भोपाल। ज्येष्ठ गौरी आवाहन एक महत्वपूर्ण त्यौहार है जो मुख्य रूप से महाराष्ट्र में मनाया जाता है। यह शुभ अवसर देवी गौरी की पूजा के लिए समर्पित है, जो देवी पार्वती का एक रूप है, जो समृद्धि, उर्वरता और कल्याण का प्रतीक है। यह त्यौहार बहुत ही श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है, जो कई दिनों तक विभिन्न अनुष्ठानों और समारोहों के साथ चलता है। 2024 में, इस उत्सव का विशेष महत्व होगा, क्योंकि भक्त देवी गौरी का आशीर्वाद लेने के लिए एक साथ आते हैं।
ज्येष्ठ गौरी आवाहन - तिथि और समय
ज्येष्ठ गौरी आवाहन हिंदू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद महीने में आता है। यह त्योहार 10 सितंबर से 12 सितंबर 2024 तक मनाया जाएगा। ज्येष्ठ गौरी आवाहन मुहूर्त सुबह 06.13 बजे से शाम 6.25 बजे तक है। अवधि 12 घंटे 12 मिनट है। ज्येष्ठा गौरी पूजा बुधवार, 11 सितंबर 2024 को। ज्येष्ठा गौरी विसर्जन गुरुवार, 12 सितंबर 2024 को। अनुराधा नक्षत्र 09 सितंबर 2024 को शाम 06.04 बजे शुरू होता है। अनुराधा नक्षत्र 10 सितंबर 2024 को रात 08.04 बजे समाप्त होता है।
ज्येष्ठ गौरी- पूजा अनुष्ठान
ज्येष्ठ गौरी उत्सव तीन दिनों तक चलता है, प्रत्येक दिन अनोखे अनुष्ठान और प्रथाएँ होती हैं।
अनुष्ठानों के लिए चरण-दर-चरण मार्गदर्शिका
1.आवाहन की तैयारी-आवाहन समारोह से पहले, घरों को साफ किया जाता है और फू लों, रंगोली (चावल के आटे से बने रंग-बिरंगे पैटर्न)और पारंपरिक दीयों से सजाया जाता है। देवी गौरी की मूर्ति को बड़े सम्मान के साथ घर या सामुदायिक पंडाल में लाया जाता है। गौरी की मूर्ति के साथ अक्सर गणेश की मूर्ति भी होती है, क्योंकि यह त्यौहार गणेश चतुर्थी के साथ मेल खाता है।
2.आवाहन (देवी का स्वागत)- आवाहन घर में देवी का स्वागत करने की रस्म है। समारोह करने वाला परिवार या समुदाय मंत्रों का उच्चारण करके और पारंपरिक कलश स्थापना करके देवी गौरी की उपस्थिति का आह्वान करता है। मूर्ति के पास पानी, पान के पत्ते और नारियल से भरा एक कलश (पवित्र बर्तन) रखा जाता है। यह दिव्य ऊर्जा की उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करता है। फि र भक्त गौरी की मूर्ति को सुंदर रेशमी साड़ियों, गहनों और फूलों से सजाते हैं।
3.गौरी पूजा (मुख्य पूजा)- दूसरा दिन देवी गौरी की पूजा के लिए समर्पित है। भक्त विशेष प्रार्थना करते हैं और समृद्धि, स्वास्थ्य और खुशी के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं।
अनुष्ठान में शामिल हैं I
अलंकार -(सजावट)-मूर्ति को पारंपरिक कपड़े, आभूषण और चमेली, गेंदा और गुलाब की मालाओं से सजाया जाता है।
पंचामृत अभिषेक-शुद्धिकरण अनुष्ठान के भाग के रूप में मूर्ति को पांच पवित्रसामग्रियों-दूध, दही, शहद, चीनी और घी से स्नान कराया जाता है।
नैवेद्य अर्पण-भक्त विभिन्न प्रकार की मिठाइयाँ, फ ल, नारियल और मोदक (मीठे पकौड़े) जैसे व्यंजन चढ़ाते हैं, जिन्हें देवी का पसंदीदा माना जाता है।
आरती और भजन - पूजा का समापन देवी गौरी की स्तुति में आरती और भक्ति गीतों के गायन के साथ होता है, जिसमें घंटियाँ और शंख की ध्वनि भी होती है।
विसर्जन समारोह तीसरे दिन देवी गौरी का विसर्जन या विदाई होती है। मूर्ति को संगीत और मंत्रोच्चार के साथ जुलूस में ले जाया जाता है और विसर्जन के लिए पास की नदी या समुद्र में ले जाया जाता है। यह क्रिया देवी के अपने स्वर्गीय निवास में लौटने का प्रतीक है। भक्त उनके अगले साल लौटने तक उनके आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करते हैं। यह उत्सव और भक्ति दोनों का क्षण है, क्योंकि भक्त देवी को कृतज्ञता और आशा के साथ विदाई देते हैं।
ज्येष्ठा गौरी आवाहन - महत्व
ज्येष्ठ गौरी आवाहन का उत्सव सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।
1. समृद्धि और उर्वरता का प्रतीक देवी गौरी को पार्वती का एक रूप माना जाता है, जिन्हें उर्वरताए समृद्धि और वैवाहिक सुख की देवी के रूप में पूजा जाता है। भक्त, विशेष रूप से महिलाए, सुखी वैवाहिक जीवन और अपने परिवार की खुशहाली सुनिश्चित करने के लिए उनकी पूजा करती हैं।
2.एकता और सामुदायिक भावना यह त्यौहार न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि परिवारों और समुदायों को एक साथ लाने का भी समय है। लोग एक साथ मिलकर अनुष्ठानों का आयोजन और उनमें भाग लेते हैं, जिससे एकता और सहयोग की भावना पैदा होती है। पड़ोसियों और विस्तारित परिवारों के लिए त्यौहार मनाने के लिए एक स्थान पर इक_ा होना आम बात है।
3, सांस्कृतिक विरासत ज्येष्ठ गौरी आवाहन महाराष्ट्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और उसकी परंपराओं को दर्शाता है। यह त्यौहार प्राचीन रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और लोककथाओं को संरक्षित करता है जो पीढ़ियों से चली आ रही हैं। यह मूर्ति.निर्माण, पारंपरिक संगीत, नृत्य और भोजन की कलात्मकता का जश्न मनाने का समय है।
4.आध्यात्मिक उत्थान यह त्यौहार भक्तों को ईश्वर से जुड़ने और अपनी आध्यात्मिक यात्रा पर विचार करने का अवसर प्रदान करता है। अनुष्ठान और प्रार्थनाएँ जीवन के आशीर्वाद के प्रति जागरूकताए भक्ति और कृतज्ञता को प्रोत्साहित करती हैं।
महालक्ष्मी विराजी प्रियंका नगर कोलार में
शहर में रहने वाले महाराष्ट्रियन परिवारों में शनिवार से महालक्ष्मी की पूजा शुरू हुई। तीन दिन तक उत्सव मनाया जाएगा। ऐसा कहा जाता है कि महालक्ष्मी अपने मायके आती हैं। इस दौरान वे भगवान गणेश से भी मुलाकात करती हैं। महाराष्ट्रियन पंचांग के अनुसार भाद्रपद (भादों) में ज्येष्ठ गौरी पूजा का विशेष महत्व होने से षष्ठी से अष्टमी, नवमी तक विधि-विधान से महालक्ष्मी की पूजा की।
पूजा के पहले दिन घरों में महालक्ष्मी अपने दो रूपों ज्येष्ठा और कनिष्ठा के रूप में विराजमान होती है। इस दौरान उनके एक पुत्र एवं एक पुत्री की प्रतिमाएं भी स्थापित की जाती हैं।
पहले दिन मां के स्वागत के लिए घर के प्रवेश द्वार से पूजा कक्ष तक रंगोली से देवी मां के पद चिन्ह बनाए गए। श्रीमती अर्पिता रत्नापारखे ने बताया कि पहले दिन गौरी प्रतिमाओं की स्थापना की जाती है। विधिवत स्थापना के बाद दूसरे दिन पूजा के बाद भोग और महाप्रसाद होता है।
गौरी महालक्ष्मी को 16 प्रकार की सब्जियों, 16 प्रकार के मिष्ठान का भोग लगाया जाता है। इसके बाद ब्राह्मण और घर परिवार के सभी सदस्य मिलकर यह प्रसाद ग्रहण करते हैं। प्रसाद में ज्वार की बनी हुई आंबील नामक पदार्थ अनिवार्य होता है। इसी दिन शाम को पास-पड़ोस की सुहागन महिलाओं को बुलाकर हल्दी-कुंकू का आयोजन किया जाता है। तीसरे दिन महालक्ष्मी की कथा का वाचन, श्रवण कर, विसर्जन किया। शहर में कई महाराष्ट्रियन परिवारों में यह परंपरा पीढियों से चली आ रही है। जिनमे रत्नपारखे,मारुडकर,पाचोरकर सहित 100 से भी अधिक परिवारों में महालक्ष्मी की स्थापना की जाती है।