रूस से तेल खरीदकर भारत ने किया दुनिया पर 'अहसान', जानें जापान के एक अखबार ने क्यों लिखी यह बात
Updated on
20-06-2023 07:47 PM
मॉस्को: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का कद तेजी से बढ़ा है। कई विशेषज्ञ उसे ग्लोबल साउथ का लीडर कहने लगे हैं। उसकी पहचान अब एक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और एक ऐसे देश के तौर पर बनी है जो किसी भी बड़े देश की तरफ झुकने में यकीन नहीं रखता है। भारत इस साल जी-20 की अध्यक्षता भी कर रहा है। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 जून से अमेरिका के दौरे पर रवाना होने वाले हैं। भारत का कद निश्चित तौर पर बढ़ा है। ऐसे में विशेषज्ञ इस बात को लेकर परेशान हैं कि रूस से तेल की खरीद को नियंत्रित करने की दिशा में भारत ने कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि यूरोप के देशों ने रूस से आने वाले पेट्रोलियम पदार्थों पर पिछले साल प्रतिबंध लगा दिया था।
रूस बना टॉप देश
जापान से निकलने वाले अखबार एशिया निक्केई के मुताबिक मई के महीने में भारत ने रूस से 1.96 मिलियन बैरल कच्चा तेल खरीदा। इसमें आए एक आर्टिकल के मुताबिक अप्रैल 2022 से ही भारत रूस से तेल खरीद रहा है और इसमें तेजी आती जा रही है। मार्च 2023 तक भारत ने औसतन 1.02 मिलियन बैरल कच्चा तेल रूस से खरीदा था। रूस अब भारत को तेल सप्लाई करने वाला टॉप देश बन गया है जो पिछले साल तक नंबर 10 पर था। रूस के बाद इराक और फिर सऊदी अरब का नंबर आता है।
भारत को हुए फायदे
रूस से तेल आयात करने की वजह से भारत को तीन फायदे हुए, महंगाई पर लगाम लगी, व्यापार संतुलन सुधरा और साथ ही आपूर्ति में विविधता आ सकी। महंगाई की अगर बात करें तो पश्चिमी प्रतिबंधों के फायदे भी साफ हैं। भारत ने साल 2022 वित्तीय वर्ष में 83 डॉलर प्रति बैरल की औसत कीमत पर रूसी तेल खरीदा, जबकि इराकी तेल के लिए 90 डॉलर और सऊदी कार्गो के लिए 100 डॉलर की कीमत अदा की गई थी। भारत के व्यापार संतुलन को इसके पेट्रोलियम उत्पादों की विदेशी बिक्री में हुई वृद्धि से काफी मदद मिली है। दुनिया भर में जहां तेल की कीमतें बढ़ीं, भारत ने सस्ते रूसी तेल के आयात से फायदा उठाने में सफलता हासिल की।
रूसी तेल हुआ रिफाइन
कुछ लोग कह सकते हैं कि पीएम मोदी की 'भारत पहले' नीति ने रूस को पश्चिमी प्रतिबंधों से बचने में मदद की है, लेकिन हकीकत इससे अलग है। व्यापार के आंकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि भारत ने जो कुछ किया उससे दूसरों को भी फायदा हुआ है। भारत ने रूस से आयात में तेजी से इजाफा किया है। इससे एक प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं से इसकी खरीद कम हो गई है। इससे यूरोप और बाकी देशों के लिए ज्यादा तेल बच गया। भारत ने आयातित रूसी तेल की एक बड़ी मात्रा को रिफाइन भी किया।
भारत ने निभाई अपनी भूमिका
वित्त वर्ष 2022 में भारत के पेट्रोलियम उत्पादों के शिपमेंट में 70 फीसदी का इजाफा हुआ है। इससे यह यूरोप के तेल व्यापार केंद्र का शीर्ष आपूर्तिकर्ता बन गया, जो एक साल पहले तीसरे स्थान पर था। ऐसा लगता है कि भारत के पेट्रोलियम उत्पादों ने यूरोपियन यूनियन को होने वाली रूसी सप्लाई की कमी को पूरा कर दिया। रूस की तरफ से रोजाना आठ मिलियन बैरल का तेल निर्यात होता है। अगर यह सप्लाई गायब हो जाती तो बाजार को अपूरणीय क्षति हो सकती थी। इससे विश्व अर्थव्यवस्था को विनाशकारी झटका लग सकता था।
इसलिए शांत रहे यूरोप के देश
इस तरह से जी-7 और यूरोपियन यूनियन ने संकट से बचने के लिए भारत को रूसी तेल खरीदने का 'गंदा काम' करने दिया। भारत ने भी इसमें अपनी भूमिका सही से निभाई है। रूस से तेल आयात पर न तो जी 7 और न ही यूरोपियन यूनियन भारत के 'योगदान' को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करते हैं। मगर वो इस बात से इनकार भी नहीं कर सकते हैं कि इस देश ने वैश्विक आर्थिक संकट को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत ने भले ही इस भूमिका को अपने लिए नहीं चाहा था। लेकिन 'रणनीतिक स्वायत्तता' को आगे बढ़ाने के लिए जो फैसले लिए गए वो साफतौर पर इसके बढ़ते प्रभाव को दिखाते हैं।
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