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अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, अब नस्‍ल के आधार पर नहीं होगा कॉलेज में एडमिशन

Updated on 30-06-2023 07:27 PM
वॉशिंगटन: अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब नस्‍ल को किसी कॉलेज में एडमिशन का आधार नहीं माना जाएगा। अपने इस ऐतिहासिक फैसले के साथ ही कोई ने दशकों से चली आ रह नीतियों को खत्‍म कर दिया है। कुछ लोग इस फैसले को सकारात्‍मक मान रहे हैं। यह अमेरिकी शिक्षा तंत्र में सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक है। पहली बार सन् 1960 के दशक में यह नीति में अपनाई गई और फिर इसे विविधता बढ़ाने के उपाय के रूप में इसका बचाव किया गया। हालांकि राष्‍ट्रपति जो बाइडन समेत अमेरिका के शिक्षा विभाग ने इसकी आलोचना की है।

बाइडन फैसले से असहमत
जो बाइडन ने कहा कि वह गुरुवार को आए सुप्रीम कोर्ट के इस बहुप्रतीक्षित फैसले से असहमत हैं। उनका कहना था, 'हम इस फैसले को आखिरी फैसला नहीं बनने दे सकते।अमेरिका में भेदभाव अभी भी मौजूद है। यह कोई सामान्य अदालत नहीं है।' उन्होंने यह भी कहा कि फैसला इसमें शामिल नौ न्यायाधीशों भी जो वैचारिक रूप से छह रूढ़िवादियों और तीन उदारवादियों के बीच विभाजित हैं।

शिक्षा विभाग भी फैसले के खिलाफ
दूसरी तरफ शिक्षा सचिव मिगुएल कार्डोना ने कहा कि कोर्ट ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण उपकरण छीन लिया है जो यूनिवर्सिटी में विविधता सुनिश्चित करता था। उनका कहना था कि इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि अमेरिकी हमारे कॉलेज देश की तरह सुंदर विविध छात्रों से बने हैं। उन्होंने आगे कहा कि व्हाइट हाउस विश्वविद्यालयों को मार्गदर्शन जारी करेगा कि कैसे कानूनी रूप से विविधता बनाए रखें।सुप्रीम कोर्ट के फैसले में हार्वर्ड और उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय (यूएनसी) में प्रवेश से जुड़े दो मामले शामिल थे। कोर्ट ने यूएनसी के खिलाफ 6-3 और हार्वर्ड के खिलाफ 6-2 से फैसला सुनाया।

त्‍वचा का रंग बना पहचान
न्यायाधीशों ने कानूनी कार्यकर्ता एडवर्ड ब्लम की तरफ से शुरू किए गए स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशन नामक संगठन का पक्ष लिया। संगठन ने पिछले साल अक्टूबर में कोर्ट के सामने तर्क दिया था कि हार्वर्ड की नस्ल पर आधारित एडमि‍शन पॉलिसी सन् 1964 के नागरिक अधिकार अधिनियम के शीर्षक VI का उल्लंघन करती है, जो नस्ल, रंग या राष्ट्रीय मूल के आधार पर भेदभाव को रोकता है। चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स ने कहा, 'कई विश्वविद्यालयों ने बहुत लंबे समय से यह गलत निष्कर्ष निकाला है कि किसी व्यक्ति की पहचान की कसौटी, उसकी चुनौतियाँ, कौशल या सीखे गए सबक नहीं हैं, बल्कि उनकी त्वचा का रंग है।'

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