जापान ने समुद्र में जहरीला पानी छोड़ना बंद कर दिया है। यह फैसला शुक्रवार सुबह फुकुशिमा प्लांट के पास आए भूकंप के बाद लिया गया। फुकुशिमा के उत्तरपूर्वी तट पर 5.8 तीव्रता का भूकंप आया। यहां 2011 में सुनामी आई थी, जिससे प्लांट को काफी नुकसान पहुंचा था।
पानी छोड़े जाने की देखरखे कर रही टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी ने X पर लिखा- भूकंप से पानी छोड़ने जाने की प्रोसेस पर असर नहीं हुआ है। हालांकि, सुरक्षा को देखते हुए पानी छोड़ना बंद किया गया है।
जापान अपने खराब हो चुके फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट में मौजूद 132 करोड़ लीटर रेडियोएक्टिव वॉटर को 24 अगस्त 2023 को पैसेफिक ओशन में छोड़ना शुरू किया था।
पानी में अब भी ट्राइटियम के कण हैं
जापान के विदेश मंत्रालय के मुताबिक पानी को महासागर में छोड़ने से पहले साफ कर दिया गया। हालांकि, रिपोर्ट्स के मुताबिक सफाई के बाद भी इसमें ट्राइटियम के कण हैं। ट्राइटियम एक रेडियो एक्टिव मैटीरियल होता है। इसे पानी से अलग करना काफी मुश्किल होता है। इससे कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं।
चीन, साउथ कोरिया ने पानी छोड़े जाने का विरोध किया था
पानी को पैसेफिक महासागर में छोड़े जाने का साउथ कोरिया, चीन और ऑस्ट्रेलिया ने विरोध किया था। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, 1940 के दशक में साउथ पैसेफिक में अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों ने एक के बाद एक कई न्यूक्लियर टेस्ट किए थे। इसका खामियाजा वहां के मार्शल आईलैंड पर रहने वाले लोग अब तक भुगत रहे हैं।
हालांकि, न्यूक्लियर टेस्ट करने और न्यूक्लियर रिएक्टर्स को ठंडा रखने के लिए इस्तेमाल किया पानी महासागर में छोड़ने में काफी फर्क है। उसके बावजूद इसके असर को नकारा नहीं जा सकता है। 2011 की सुनामी के बाद साउथ कोरिया जैसे कई देशों ने सुरक्षा के लिहाज से फुकुशिमा से सीफूड और दूसरी खाने की चीजों के इम्पोर्ट पर रोक लगा दी थी।
क्यों बहाया जा रहा था पानी...
न्यूक्लियर प्लांट को मेंटेन करने वाली कंपनी टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर (TEPCO) ने बताया कि पानी की क्वांटिटी का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि ये 500 ओलंपिक साइज्ड स्विमिंग पूल को भरने के लिए काफी है। इस पानी को वहां से हटाए जाना इसलिए भी जरूरी है, ताकि न्यूक्लियर प्लांट को नष्ट किया जा सके।
सुनामी से प्लांट का कूलिंग सिस्टम हुआ था ठप
मार्च 2011 में आई सुनामी की वजह से फुकुशिमा के न्यूक्लियर प्लांट का कूलिंग और इलेक्ट्रिसिटी सिस्टम ठप हो गया था। गर्मी की वजह से वहां मौजूद तीनों रिएक्टर्स के कोर पिघल गए थे, जिसके चलते काफी ज्यादा मात्रा में रेडिएशन फैला था।