दावा तो बिहार के सीएम नीतीश कुमार का रहा। उन्होंने एक सभा में मंच से पहले तो चार लाख फिर चार हजार और बाद में एनडीए के चार सौ सीटें जीतने की बात कही। हालांकि लोगों ने उनकी बढ़ती उम्र के मद्देनजर इसे जबान फिसलना मानकर अनदेखा किया। इसके अलावा चौथे चरण के मतदान के पहले जेल से छूटे अरविंद केजरीवाल ने भाजपा पर एक ‘फार्मूला बम’ फोड़ा कि लोकसभा चुनाव के बाद मोदी प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे। वजह 75 पार का वो फार्मूला है, जो उन्होंने पिछले चुनाव में पार्टी के ही कुछ दूसरे नेताअों को ‘निपटाने’ के लिए लागू किया था। केजरीवाल ने यह भी दावे से कहा कि अगले पीएम अमित शाह होने वाले हैं। केजरीवाल को यह जानकारी कहां से मिली पता नहीं, लेकिन इससे दावे से भाजपा में अंदरखाने जरूर खलबली मच गई। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तत्काल इसका खंडन किया कि वह तथाकथित अघोषित फार्मूला मोदी पर लागू नहीं होता। वो 2024 ही नहीं, 2029 में भी प्रधानमंत्री बनेंगे। यानी यह सीटें जीतने के माइंड गेम की नई चाल है। इस दावे ने विपक्ष से ज्यादा उन भाजपा नेताअोंका टेंशन जरूर बढ़ा िदया है, जो पार्टी में प्रमोशन की आस लंबे समय से लगाए बैठे हैं।
अगर सीटें जीतने के दोनो गठबंधनों की सत्यता की पड़ताल करें तो एनडीए गठबंधन व्यावहारिकता के ज्यादा नजदीक लगता है। इसका कारण यह है कि एनडीए की मुख्य पार्टी भाजपा में मतदान और नतीजों के आकलन का अपना आंतरिक और पुख्ता सिस्टम है, जो हाई कमान को रिपोर्ट करता है। पार्टी को भरोसा है कि इस बार तुलनात्मक रूप से वोटिंग भले कम हुआ हो, लेकिन भाजपा के वोट ज्यादातर डल गए हैं। ऐसे में जीत का अंतर घट सकता है, लेकिन परिणामों में बहुत अंतर नहीं आएगा। दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन में नतीजो के पूर्वाकलन का कोई ठोस सिस्टम नहीं है। कार्यकर्ताअो और पोलिंग एजेंटों के फीड, चुनाव सभाअोंमें भीड़ और राजनीतिक महत्वाकांक्षा आदि के आधार पर संभावित नतीजों का आकलन ज्यादा िकया जाता है।
इस चुनाव में तीन चरणों का मतदान अभी बाकी है। लेकिन देश में नई सरकार किसकी बनेगी, यह काफी कुछ उत्तर प्रदेश में सीटों की जीत से तय होगा। यूपी में सर्वाधिक 80 लोकसभा सीटें हैं। प्रधानमंत्री पद के दो दावेदार और वर्तमान पीएम भी इसी राज्य से चुनाव लड़ रहे हैं। अगर यूपी में इंडिया गठबंधन के 50 से लेकर 79 तक सीटें जीतने के बंपर दावों की पड़ताल करें तो यह कहीं से भी संभव नहीं दिखता। कारण वहां दलों का अलायंस और उनका वोट बैंक है। राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा ( एनडीए गठबंधन) का कुल ( पिछले लोकसभा चुनाव के आधार पर) वोट प्रतिशत लगभग 54 फीसदी बनता है, जबकि विपक्षी इंडिया गठबंधन का वोट शेयर 23 फीसदी ही होता है। एक और बड़ी पार्टी बसपा है, जिसका पक्का वोट शेयर 19.43 फीसदी है और जो किसी गठबंधन का िहस्सा नहीं है। यूपी में चुनाव नतीजों की असली गेम चेंजर बसपा ही है। बसपा जिस गठबंधन के ज्यादा वोट काटेगी, वही घाटे में रहेगा। वैसे बसपा प्रमुख मायावती की सभी चुनावी चालें भाजपा को लाभ पहुंचाती ज्यादा लगती है। लेकिन वह दुधारी तलवार भी है। क्योंकि मायावती ने इस बार लोकसभा चुनाव में 23 मुसलमानो और 14 ब्राह्मणों को टिकट दिए हैं। ये प्रत्याशी खुद भले न जीतें, लेकिन किसी को भी हार के गड्ढे में ढकेल सकते हैं। इस मायने में मायावती का माइंड गेम सबसे अलग और रहस्यमय है। फिर भी यूपी में भाजपा वर्तमान 61 सीटों के नीचे जाएगी, इस बात की संभावना काफी कम है। हालांकि पिक्चर अभी बाकी है।
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