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भारत ने हिंद महासागर में खोया सबसे करीबी दोस्त, चीन की लग गई चांदी, अब क्या होगा

Updated on 02-10-2023 01:12 PM
माले: भारत ने हिंद महासागर में एक महत्वूर्ण भू-राजनीतिक दोस्त को खो दिया है। इससे हिंद महासागर में भारत के प्रभुत्व को खतरा हो सकता है। इस पूरे घटनाक्रम से एक देश को सबसे अधिक फायदा होगा और वो है चीन। चीन को अब भारत के नजदीक श्रीलंका के अलावा एक और दोस्त मिल गया है। जिससे वह हिंद महासागर में अपने खतरनाक मंसूबों को अंजाम देने में ज्यादा सक्षम होगा। दरअसल, एक दिन पहले ही मालदीव राष्ट्रपति चुनाव में भारत समर्थक राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह चुनाव हार गए हैं। उनकी जगह विपक्षी गठबंधन के उम्मीदवार डॉ मोहम्मद मुइज्जू को जीत मिली है। मोइज्जू प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव (पीपीएम) के साझा उम्मीदवार थे, जो भारत के प्रति गहरा संदेह रखती है। उनकी पार्टी चीन के साथ मजबूर रिश्तों की समर्थक है।

भारत के लिए क्यों मायने रखता है मालदीव

मालदीव एक द्वीपीय राष्ट्र है, जो भारत से लगभग 2000 किलोमीटर दूर स्थित है। इसकी जनसंख्या मात्र 520,000 है। यह देश रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हिंद महासागर में स्थित है। इस देश के पास से दुनिया की सबसे व्यस्ततम समुद्री मार्गों में से एक गुजरता है। ऐसे में मालदीव पर किसी देश का पूरा प्रभुत्व हो जाए तो वह हिंद महासागर से होने वाले समुद्री व्यापार को प्रभावित कर सकता है। इतना ही नहीं, हिंद महासागर के जिस इलाके में मालदीव स्थित है, उससे थोड़ी ही दूरी पर डिएगो गार्सिया है, जो अमेरिकी और ब्रिटिश नेवल बेस है। इसके अलावा इसके पश्चिम में रीयूनियन द्वीप समूह में फ्रांसीसी ओवरसीज बेस भी मौजूद है। ऐसे में मालदीव से भारत के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के मिलिट्री बेस की भी जासूसी की जा सकती है।

मालदीव पर श्रीलंका के जैसे कब्जा चाहता है चीन

भारत दशकों से इस क्षेत्र में सबसे प्रभावशाली शक्ति रहा है। रक्षा और व्यापार पर मालदीव जैसे रणनीतिक रूप से स्थित द्वीप राष्ट्रों के साथ मिलकर काम करने से भारत के प्रभाव को सुरक्षित रखने में मदद मिलती है। मालदीव के साथ घनिष्ठ संबंध भी इस क्षेत्र में चीन जैसी प्रमुख शक्तियों को पैर जमाने से रोकते हैं। चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति को देखते हुए हिंद महासागर का इलाका विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। चीन शुरू से ही हिंद महासागर पर राज करने का सपना देखता रहा है। इसके लिए चीन ने श्रीलंका को कर्ज देकर हंबनटोटा में उसके बंदरगाह पर कब्जा भी किया हुआ है। चीन ने मालदीव पर भी कब्जे की खूब कोशिश की थी। उसने अब्दुल्ला यामीन को पैसे खिलाकर मालदीव के एक द्वीप को खरीद भी लिया था, हालांकि वह उस द्वीप पर नौसैनिक अड्डा नहीं बना सका।


भारत के मालदीव के साथ मजबूत रक्षा संबंध

भारत ने चीन की आक्रामकता को देखते हुए मालदीव के साथ मजबूत रक्षा संबंध विकसित किए हैं। भारत ने मालदीव तटरक्षक बल को रक्षा उपकरण जैसे कि हाई स्पीड गश्ती नौकाएं उपहार में दी हैं। इसने मालदीव के रक्षा बलों को उपहार में दिए गए डोर्नियर विमान का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित करने में मदद करने के लिए अपने सैनिकों को तैनात किया है। मालदीव अपनी तटीय रक्षा और निगरानी के लिए भारत के सहयोग पर निर्भर है। मालदीव के महत्व को देखते हुए, भारत भी उसका महत्वपूर्ण विकास भागीदार रहा है। भारत ने मालदीव में बुनियादी ढांचे, हवाई अड्डों और आवास के निर्माण पर अरबों रुपये खर्च किए हैं। भारत, मालदीव का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार और पर्यटन का प्रमुख स्रोत भी है।


मालदीव की राजनीति में भारत बड़ा खिलाड़ी

मालदीव की राजनीति में भारत एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी रहा है। भारत 1965 में मालदीव को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था। 1988 में, भारत ने राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम को उखाड़ फेंकने के लिए तख्तापलट को रोकने के लिए सेना भेजी थी। भारत ने भी 2008 में देश में लोकतांत्रिक परिवर्तन का समर्थन किया। भारत के प्रभाव को देखते हुए, मालदीव ने आमतौर पर 'इंडिया फर्स्ट' की नीति को अपनाता रहा है। इसका मतलब यह है कि भारत देश का पसंदीदा भागीदार है। वर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह भी इस नीति के प्रबल समर्थक हैं। लेकिन, भारत की शक्ति और प्रभाव गहराने से मालदीव में विरोधी ताकतों को दुष्प्रचार करने का मौका भी मिला है।

मालदीव में भारत विरोधी ताकतें मजबूत

मालदीव के राजनेताओं का एक वर्ग भारत के प्रभाव और शक्ति पर अविश्वास करता है। इसके अगुआ पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन हैं, जिन्होंने मालदीव में इंडिया आउट कैंपेन शुरू किया। वर्तमान में अब्दुल्ला यामीन भ्रष्टाचार के मामले में 11 साल की सजा काट रहे हैं। वहीं, वर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह इंडिया फर्स्ट नीति के स्पष्ट समर्थक हैं, लेकिन अब वह अपने प्रतिद्वंदी मोहम्मद मुइज्जू से चुनाव हार गए हैं। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मुइज्जू पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के करीबी सहयोगी हैं। 2013-18 तक यामीन के कार्यकाल में पारंपरिक रूप से मजबूत भारत-मालदीव संबंधों में तनाव बढ़ गया था। कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि यामीन भारत को मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी के करीबी के तौर पर देखते हैं, जिसके प्रमुख इब्राहिम मोहम्मद सोलिह हैं।


यामीन भारत के कितने बड़े विरोधी

यामीन के कार्यकाल में मालदीव में चीन का प्रभुत्व काफी ज्यादा बढ़ गया था। उन्होंने चीन को स्थापित करने के लिए मालदीव को इंडिया फर्स्ट नीति से दूर जाने की पूरी कोशिश की। उनकी सरकार ने बीजिंग के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये। यामीन के कार्यकाल में मालदीव का चीन के प्रति कर्ज बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद का पांचवां हिस्सा हो गया। मालदीव ने चीन के विवादास्पद बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पर भी हस्ताक्षर किए। भारत ने उनकी शासन की सत्तावादी शैली की भी आलोचना की। तनाव का यह दौर तब कम हुआ जब 2018 में यामीन ने पद छोड़ा। लेकिन 2020 में यामीन की पार्टी ने "इंडिया आउट" अभियान चलाया। यामीन की पार्टी ने मालदीव में भारत की गतिविधियों पर संदेह पैदा करने की कोशिश की। मालदीव की सेना की सहायता के लिए मौजूद भारतीय तकनीकी टीम की उपस्थिति को देश की स्वतंत्रता के लिए खतरे के रूप में प्रचारित किया गया। 2018 में जब यामीन राष्ट्रपति थे तो उन्होंने जासूसी का आरोप लगाते हुएभारत से अपने हेलीकॉप्टरों और ऑपरेटरों को देश से वापस लेने के लिए कहा था।


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